राममंदिर निर्माण के संकल्प व संघर्ष का साक्षी रही तराई
राम नाम के जप से सरयू ने भी कारसेवकों के लिए समेट लिया था आंचल रामलला को मिला ठौर सूर्योदय के साथ अह्लादित हुई तराई
प्रदीप तिवारी, बहराइच : अयोध्या में रामजन्मभूमि मंदिर निर्माण शुभारंभ के साथ ही कलयुग के सबसे महत्व के दिन के रूप में पांच अगस्त हर रामभक्त के दिलो-दिमाग पर छाप छोड़ा है। खासकर रामलला के स्थाई ठौर मिलने से सूर्याेदय के साथ ही तराई अह्लादित हो उठी। रामजन्म भूमि के लिए जेल जाने से लेकर तमाम बंदिशों से गुजरे कारसेवकों में हर्ष है।
शहर के ब्राह्मणीपुरा निवासी राधारमन यज्ञसैनी उन कारसेवकों में हैं, जिन्होंने तराई में राममंदिर आंदोलन की अगुवाई की। वे बताते हैं कि अर्से तक चली लंबे संघर्ष के बाद भगवान राम अपने स्थान पर विराजमान हो रहे हैं। वर्ष 1990 में रामजन्म भूमि के समर्थन में सिद्धनाथ मंदिर से महिलाओं का जत्था ज्ञापन देने के लिए आगे बढ़ रहा था। घंटाघर पहुंचते ही पुलिस ने उन्हें व उनके छह समर्थकों को गिरफ्तार कर लिया। रात नौ बजे उन्हें, राकेश श्रीवास्तव, अर्जुन कुमार, दिलीप समेत सभी लोगों को पुलिस ने जीप में बैठाकर रातोंरात नैनीताल के सितारगंज जेल पहुंचा दिया। 27 दिनों के बाद उन्हें रिहा किया गया, तब तक तराई में आंदोलन की आग हर घर तक पहुंच चुकी थी। आखिरकार वह शुभ घड़ी आ गई, जब रामलला के मंदिर निर्माण का शुभारंभ हुआ। 28 साल से जो सपना देख रहे थे वह यकीन में बदल गया।
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गोंडा से गांव के रास्ते पहुंचे थे अयोध्या
वे बताते हैं कि पुलिस के कड़े पहरे को देखते हुए वे लोग गांवों से होते हुए अयोध्या पहुंचे। यहां पहले से ही सरयू माता मानों रामभक्तों के लिए खुद के आंचल को समेट चुकी थी। कमर भर पानी में वे लोग पांच दिसंबर की रात मुख्य स्थल पर पहुंच गए। विध्वंस के दौरान कई कारसेवकों को चोट लगने के बावजूद उत्साह कम नहीं हुआ। तभी से वे लोग मंदिर निर्माण का सपना संजोए हुए थे।
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छाले पड़े न हारे हिम्मत
75 वर्षीय यज्ञसैनी बताते हैं कि मीलों पैदल चलने के बाद भी पैरों में छाले पड़े न ही हिम्मत ने ही जवाब दिया, बस एक ही धुन थी कि अयोध्या पहुंचकर रामजन्म भूमि को मुक्त कराना है।