तीमारदार परेशान, मरीज को भगवान के सहारे छोड़ करते डाक्टर का इंतजार
जागरण संवाददाता बलरामपुर (आजमगढ़) ट्रामा सेंटर। इस शब्द के जेहन में गूंजते ही आपात से
जागरण संवाददाता, बलरामपुर (आजमगढ़) : ट्रामा सेंटर। इस शब्द के जेहन में गूंजते ही आपात सेवा की बात गूंजने लगती है। लेकिन यहां भी पहुंचने के बाद चिकित्सकों को ढूंढ़ना पड़े तो सरकार व व्यवस्था पर सवाल उठना लाजिमी है। ऐसा नहीं कि चिकित्सक नहीं है, बस ड्यूटी वाली सूची बोर्ड में उनके नाम दर्ज नहीं किए जा रहे। ऐसे में मरीज बेचारा बन जा रहा कि आखिर हड्डी के छह डॉक्टरों में किसे इलाज के ढूंढ़े। ऐसे में बहुतेरे मरीज निजी अस्पतालों का रुख कर ले रहे तो खाली जेब वाले मरीज को भगवान के आसरे छोड़ डाक्टर का इंतजार करने लग जाते हैं। सबकुछ जानने के बाद भी जिम्मेदार खामोशी की चादर ओढ़े गरीबों की बेबसी का तमाशा देखते रहते हैं।
उत्तर प्रदेश सरकार स्वास्थ्य सेवाओं में सुधार के दम भर रही है। व्यवस्थाओं को सच्चाई की कसौटी पर परखें तो समझ आएगा कि जिम्मेदारों के रवैये से सरकार के हिस्से में सिर्फ बदनामी आ रही है। मंडलीय अस्तपाल में ट्रामा सेंटर में ऐसा ही कुछ हो रहा है। ट्रामा सेंटर में घायलों, गंभीर बीमार अपनों को लेकर पहुंच रहे तीमारदाों के समक्ष चिकित्सकों को ढूंढ़ना बड़ी चुनौती साबित हो रही है। यहां प्रतिदिन करीब ढाई सौ मरीजों के पहुंचने के कारण पहले से भीड़-भाड़ में चुनौतियां बढ़ जाती है। हालांकि, अस्पताल प्रशासन ने इसके लिए साइन बोर्ड पर ड्यूटी लिस्ट चस्पा करने की व्यवस्था कर रखी है। लेकिन इधर चिकित्सकों के ड्यूटी की सूची चस्पा नहीं की जा रही है। ऐसे में मजबूरी में मरीज का अधिकांश समय डाक्टरों को ढूंढ़ने में ही बीत जाता है। कमोबेश यही स्थिति आन काल चिकित्सकों की रहती है। जिला अस्पताल परिसर में रहने वाले चिकित्सक तो मिल जाते हैं, जबकि मुख्यालय से दूर रहने वाले चिकित्सक जरूरत पर पहुंच ही नहीं पाते हैं।