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घाघरा के जलस्तर में उतार-चढ़ाव जारी, गांव बने टापू

(आजमगढ़) लगातार हुई बारिश के बीच सगड़ी तहसील के उत्तरी सीमा से होकर गुजरने वाली घाघरा नदी के जलस्तर में उतार-चढ़ाव की स्थिति बनी हुई है। बुधवार को बदरहुआ नाला गेज पर 24 घंटे में मात्र दो सेमी की कमी दर्ज की गई। तटवर्ती इलाकों में रहने वाले बुजुर्ग अपनी आंखों की कमजोर हो चुकी रोशनी से लहरों को निहार रहे हैं। सड़क पर भरे पानी में किसी खतरे से बेपरवाह बच्चे कागज की कश्ती (नाव) चलाने की कोशिश कर रहे हैं। पूरा गांव एक अजीब से सन्नाटे में लिपटा था।

By JagranEdited By: Published: Wed, 02 Oct 2019 10:52 PM (IST)Updated: Wed, 02 Oct 2019 10:52 PM (IST)
घाघरा के जलस्तर में उतार-चढ़ाव जारी, गांव बने टापू
घाघरा के जलस्तर में उतार-चढ़ाव जारी, गांव बने टापू

जासं, सगड़ी/रौनापार (आजमगढ़) : बारिश बीच सगड़ी तहसील के उत्तरी सीमा से होकर गुजरने वाली घाघरा नदी के जलस्तर में उतार-चढ़ाव की स्थिति बनी हुई है। बुधवार को बदरहुआ नाला गेज पर 24 घंटे में मात्र दो सेमी जलस्तर में कमी दर्ज की गई है। तटवर्ती इलाकों में कटान देख लोग दशहत में हैं। बुजुर्ग भी कम हो चुकी आंख की रोशनी से लहरों को निहार रहे हैं। वहीं खतरों से बेपरवाह बच्चे कागज की कश्ती (नाव) चलाने में मशगूल रहे। पूरा गांव एक अजीब से सन्नाटे में है। प्रशासन से लोगों की मदद की दरकार है।

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सगड़ी तहसील के बाढ़ प्रभावित देवाराखास राजा, मुराली का पुरवा, त्रिलोकी का पुरवा, महाजी देवरा, बगहवा, झगरहवा, महाजी देवारा जदीद, परशमनपुर व सेमरी गांव जब जागरण टीम पहुंची तो लोग बड़ी उम्मीद से निहारते रहे। गांव के लोगों ने बताया कि दर्जनों लोगों का घर गांव के निचले हिस्से में हैं। पीड़ित ग्रामीणों का कहना था कि पिछले पांच दिन से बाढ़ का पानी लगातार गांव की तरफ बढ़ता आ रहा था। इस कारण नींद भी पूरी नहीं हो पा रही है। जब घर में पानी आ गया तो आनन-फानन लोग अपने जरूरी समान समेटने लगे। परसिया गांव के 68 परिवार के लोग प्राथमिक विद्यालय में शरण ली। पानी लगने के कारण घर गिरने का भी खतरा है। ऐसे में दरवाजा बंद कर सभी लोग आश्रय स्थल पर आ गए। वहीं नदी का जलस्तर बदरहुआ नाला गेज पर खतरा बिदु 71.68 मीटर से मात्र 18 सेमी नीचे बह रहा है।

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दहशत व बच्चों की मस्ती के बीच गुजरते दिन

जासं, सगड़ी (आजमगढ़) : घाघरा की बाढ़ ने सगड़ी तहसील के देवारा खास राजा, मुराली का पुरवा सहित आधा दर्जन गांव को टापू में तब्दील कर रखा है। गांवों के चारों तरफ पानी ही पानी है। बहुतायत इसके बाद भी अपने घर को खाली नहीं कर रहे हैं। सारा दिन नदी के पानी को देख रहे हैं। आंख में खौफ भी है लेकिन बच्चों की मस्ती बीच यूं ही एक एक दिन गुजर रहे हैं। बस, इस उम्मीद के साथ ही कि पानी एक दो दिन में नीचे चला जाएगा। दैनिक जरूरत का समान आदि लेने के लिए लोग नाव के जरिए बाहर आते हैं। सामान खरीद फिर गांव में चले जाते हैं। हालांकि इस बीच यह चर्चा ज्यादा रहती है कि 1998 वाली बाढ़ न आ जाए, वरना बहुत नुकसान झेलना पड़ेगा। कुछ लोग तो उस बाढ़ की दास्तान बयां करने से नहीं अघाते।


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