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श्रद्धापूर्वक मनाया धूप दशमी का पर्व

दशलक्षण पर्व के सातवें दिन जिनालयों में उत्तम तप धर्म को अंगीकार करते हुए धूप दशमी मनाया।

By JagranEdited By: Published: Thu, 16 Sep 2021 08:01 PM (IST)Updated: Thu, 16 Sep 2021 08:01 PM (IST)
श्रद्धापूर्वक मनाया धूप दशमी का पर्व
श्रद्धापूर्वक मनाया धूप दशमी का पर्व

बागपत, जेएनएन। दशलक्षण पर्व के सातवें दिन जिनालयों में उत्तम तप धर्म को अंगीकार करते हुए धूप दशमी का पर्व श्रद्धापूर्वक मनाया गया। इस दौरान मंदिरों में धूप चढ़ाने के लिए श्रद्धालुओं की भीड़ उमड़ी।

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श्री 1008 अजितनाथ दिगंबर जैन प्राचीन मंदिर में जैन श्रद्धालुओं ने सुबह धूप चढ़ाई। इसके बाद उत्तम तप धर्म की पूजा करते हुए श्री चौसठ ऋद्धि विधान का आयोजन किया गया। विधानाचार्य के मंत्रोच्चार के मध्य इंद्रगणों ने जिनेंद्र भगवान की प्रतिमा का प्रासुक जल से अभिषेक किया। शांतिधारा का सौभाग्य सोधर्म इंद्र सौरभ जैन एडवोकेट को प्राप्त हुआ। नित्य नियम पूजन में समुच्चय पूजन, दशलक्षण पूजन, सोलहकरण पूजा, शांतिनाथ भगवान की पूजा और नंदीश्वर दीप की पूजा की गई। संगीतकार अनुपमा जैन ग्वालियर के मधुर भजनों पर भक्तगण भावविभोर होकर झूम उठे। श्री चौसठ ऋद्धि विधान की पूजन में सोधर्म इंद्र सौरभ जैन ने जिनेंद्र भगवान की अष्ट द्रव्यों से पूजा की और मंडल पर 108 अ‌र्घ्य समर्पित किए। पंडित चंद्रप्रकाश ने उत्तम तप धर्म पर कहा कि इच्छाओं का निरोध, उन पर अंकुश लगाकर उन्हें शुभ की और परिवर्तित करना तप है। मन, वचन, काय को एकाग्रचित करना तप है। विषय लोलुपता को त्यागकर ज्ञान, ध्यान की आराधना तप है। विनय, सेवा, स्वाध्याय और उपवास तप है। जिस प्रकार अग्नि ईंधन को भस्म करती है, उसी प्रकार तप की अग्नि कर्मों के ईंधन को भस्म करती है। मात्र तन की तपस्या जीवन को तमाशा और तन मन की तपस्या जीवन को तीर्थ बना देती है। विधान में मुकेश जैन, प्रदीप जैन, वरदान जैन, अमित जैन, अरुण जैन, संजय जैन, अशोक जैन, अनिल जैन, इंद्राणी जैन, त्रिशला जैन, रश्मि जैन, डिपल जैन, सरला जैन आदि मौजूद रहे।

उधर, श्री 1008 पा‌र्श्वनाथ मंदिर में गुरुवार को तेरह द्वीप महामंडल विधान के अंतर्गत पंडित नेमचंद जैन के निर्देशन में सर्वप्रथम श्री जी का प्रक्षालन, अभिषेक किया गया। शांति धारा का सौभाग्य सौधर्म इंद्र सतेंद्र जैन, कुबेर इंद्र अमित जैन, यज्ञ नायक ऋषभ जैन, महेंद्र इंद्र अतिशय व ललित जैन, तुषार जैन, राजीव जैन, सार्थक जैन को प्राप्त हुआ। तेरहद्वीप महामंडल विधान में चालीस अ‌र्घ्य अर्पित किए गए। इस अवसर पर पंडित नेमचंद ने कहा कि जो साधक उत्तम तप धर्म अपनाते हैं, उनको उत्तम क्षमा जैसे गुण धर्म भी अपनाना अनिवार्य होता है। तभी धर्म का स्वरूप सज पाता है। धर्म आत्मा में उतरता है और अपनी इच्छाओं को सीमित करना उन पर नियंत्रण करना भी तप है तथा तप भी वही साधक या व्यक्ति कर सकता है जो अपनी इच्छाओं को नियंत्रित कर लेता है। सायंकाल मंदिर में भजन संध्या का शुभारंभ पंडित नेमचंद ने मंगलचारण से किया। भगवान पा‌र्श्वनाथ की आरती के साथ कार्यक्रम का समापन हुआ। संचालन प्रदीप जैन ने किया।


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