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सोने से भरी है बागपत के छोटे पहलवान की झोली, हौसले भी कुछ ऐसे ही

देश-दुनिया में अपनी ताकत की पताका फहराने वाले इस होनहार की झोली में कामयाबी के कई स्वर्ण तथा रजत पदक भरे हुए हैं।

By Dharmendra PandeyEdited By: Published: Thu, 07 Dec 2017 01:45 PM (IST)Updated: Thu, 07 Dec 2017 04:47 PM (IST)
सोने से भरी है बागपत के छोटे पहलवान की झोली, हौसले भी कुछ ऐसे ही
सोने से भरी है बागपत के छोटे पहलवान की झोली, हौसले भी कुछ ऐसे ही

बागपत [राजीव चौधरी]। यह सच है कि आसमां को झुकाना आसान नहीं है, लेकिन यदि हौसला आसमां से ऊंचा हो जाए तो पहाड़ जैसी ऊंचाइयां भी कोई मायने नहीं रखतीं। बागपत के छपरौली कस्बे के छोटे पहलवान अरशद के हौसले भी कुछ ऐसे ही हैं।

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नन्ही सी उम्र में मुफलिसी से जूझकर भी उसने अखाड़े की मिट्टी को सोने में बदल दिया। देश-दुनिया में अपनी ताकत की पताका फहराने वाले इस होनहार की झोली में कामयाबी के कई स्वर्ण तथा रजत पदक भरे हुए हैं।  

देश के पूर्व प्रधानमंत्री स्व. चौधरी चरण सिंह की कर्मस्थली रहे छपरौली क्षेत्र का नाम हमेशा सुर्खियों में रहा है। सियासी गलियारों के बाद यदि किसी ने इस छोटे से कस्बे का नाम रोशन किया है तो, वह हैं यहां की युवा पीढ़ी। कई पहलवानों को जनने वाली यहां की मिट्टी ने एक और पहलवान को जन्म दिया है। नाम है अरशद, उम्र है 16 साल। पिता अब्दुल्ला दूध का व्यवसाय करते हैं। परिवार की माली हालत ठीक नहीं है, लेकिन उसके पिता ने अपने पुत्रों को कामयाबी के शिखर पर पहुंचाने की कसम खा रखी है।

बचपन से ही अरशद को पहलवानों को देखने का शौक था। कस्बे के अखाड़े में जाकर वह पहलवानी के गुर सीखते पहलवानों को देखता था। 13 वर्ष की आयु में मां खातून से पहलवान बनने की ख्वाहिश रखी। बच्चे के जज्बे को देखकर माता-पिता ने उसे पहलवानी सिखानी शुरू कर दी। इसके बाद उसके कोच और अन्य पहलवानों ने सहारा दिया और अब वह देश-दुनिया में छपरौली का चमकता सितारा बन चुका है।

डाइट के लिए लिया था कर्ज

अब्दुल्ला बताते हैं कि अपने पुत्र की डाइट के लिए कर्ज लेना पड़ा। दूध के कारोबार से दो वक्त की रोटी मुश्किल से जुटा पाते हैं परंतु पुत्र को कभी अहसास नहीं होने दिया कि वह गरीब है। हमेशा उसका खर्च उठाया और अब उसे पहलवानी के साथ-साथ पढ़ाई भी करा रहे हैं। वह फिलहाल दसवीं में पढ़ रहा है। 

छोटे भाई भी हैं पहलवान

अरशद का छोटा भाई सावेज 14 वर्ष का है और भूरा साढ़े 12 वर्ष का है। अरशद उन्हें भी पहलवान बनाना चाहता है। वह दोनों भी स्टेट लेवल पर खेल चुके हैं।

अरशद की झोली में पदकों की झड़ी

अरशद ने वर्ष 2015 से पदक झटकने शुरू किए और अब उसकी झोली में एक दर्जन से अधिक स्वर्ण व दो दर्जन से अधिक अन्य पदक हैं। ग्रीको रोमन में खेलने वाला अरशद आज के नामी पहलवान सुशील को आदर्श मानता है और उन्हीं की तरह देश का नाम रोशन करना चाहता है।

यह हैं पदक

-2015 में सब जूनियर उत्तर प्रदेश चैंपियनशिप गोंडा में 42 किग्रा. भार वर्ग में तृतीय स्थान रहा।

-2015 में ही शिक्षा निदेशालय चैंपियनशिप गोंडा में स्वर्ण पदक जीता।

-नेशनल स्कूल गेम्स उज्जैन में भी स्वर्ण पदक झटका।

-2016 में 31वीं उत्तर प्रदेश सब जूनियर चैंपियनशिप शामली में भी स्वर्ण जीता।

-2016 नेशनल स्कूल गेम्स नई दिल्ली में भी स्वर्ण पदक।

-2017 में खेल निदेशालय उप्र. सब जूनियर राज्य स्तरीय चैंपियनशिप में 50 किग्रा. भार वर्ग में भी गोल्ड।

-2017 सब जूनियर नेशनल चैंपियनशिप आंध्र प्रदेश में भी स्वर्ण पदक झटका।

-2017 में वल्र्ड स्कूल गेम्स आगरा में भी गोल्ड जीता।

-2017 में सब जूनियर एशिया चैंपियनशिप थाईलैंड में स्वर्ण पदक जीता।


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