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नववर्ष में शहर को मिल जाएगी प्रदूषण से मुक्ति

बागपत जेएनएन। अमृत योजना के तहत नगर पालिका परिषद को मिला फीकल स्लज ट्रीटमेंट प्लांट का नि

By JagranEdited By: Published: Sat, 16 Oct 2021 10:02 PM (IST)Updated: Sat, 16 Oct 2021 10:02 PM (IST)
नववर्ष में शहर को मिल जाएगी प्रदूषण से मुक्ति
नववर्ष में शहर को मिल जाएगी प्रदूषण से मुक्ति

बागपत, जेएनएन। अमृत योजना के तहत नगर पालिका परिषद को मिला फीकल स्लज ट्रीटमेंट प्लांट का निर्माण अंतिम दौर है। इसमें 60 फीसद काम पूरा हो चुका और नूतन वर्ष में इसका उद्घाटन करने की योजना है। इसका निर्माण हो जाने से आने वाले 40-50 सालों तक शहर को शौचालय के टैंक से निकाली जाने वाली गाद से होने वाले प्रदूषण से मुक्ति मिल जाएगी और इसी के साथ किसानों को सस्ता व उपयोगी जैविक खाद और ट्रीटिड पानी मुहैया हो सकेगा।

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शहर के कोताना रोड पर जौनमाना गांव के पास नगर पालिका परिषद की करीब आठ बीघा जमीन सात हजार वर्ग मीटर पर 4.28 करोड़ रुपये की लागत से फीकल स्लज ट्रीटमेंट प्लांट बनाया जा रहा है, जो शहर को गंदगी एवं प्रदूषण से मुक्ति दिलाने में काफी अहम भूमिका निभाएगा। इस प्लांट के जरिये शौचालय टैंक के गाद से जैविक खाद बनाई जाएगी, जिसमें प्रतिदिन 32 केएलडी सैप्टिक टैंक के गाद की खपत संभव होगी। अभी तक सेप्टिक टैंक के गाद को टैंकों में भरकर खुले में सड़क के किनारे गिरा दिया जाता है, जिससे जहां बड़े पैमाने पर पर्यावरण प्रदूषित होता है और संक्रामक बीमारियां फैलती हैं। ट्रीटमेंट प्लांट से यहां आने वाली गंदगी को निस्तारित कर खाद बनाया जाएगा व पानी को साफ कर दूसरे प्रयोगों में लाया जाएगा। प्रदेश सरकार की अति महत्वाकांक्षी अमृत योजना के तहत कार्यदायी संस्था बागपत जल निगम इसका निर्माण करा रही है।

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30 हजार से ज्यादा घर कवर करने की क्षमता

अमृत योजना के अधिकारी और नगर पालिका के अर्बन विशेषज्ञ लोकेश कुमार बताते हैं कि 2011 की जनसंख्या के मुताबिक शहर में अभी 18615 मकान हैं, जबकि प्लांट की क्षमता 30 हजार घरों के फिकल को ट्रीटिड करने की है। इस लिहाज से आने वाले चार से पांच दशक तक प्लांट शहर को गंदगी से छुटकारा दिलाने में सक्षम है।

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जैविक खाद होगी बेहद कारगर

पालिका चेयरमैन अमित राणा ने बताया कि प्लांट से बनने वाली जैविक खाद अन्य रासायनिक खादों की अपेक्षा 20 गुना ज्यादा गुणकारी होगी। इस खाद को खेतों में डालने से रासायनिक खादों पर बढ़ती निर्भरता कम होगी और भूमि की उर्वरा शक्ति बढ़ेगी।


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