महाभारतकालीन माटी को लगा नीर का शाप
महाभारतकालीन बागपत की माटी पर पानी का अकाल हो गया है। ं
बागपत, जेएनएन। महाभारतकालीन बागपत की माटी पर पानी का अकाल हो गया है। भूजल रसातल में पहुंचने के बावजूद पानी सहेजने की जहमत नहीं उठा रहे हैं। हालात इतने विस्फोटक हैं कि दस साल से डार्क जोन की मार से कराह रहे बागपत के 50 गांवों में प्रदूषित हुआ भूजल लाखों बाशिदों की जान को आफत बन गया है। बागपत में भूजल गिरावट से दो दशक में दस हजार नलकूपों व कम गहरे में लगे 90 हजार हैंडपंपों के बोरिग फेल हो गए हैं। पानी की बर्बादी का अंदाजा इससे लगा सकते हैं कि बागपत में उपलब्ध वार्षिक भूजल 49368 हेक्टेयर मीटर में से 49 हजार हेक्टेयर मीटर पानी सालाना निकल रहे हैं। थोड़ी राहत यह है कि बागपत में भूजल विकास दर 98.50 फीसद है। कागजों में भूजल संरक्षण
भूजल संरक्षण का काम कागजों पर ज्यादा धरातल पर कम होता रहा है। एक हजार तालाबों का वजूद मिट चुका। सैंकड़ों तालाबों को खोदाई का इंतजार है। गन्ना खेती कम होने के बजाय 10 साल में 10 हजार हेक्टेयर बढ़ गई। गन्ना फसल की सिचाई में ज्यादा पानी खर्च होता है। नदियों से हुआ भूजल प्रदूषित
हिडन व कृष्णा नदी का पानी इतना प्रदूषित हो चुका है कि साल 2015 में एनजीटी के आदेश पर की गई जांच में इनका पानी पांच हजार गुना ज्यादा जहरीला मिला था। दोनों नदियों किनारे बागपत के 50 गांवों समेत पश्चिम यूपी के 109 गांवों का भूजल प्रदूषित होने से साल 2019 में 32 कैंसर मरीज दम तोड़ चुके हैं। बागपत में भूजल गिरावट का ब्योरा
ब्लाक वर्ष 2004 वर्ष 2019
बागपत 09.95 15.49
बड़ौत 11.36 17.34
बिनौली 19.35 26.78
छपरौली 11.04 15.28
खेकड़ा 11.23 20.98
पिलाना 10.13 21.95
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(उक्त भूजल गिरावट मीटर में है) इन्होंने कहा..
भूजल स्तर गिरने को बागपत का अटल भूजल योजना में चयन हुआ, जिसमें जल संचय के पांच करोड़ से ज्यादा के काम होंगे।
-पीसी जायसवाल, सीडीओ।