परदेश से लौट रहे, 70 साल बाद नए युग की होगी शुरुआत
आजमगढ़ बस से उतरते ही घर जाने की बेताबी। भूख-प्यास के बाद भी सबसे पहले स्क्रीनिग कराने का गजब का उत्साह दिख रहा था। लगातार अपने लोगों से बात किए जा रहे थे। यह नजारा शनिवार को रोडवेज स्टेशन पर देखने को मिली जब अलीगढ़ मुस्लिम यूनिवर्सिटी के छात्र रोडवेज बस से अपने घर पहुंच रहे थे।
जागरण संवाददाता, आजमगढ़ : परिवहन निगम की बस से उतरते ही घर जाने की बेताबी। भूख-प्यास के बाद भी सबसे पहले थर्मल स्क्रीनिग कराने की जल्दी। लगातार अपनों से बात किए जा रहे थे। यह स्थिति शनिवार को रोडवेज पर देखने को मिली, जब तीन जिलों के मजूदर और (एएमयू) अलीगढ़ मुस्लिम यूनिवर्सिटी के छात्र-छात्राएं जिले में पहुंचे। दैनिक जागरण के बातचीत में दिल की बात साझा किए। प्रवासी मजदूरों के चेहरे के भाव साफ बता रहे थे कि आजादी के 70 साल बाद पहली बार नए युग की शुरुआत कर रहे है, जो कोरोना के चलते संभव हुआ। बहरहाल, कोरोना हारेगा, देश जीतेगा और अब परदेश के बजाय गांव में दादा, काका और अन्य स्वजनों व दोस्तों के साथ समय बीतेगा और गांव स्तर पर रोजगार के अवसर भी मिलेंगे।
शनिवार को झांसी एक, कानपुर से तीन, गुजरात से 10 श्रमिक एवं एएमयू से 60 छात्र-छात्राओं को लाया गया। बातचीत में बताया कि पिछले डेढ़ माह से हॉस्टल के कमरे में कैद थे। उन्हें बाहर नहीं निकलने दिया जाता था। खाने-पीने एवं परिवार की चिता के कारण पढ़ाई भी नहीं हो पा रही थी। लॉकडाउन के बाद डेढ़ माह से हॉस्टल में कैद की तरह अपनी जिदगी बिता रहे थे। घर पहुंचने की खुशी उनके चेहरे पर झलक रही रही थी।
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निक्कू कहिन, कोरोना ठीक
होगा तभी जाएंगे परदेश
गुजरात से आए मजदूर निक्कू ने बताया कि लॉकडाउन के बाद काम बंद हो गया। खाने की समस्या उत्पन्न हो गई। पैदल ही घर की ओर चल दिया। रास्ते में बस मिली तो घर पहुंच रहा हूं। बताया कि जब तक कोरोना वायरस का संक्रमण पूरी तरह खत्म नहीं हो जाता तब तक परदेश नहीं जाने वाले हैं।
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जेल के कैद की तरह हॉस्टल
में बीता डेढ़ माह
फोटो---14-सी।
''यूनिवर्सिटी से पीजी की पढ़ाई कर रही हूं। तरह-तरह की बातें सुनकर बड़ी घबराहत होती है। अफवाहों के कारण बस से घर आने की हिम्मत नहीं ले रही थी। लोग पैदल ही घर के लिए निकल रहे थे यह सोचकर मन बहुत दुखी होता था। दो साल की पढ़ाई में आज दूसरी बार बस से आई हूं। लखनऊ तक बहुत परेशानी हुई। उसके बाद आराम था।
-नगमा बानो, लालगंज।
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''अलीगढ़ में 12वीं की पढ़ाई कर रही हूं। 24 मार्च से पेपर था और 18 मार्च से ही छुट्टी हो गई थी। स्कूल बंद होने से पढ़ाई भी नहीं हो पा रही थी। खाने-पीने की समस्या थी। हॉस्टल की सुविधाएं कम हो रही थीं। कोरोना के कारण पढ़ाई में मन नहीं लग रहा था और परिवार की चिता बनी रहती थी।
-जोया खान, पहाड़पुर।
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फोटो--16-सी।
''अलीगढ़ यूनिवर्सिटी के हॉस्टल में रहकर एमएससी कर रहे हैं। 23 मार्च को घर आने के लिए टिकट बुक था लेकिन 22 से ही लॉकडाउन लग गया। पहले तो हॉस्टल में खाना मिल जाता था लेकिन अब धीरे-धीरे समस्या हो रही थी। कमरे से निकलकर मेस में खाना खाने और उसके बाद कमरे में चले जाते थे।
-अब्दुल्लाह, बिलरियागंज।
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''अलीगढ़ यूनिवर्सिटी से एमए कर रहे हैं। कोरोना के बढ़ते संक्रमण को सुनकर रूह कांप जाता था। अलीगढ़ में बढ़ते मरीज के भय से परिवार वाले भी परेशान रहते थे। डेढ़ माह से फंसे थे। बस शुरू की गई तो हॉस्टल भी खाली कराया जाने लगा। आज घर पहुंच जाउंगा। बहुत सुकून मिल रहा है।
मो. उमर, ऊदपुर फूलपुर।
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फोटो---18-सी।
''यूनिवर्सिटी में पैथोलॉजी की पढ़ाई कर रहे हैं। लॉकडाउन से हम लोग फंस गए थे। अब खाने-पीने की भी समस्या होनी शुरू हो गई थी। जिस क्षेत्र में रहते थे वहां की स्थिति कुछ ठीक थी लेकिन लोगों को बाहर निकलने नहीं दिया जा रहा था। कोरोना को लेकर काफी भयभीत थे।
शहनवाज, फूलपुर।
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फोटो---19-सी।
''अलीगढ़ से पीजी डिप्लोमा कर रहा हूं। शुरू में जब लॉकडाउन लगा तो सबकुछ ठीक था लेकिन मरीज बढ़ने के साथ समस्याएं भी बढ़ रही थीं। हॉस्टल भी खाली करा दिया गया। यूपी के जितने बच्चे हॉस्टल में थे वे बस पकड़कर अपने जिलों के लिए निकल पड़े। थर्मल स्क्रीनिग के बाद बस में बैठने दिया गया।
-मो. साद, आजमगढ़।