आज होलिका दहन, कल रंग से सराबोर होगी भृगु नगरी
बलिया होली के त्योहार में होलिका दहन का विशेष महत्व है। होलिका दहन
जागरण संवाददाता, बलिया : होली के त्योहार में होलिका दहन का विशेष महत्व है। होलिका दहन रविवार 28 मार्च को शाम के बाद होगा, इसे छोटी होली के नाम से भी जाना जाता है। इस दिन गांव में लोग देर रात तक जागते हैं और ढोलक की थाप पर फगुआ गायन होता है। अगली सुबह सोमवार 29 मार्च को होली का त्योहार है। इस दिन महर्षि भृग की नगरी हर रंग से सराबोर होगी। होली में एक रंग सामाजिक एकता का भी होगा, हर वर्ग के लोग एक-दूसरे से मिलेंगे और उन्हें दिल से बधाई देंगे। घर-घर में लोग होली की तैयारी में जुट गए हैं। रात्रि 12:40 तक होलिका का मुहूर्त : ओमप्रकाश चौबे
जयप्रकाश नगर के आचार्य पंडित ओमप्रकाश चौबे ने बताया कि इस बार होलिका दहन का शुभ मुहूर्त फाल्गुन पूर्णिमा को शाम 6:05 बजे से रात्रि 12:40 बजे तक है। होलिका की पूजा करने से सभी प्रकार के भय पर विजय प्राप्त होती है। होलिका दहन पौराणिक महत्व
होलिका दहन को लेकर सबसे लोकप्रिय कथा भगवान विष्णु के भक्त प्रह्लाद और दानव होलिका के बारे में है। प्रह्लाद राक्षस हिरण्यकश्यप और उसकी पत्नी कयाधु का पुत्र था। हिरण्यकश्यप भगवान विष्णु का शत्रु था। वह अपने पुत्र के भगवान विष्णु का भक्त होने के खिलाफ था। एक दिन, उसने अपनी बहन होलिका की मदद से अपने बेटे को मारने की योजना बनाई। होलिका के पास एक दिव्य शॉल थी। होलिका को यह शॉल ब्रह्मा जी ने अग्नि से बचाने के लिए उपहार में दिया था। होलिका ने प्रह्लाद को लालच दिया कि वो प्रचंड अलाव में उसके साथ बैठे लेकिन भगवान विष्णु की कृपा के कारण, दिव्य शाल ने होलिका के बजाय प्रह्लाद की रक्षा की। दानव होलिका जलकर राख हो गई। इसलिए इस त्योहार को होलिका दहन के नाम से जाना जाता है। 1587 स्थानों पर होगा होलिका दहन
जिले में 1587 स्थानों पर होलिका दहन होगा। इनमें 59 संवेदनशील हैं। इन पर पुलिस की खास नजर रहेगी। रसड़ा में सबसे अधिक 150 स्थानों पर होलिकाएं जलेंगी। इसी तरह गड़वार में 125, बैरिया 112, भीमपुरा 103, सिकंदरपुर 98, उभांव 97, बांसडीहरोड 91, फेफना 70, पकड़ी 70, बांसडीह 68, सुखपुरा 66, हल्दी 66, दोकटी 59, नरहीं 58, नगर 56, खेजुरी 56, रेवती 52, खेजुरी 56, मनियर 32, सहतवार 31, दुबहड़ 29 व चितबड़ागांव में 23 स्थानों पर होलिका दहन होगा।
एह पार पीपर ओह पार बर.बनल रहे जजमानी के घर
आज से एक दशक पूर्व तक होलिका दहन के लिए जब बच्चे घर-घर से गोइठा वसूलते थे तो दरवाजे पर पहुंच कर बोलते. ए जजमानीं, तोहार, सोने के केंवाड़ी पांच गो गोइठा द। उन्हें जब होलिका दहन के लिए गोइठा प्राप्त हो जाता था तो सामूहिक रूप से कामना करते. एह पार पीपर ओह पार बर, बनल रहे जजमानी के घर। मतलब गोइठा देने वाली महिला या उसके घर-परिवार के लोग लगातार तरक्की करते रहें। बच्चों के मुंह से यह सुनने के लिए भी लोग होलिका दहन में श्रद्धा से गोइठा दे देते थे। होली में अब गांवों में ऐसा माहौल नहीं दिख रहा। बच्चे तो पहले से भी ज्यादा हैं कितु वह गोइठा जरूर कम हो चुका है। अब मांगने पर घर-घर से कुछ रुपये जरूर मिल सकते हैं लेकिन गोइठा मिलना मुश्किल है।