..शरमा के बोलती थीं जो वो अंखियां नहीं रहीं
शाम ए गजल में काव्य की सप्तगंगा बही। कभी श्रृंगार ने श्रोताओं को गुदगुदाया तो कभी ओज की पंक्तियों ने जोश का संचार किया।
संस, बिसौली : शाम ए गजल में काव्य की सप्तगंगा बही। कभी श्रृंगार ने श्रोताओं को गुदगुदाया तो कभी ओज की पंक्तियों ने जोश का संचार किया। सांस्कृतिक एवं साहित्यिक परिषद की ओर से आयोजित काव्य संध्या का शुभारंभ डॉ.सोनरूपा विशाल और परिषद के संरक्षक सुभाष अग्रवाल एवं सीओ सर्वेंद्र सिंह ने किया।
नगर के युवा कवि अमीरूद्दीन अमीर ने बिगड़ते सामाजिक संबंधों पर तीखा प्रहार करते हुए कहा, जहां बूढी आंखे उजाले को तरसें, वो शीशे के घर मेरे किस काम के हैं। शब्बर खान शब्बर ने सुनाया, विरह ने फूंक डाला मेरा तन मन अब तो आ जाओ, चिता की गोद में आ पहुंचा जीवन अब तो आ जाओ। देहरादून से पधारे युवा कवि डॉ.नितिन सबरंग ने बढते अर्थयुग पर कटाक्ष किया। कहा, रटते रटते लक्ष्मी सरस्वती दई विसराय, जा कारण ही जगत में उल्लू भये सबाय। मशहूद खां हमदम ने दार्शनिक अंदाज में कहा, जिदगी उनसे झुक कर मिलती है, मौत के साए में जो पलते हैं। युवा कवि अभीक्ष पाठक आहत ने कहा, शाम होते होते ही गिरा करती है कीमत आहत मुझको उठते हुए बाजार से डर लगता है। गजलकार श्रीदत्त मुंतजर विसौलवी ने सुनाया, मौत ही अब हमें मिलाएगी। ऐसे बिछड़े हैं आशियाने से। चंदौसी से आए विनीत आश्ना ने संयोग श्रृंगार का सुंदर व्याख्यान किया। कहा, तुझ सी बातें तेरे हमशक्ल नहीं कर सकते, फूल इतनी भी तेरी नक्ल नहीं कर सकते। अंतरराष्ट्रीय स्तर पर अपनी कविताओं से धूम मचाने वाली डॉ.सोनरूपा विशाल ने आज के हालात को कुछ यूं बयां किया। कहा, गुड़ जैसी वो मिठास है लहजे में याब कहां, शरमा के बोलती थीं जो वो अंखियां नहीं रहीं। पूर्व प्रधानाचार्य और परिषद के संस्थापक डॉ.अवधेश पाठक, युवा कवि प्रवीण नादां, मयंक चौहान ने भी काव्य पाठ किया। बदायूं का नाम रोशन करने वाली कवियत्री डॉ.सोनरूपा विशाल का सम्मान किया।