आस्था का पर्व डाला छठ की तैयारियां अभी से शुरू, नदी-सरोवरों के किनारे वेदी बनाने में जुटे आस्थावान
आस्था का पर्व छठ की तैयारी अभी से ही शुरू हो गई है। शहर से लेकर गांवों तक इसकी उत्साह देखने को मिल रहा है।
आजमगढ़, जेएनएन। आस्था का पर्व डाला छठ की तैयारियां अभी से शुरू हो गई है। शहर से लेकर गांवों तक उत्साह देखने को मिल रहा है। घर के बच्चे और नौजवानों की टोली नदी-सरोवर के किनारे बेदी बनाने के लिए पहुंचने लगे हैं। कहीं-कहीं परंपरा के अनुसार बेदी निर्माण के बाद व्रती महिलाएं बेदी का पूजन कर छठ पूजा का संकल्प लेती हैं। इस पर्व में साफ-सफाई का खास महत्व है और इसे देखते हुए नगर निकाय प्रशासन की ओर से भी पहल शुरू कर दी गई है। घाटों की साफ-सफाई के साथ ही लाइ¨टग की व्यवस्था शुरू कर दी गई है। उधर छठ पर्व को लेकर बाजार गुलजार हो गई है। दुकानें भी सजने लगी हैं। गांव से लेकर शहर तक छठ को लेकर घाट व तालाब की साफ-सफाई के साथ-साथ लाइ¨टग एवं बेदी बनाई जा रही हैं। रोजी-रोटी के लिए अन्य प्रदेशों में रहने वाले लोग घरों को लौटने लगे हैं। लोगों के उत्साह को देखते हुए रोडवेज द्वारा बसों को सुचारू रूप से संचालित कराने के लिए पूरी तैयारी करा ली गई है। दिल्ली, कानपुर, प्रयागराज, गोरखपुर सहित अन्य शहरों के लिए रोडवेज की सेवाएं बढ़ा दी गई हैं। फल की दुकानों में तरह-तरह के फल पहुंचने लगे हैं। कुल मिलाकर अभी लोगों का पूरा ध्यान घाटों की साफ-सफाई और बेदी निमार्ण पर केंद्रित है।
पारंपरिक गीतों की महत्व एवं धूम उगते व डूबते सूर्य की पूजा के पर्व छठ में पारंपरिक गीतों का आज भी महत्व है। इसमें ही पूजा की विधि व उसकी पवित्रता झलकती है। पर्व की महिमा का तरह-तरह से बयान किया जाता है। इसके गीत लोक राग पर आधारित होते हैं। महीनों से शुरू होकर सप्तमी को सूर्योदय के समय अर्घ्य देने के बाद एक साल के लिए स्थगित हो जाता है। 'कांचही बांस के बहंगिया, बहंगी लचकत जाए', 'पेन्ह ना कवन बाबा पियरिया, बहंगी छोटे चहुंपाए' जैसे गीत यह स्पष्ट संदेश देते हैं कि त्योहारों व व्रतों के प्रति कैसी आस्था होनी चाहिए। यह व्रत फलों पर भी आधारित है। सभी फल साफ, स्वच्छ व पवित्र होना चाहिए। जैसे 'केरवा जे फरेला घेवद से, सुग्गा दिहले जुठियाई, सुगवा के मरबो धनुख से, सुग्गा गिरे मुरझाए' यानी पवित्रता में कहीं से दाग न लगे, यह प्रदर्शित करता है। व्रती लोग निर्जला व पूर्ण उपवास रहते हैं। इसलिए सूर्य देवता से प्रार्थना करते हैं कि 'हाली, हाली उगु ए सुरुजदेव, भइले अरघ के बेर, अब जनि छिपा ए अदित देव, जल्दी होखा ना सहाय'। छठ माता को आधार मानकर सूर्यदेव की श्रद्धा के साथ पूजा की जाती है। 'कोपि-कोपि बोलेली छठीय मइया, सुनु भगत हमार, मोरा घाटे घसिया उपजि गइली, जल्दी देत कटवाय'। इस पर्व के माध्यम से स्वच्छता पर विशेष ध्यान दिया जाता है।
पहले की अपेक्षा व्रती महिलाओं की संख्या बढ़ गई है। पूजा सामग्री की कीमत में ज्यादा उछाल आ गया है। प्रशासन द्वारा महिलाओं की सुरक्षा की व्यवस्था की जानी चाहिए। -शालिनी सिंह, बेलनाडीह।
आस्था का पर्व छठ का व्रत पिछले नौ वर्षों से कर रही हूं, इस व्रत से वर्ष भर परिवार में सुख-शांत का अहसास होता है। अभी से ही दउरा व सुपेली की खरीदारी शुरू हो गई है, क्योंकि बाद में बाजार में उपलब्ध न होने से परेशानी होती है। -सुमन जायसवाल, ठंडी सड़क।
छठ पर्व को लेकर साल भर इंतजार रहता है। लोगों से इस पर्व के महत्व के बारे में सुना और पिछले दस वर्षों से छठ का व्रत रख रही हूं। इससे परिवार में वर्ष भर बहुत प्रसन्नता रहती है। -ममता, गवडीह खालसा।
छठ का व्रत तो खुद नहीं करती लेकिन कई वर्षों से व्रतियों के साथ पूजा में शामिल रहती हूं। छठ का काफी महत्व है। छठ का पूरे वर्ष इंतजार रहता है। जबसे इस पूजा में शामिल हो रही हूं तबसे पूरा परिवार पहले से ज्यादा खुशहाल रहता है। -योगिता अग्रवाल, चौक।
घाटों की साफ-सफाई एवं लाइ¨टग की व्यवस्था के लिए कर्मचारी लगाए गए हैं। घाटों पर चूना एवं ब्ली¨चग पाउडर का छिड़काव कराया जा रहा है। छठ से पूर्व सभी तैयारियां पूर्ण कर ली जाएंगी। -शुभनाथ प्रसाद, ईओ नगर पालिका आजमगढ़।