कोहरा व धुंध के बीच घातक साबित हो रहे संकेतक विहीन डिवाइडर
सभी भागमभाग में व्यस्त हैं व्यस्तता दिनचर्या का अहम हिस्सा बन गई है स्त्री-पुरुष व बच्चे किसी के पास ठहरने के दो क्षण नहीं है और किसी हद तक इसी का परिणाम है-सड़क दुर्घटनाएं। लापरवाही का आलम यह है कि राह चलता इंसान कीट पतंगा बनकर रह गया है।
जागरण संवाददाता, बलिया : सभी भागमभाग में व्यस्त हैं, व्यस्तता दिनचर्या का अहम हिस्सा बन गई है, स्त्री-पुरुष व बच्चे किसी के पास ठहरने के दो क्षण नहीं है। किसी हद तक इसी का परिणाम हैं सड़क दुर्घटनाएं। लापरवाही का आलम यह है कि राह चलता इंसान कीट-पतंगा बनकर रह गया है। न पैदल चलना सुरक्षित और न ही दोपहिया व चार पहिया वाहनों से यात्रा करना। रात के अंधेरे व धुंध के बीच तो स्थिति और भयावह हो जाती है। वाहन चालकों की लापरवाही संग कोहरे की युगलबंदी दुर्घटना की आशंका को और बढ़ा देती है। यहीं नहीं खराब सड़कें, संकेतक विहीन डिवाइडर व स्पीड ब्रेकर भी इसमें महती भूमिका अदा करते हैं। बहरहाल सर्दी के मौसम में कोहरे की मार से बचने के लिए सतर्कता बेहतर उपाय है। डिवाइडर बन रहे काल
सुरक्षित यात्रा के उद्देश्य से बनाए गए डिवाडर ही लोगों के लिए काल बनते जा रहे हैं। वैसे तो जनपद में डिवाइडरों की संख्या काफी कम है, लेकिन सुखपुरा व रसड़ा में डिवाइडर जरूर बनाए गए हैं। इसमें सुखपुरा चौराहा स्थित डिवाइडर आए दिन सड़क हादसों का कारण बनता है। निर्माण से पूर्व डेंजर जोन में शामिल इस क्षेत्र को दुर्घटनाओं से बचाने के लिए तीन साल पूर्व डिवाइडर बना दिया गया, लेकिन सुरक्षा के माकूल इंतजाम न होने से यहां दुर्घटनाओं की बाढ़ सी आ गई। जाड़े के मौसम में यह संख्या काफी बढ़ जाती है। पिछले साल बरातियों से भरी मैक्सिमो के डिवाइडर से टकराने से एक युवक की मौत हो गई थी, जबकि दर्जन भर लोग घायल हो गए थे। लोगों का कहना है कि डिवाइडर से वाहनों के टकराने की मूल वजह रेडियम लाइटों का गायब होना है। लोगों ने इसे उखाड़ कर नष्ट कर दिया है। रात के अंधेरे में वाहन चालकों को डिवाइडर का पता नहीं चल पाता और दुर्घटनाग्रस्त हो जाता है। इसके अलावा नगर समेत जिले के विभिन्न क्षेत्रों के अंधा मोड़ भी दुर्घटना बढ़ाने में महती भूमिका अदा करते हैं। इसमें नगर स्थित मिड्ढी काजीपुरा मार्ग, चिरैया मोड़, धरनीपुर, गड़वार, फेफना तिराहा, रसड़ा-नगरा मार्ग पर अवस्थित कई मोड़ काफी खतरनाक साबित होते हैं। लगातार बढ़तीं सड़क दुर्घटनाएं
पुलिस विभाग के आंकड़ों के अनुसार जिले में औसतन चार सड़क हादसे रोज होते हैं। इसमें करीब दो से तीन लोगों की जान भी जाती है, लेकिन ज्यादातर दुर्घटनाओं में होने वाली मौतें टालने योग्य होती हैं। फिर भी हम इसे टाल क्यों नहीं पा रहे यह एक यक्ष प्रश्न बना हुआ है। जहां तक देखने में आया है सड़क हादसों के शिकार अधिकतर लोगों में बगैर हेलमेट के बाइक चलाने वाले या बिना सीट बेल्ट के ड्राइव करने वाले शामिल होते हैं। इन तथ्यों से स्पष्ट है कि थोड़ी सी लापरवाही जहां मौत का कारण बन जाती है वहीं मामूली सतर्कता से इन्हें आसानी से टाला जा सकता है। अनुशासन की कमी
बढ़ते सड़क हादसों का एक कारण यातायात नियमों की अनदेखी भी है। लोग जानबूझ नियमों का पालन नहीं करते। नजीर के तौर पर चौराहा पर कट मार ड्राइविग व रेलवे क्रासिग बंद होने पर सलाखों के नीचे से वाहन निकालते बाइकर्स व साइकिल चालकों को आसानी से देखा जा सकता है। लोग पांच से दस मिनट बचाने के लिए अपना जीवन जोखिम में डाल देते हैं। इसके अलावा वाहन चलाते समय बेधड़क मोबाइल का प्रयोग, ब्लूट्रूथ के जरिये गीत व संगीत सुनना भी कहीं न कहीं दुर्घटना का कारण बनता है। प्राकृतिक कारक
इन कारकों के अलावा कुछ ऐसे कारक भी हैं जो हमारे नियंत्रण में नहीं हैं। यथा खराब सड़कें, खराब मौसम व सड़क पर घूमते बेसहारा जानवर तथा कोहरा व धुंध आदि। सर्दी के मौसम में कोहरा जैसे-जैसे घना होता जाता है वैसे-वैसे विजिबिलिटी लेवल कम होता जाता है लिहाजा हादसों की संख्या भी बढ़ने लगती है। हैरत की बात तो यह है कि घने कोहरा के बाद भी न तो दो पहिया वाहन चालक सतर्कता बरतते हैं और न ही चार पहिया वाहन चालक अपनी आदतों में सुधार करते हैं। लिहाजा असमय लोगों को जान गंवानी पड़ती है। इसके अलावा जिले के विभिन्न सड़कों की बदहाल स्थिति व संकेतक विहीन डिवाइडर व स्पीड ब्रेकर भी दुर्घटनाओं को बढ़ाने में अपना योगदान देते हैं।