शून्य लागत और गोमूत्र आधारित खेती से बदली किस्मत
आसपास के किसानों के लिए माडल बने जगन्नाथ जीरो बजट खेती का दूसरों को दे रहे मंत्र
बहराइच : जीरो बजट व गोमूत्र आधारित खेती कर किसान ने अपनी किस्मत संवार ली। घनजीवामृत व जीवामृत का प्रयोग कर खेतों की उर्वराशक्ति के साथ पर्यावरण संरक्षण का भी बीड़ा उठा रखा है। हम बात कर रहे हैं चित्तौरा ब्लाक के ग्रामपंचायत रायपुर के कौवाकोड़री गांव के किसान जगन्नाथ मौर्य की।
केवल पांचवीं तक शिक्षित जगन्नाथ जीरो बजट की खेती में सब्जी आधारित फसलों को उगा रहे हैं और आसपास के किसानों को यह विधि सिखा रहे हैं। वह बताते हैं कि मचान विधि से करेला, लौकी, तरोई की पैदावार करते हैं। घनजीवामृत व जीवामृत तैयार करने से प्रति बीघे 35 से 40 हजार की आमदनी हो जाती है। यह पर्यावरणीय दृष्टि से भी उपयुक्त है। उन्होंने महाराष्ट्र के सुभाष पालेकर से घनजीवामृत व जीवामृत बनाने का प्रशिक्षण लिया है।
प्राकृतिक खेती करने का तरीका
प्राकृतिक खेती देशी गाय के गोबर एवं गोमूत्र पर आधारित है। एक गाय के गोबर एवं गोमूत्र से किसान 30 एकड़ जमीन पर जीरो बजट खेती कर सकता है। गोबर एवं मूत्र से जीवामृत, घनजीवामृत तथा जामुन बीजामृत बनाया जाता है। इनका उपयोग करने से मिट्टी में पोषक तत्वों की वृद्धि के साथ-साथ जैविक गतिविधियों का विस्तार होता है। जीवामृत का महीने में एक अथवा दो बार छिड़काव किया जा सकता है। बीजामृत का इस्तेमाल बीजों को उपचारित करने में किया जाता है। इस विधि से खेती करने वाले किसान को बाजार से किसी प्रकार की खाद और कीटनाशक रसायन खरीदने की जरूरत नहीं पड़ती है। सिचाई के लिए पानी मौजूदा खेती-बाड़ी की तुलना में दस प्रतिशत ही खर्च होती है।
गन्ने के साथ उगाते हैं बैंगन व लोबिया
गन्ने के साथ बैंगन, लोबिया, हल्दी, परवल, मिर्चा की पैदावार करते हैं। गन्ना बोआई के दौरान लाइन से लाइन की दूरी आठ व पौधे से पौधे की दूरी चार फिट होती है।
घनजीवामृत व जीवामृत बनाने का तरीका
घनजीवामृत सूखी खाद है, जिसे बोआई के समय या पानी देने के तीन दिन बाद दे सकते हैं। इसे बनाने के लिए 100 किलोग्राम गोबर, एक-एक किलो गुड़ एवं बेसन, 100 ग्राम जीवाणुयुक्त मिट्टी, पांच लीटर गोमूत्र को अच्छे से मिला लें। 48 घंटे छांव में फैलाकर जूट की बोरी से ढंक दें। जीवामृत गोबर के साथ पानी में गोमूत्र, बरगद या पीपल के नीचे की मिट्टी, गुड़ और दाल का आटा मिलाकर तैयार किया जाता है। जीवामृत पौधों के विकास के साथ मिट्टी की संरचना सुधारने में मदद करता है।