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खुले आसमान के नीचे ठंड के बीच रात गुजार रहे गोवंशी

यूं तो जनपद में गो वंशियों के संरक्षण के लिए दो दर्जन से अधिक स्थानों पर गो आश्रय केन्द्र खोले गये हैं। जहां 1256 पशुओं को सुरक्षित रखने का दावा किया जा रहा है

By JagranEdited By: Published: Thu, 05 Dec 2019 06:22 PM (IST)Updated: Fri, 06 Dec 2019 06:07 AM (IST)
खुले आसमान के नीचे ठंड के बीच रात गुजार रहे गोवंशी
खुले आसमान के नीचे ठंड के बीच रात गुजार रहे गोवंशी

जागरण संवाददाता, बलिया: यूं तो जनपद में गो-वंशियों के संरक्षण के लिए दो दर्जन से अधिक स्थानों पर गो आश्रय केन्द्र खोले गये हैं। जहां 1256 पशुओं को सुरक्षित रखने का दावा किया जा रहा है लेकिन हकीकत के धरातल पर इन गो आश्रय केन्द्रों की स्थिति कुछ अलग ही है। ग्रामीण क्षेत्र में बनाये गये 16 केन्द्रों की बात हो या शहरी इलाके मे खोले गये 10 आश्रय केन्द्रों की। हर जगह कमोवेश एक ही स्थिति है। कहीं खाने की उचित व्यवस्था नहीं है तो कहीं पिने का पानी तक उपलव्ध नहीं है। आये दिन इन गो संरक्षण केन्द्रों के मरने वाले गो वंशियों की संख्या भी इसका तस्दीक करता है। हालांकि जिलास्तरीय अधिकारी संबंधित अधिकारियों को वहां की चुस्त-दुरस्त व्यवस्था करने के लिए बार-बार निर्देशित कर रहे हैं बावजूद स्थिति में कोई विशेष परिवर्तन परिलक्षित नहीं हो पा रहा है। हाल ही में सिकंदरपुर तहसील क्षेत्र के हड़सर स्थित गो आश्रय केंद्र के चार बछड़ों की मौत ने जिला प्रशासन की बीमारू व्यवस्था को सामने ला दिया था। वहां पर तैनात कर्मचारियों की लापरवाही ने असमय ही चार बछड़ों को मौत के मुंह ढकेल दिया। यही नहीं विभागीय उदासीनता का आलम यह रहा कि बछड़ों की मौत के बाद भी जिम्मेदार घटना पर पर्दा डालने में जुटे रहे। हैरत की बात तो यह है कि जिस आश्रय केन्द्र की जिम्मेदारी तीन सफाईकर्मियों के भरोसे है वहां के बछड़ों को आहार तक नहीं मिल पा रहा है। ऐसा ही एक मामला नगरा क्षेत्र के रघुनाथपुर स्थित अस्थाई गो आश्रय केंद्र में देखने को मिली थी। दु‌र्व्यवस्था व लापरवाही के पिछले शुक्रवार मरे पांच बछड़ों का शव 24 घंटे तक गोशाला में ही पड़ा रहा। ग्रामीणों के काफी हो हंगामा के बाद शवों को हटाया गया है। यह तो बानगी भर है। ऐसे ही हालात जिले के अन्य पशु आश्रय केन्द्रों की भी है। सर्दी का मौसम शुरु हो चुका है। गो आश्रय केन्द्र में रखे गये पशुओं को ठंड से बचाने के लिए विभिन्न प्रकार की व्यवस्था करने की बात कही जा रही है लेकिन अभी तक किसी भी केन्द्र में ठंड से बचाव की माकूल व्यवस्था नहीं की जा सकी है। सब कुछ कागजों में ही चल रहा है। ऐसे में इन बेसहारा पशुओं की दशा का अंदाजा सहज में लगाया जा सकता है।

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