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नदियों का घटाव देख बाढ़ विभाग सुस्त, बचाव कार्य नरम

जागरण संवाददाता बलिया बाढ़ खंड विभाग नदियों के घटाव को देख सुस्त पड़ने लगता है लेकिन

By JagranEdited By: Published: Wed, 16 Sep 2020 05:10 PM (IST)Updated: Wed, 16 Sep 2020 05:10 PM (IST)
नदियों का घटाव देख बाढ़ विभाग सुस्त, बचाव कार्य नरम

जागरण संवाददाता, बलिया : बाढ़ खंड विभाग नदियों के घटाव को देख सुस्त पड़ने लगता है, लेकिन नदियां दशहरे तक जगह-जगह किसानों और तटवर्ती लोगों का नुकसान करती रहती हैं। दशहरे के बाद से ही नदियों से बाढ़ या कटान को कोई खतरा नहीं रहता है। जनपद में ऐसा कई सालों का इतिहास रहा है। वर्ष 2010 और 2013 में नदी अपने गर्भ में जाने के बाद भी अक्टूबर में उफान पर हो गई थी और किसानों के बोआई किए गए परवल के हजारों एकड़ खेत अचानक डूब गए थे, हालांकि बाढ़ जैसे हालात नहीं हुए फिर भी किसानों का बहुत बड़ा नुकसान हुआ था। वर्ष 2014 में तो घाघरा ने बैरिया तहसील के एक पंचायत इब्राहिमाबाद नौबरार में तबाही की ऐसी कहानी लिखी कि उस गांव के लगभग 350 मकान घाघरा में समाहित हो गए। तब बीएसटी बांध पर कुल नौ किमी में सड़क के दोनों तरफ केवल झोपड़ियां ही नजर आ रही थी। ॉ

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-नदी कृपा पर निर्भर तबाही

सरकार की ओर से गांवों को बचाने के लिए भले ही भारी रकम हर साल खर्च किए जाते हैं कितु तटवर्ती लोगों की तबाही नदियों की कृपा पर ही निर्भर होती है। रेवती का टीएस बंधा हो या जयप्रकाशनगर का बीएसटी बंधा, हर जगह की कहानी एक जैसी है। पिछले साल दूबे छपरा लगभग में 29 करोड़ खर्च के बाद भी 16 सितंबर यह रिग बंधा दोबारा टूट गया था और लगभग 50 हजार की आबादी अचानक जलमग्न हो गई थी। तटवर्ती लोग बताते हैं कि कटानरोधी कार्य में भले ही करोड़ों खर्च हो जाएं, लेकिन नदी कृपा न हो तो तटवर्ती लोगों की तबाही को विभाग नहीं रोक सकता। इस तरह के उदाहरण हर साल बाढ़ के दरम्यान सामने होते हैं। ------वर्जन-------- बाढ़ और कटान पर 31 अक्टूबर तक विभाग की ओर से पैनी नजर रखी जाती है। कहीं कोई खतरा उत्पन्न होता है तो उसे तत्काल रोकने का प्रयास किया जाता है। सर्वत्र डेंजर जोन पर अलग-अलग लोगों को जिम्मेदारी दी गई है। दूबे छपरा में अब कोई खतरा नहीं है। इसके अलावा बीएसटी बंधा सहित तमाम स्थानों पर निगरानी की जा रही है।

--संजय मिश्रा, अधिशासी अभियंता, बाढ़ खंड, बलिया


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