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पाठकों की संख्या कम पर शिब्ली की लाइब्रेरी का क्रेज जस का तस

आजमगढ़ : सोशल मीडिया के बढ़ते स्वरुप की वजह से पाठकों की संख्या भले ही कम हुई हैं लेकिन दारूलमुसन्निफिन शिब्ली एकेडमी आज भी सांस्कृतिक विरासत को सजोए हुए है। यह एशिया के पुस्तकालयों में शुमार है और आज शोध एवं ज्ञान का केंद्र बन चुका है। इस एकेडमी में तकरीबन 750 पाण्डुलिपियां मौजूद हैं। हस्तलिखित पाण्डुलिपियों में अबुलफजल द्वारा लिखित फारसी पुस्तक अकबरनामा

By JagranEdited By: Published: Fri, 16 Nov 2018 08:31 PM (IST)Updated: Sat, 17 Nov 2018 12:29 AM (IST)
पाठकों की संख्या कम पर शिब्ली की लाइब्रेरी का क्रेज जस का तस
पाठकों की संख्या कम पर शिब्ली की लाइब्रेरी का क्रेज जस का तस

आजमगढ़ : सोशल मीडिया के बढ़ते प्रभाव की वजह से पाठकों की संख्या भले ही कम हुई हैं, लेकिन दारूलमुसन्निफिन शिब्ली एकेडमी आज भी सांस्कृतिक विरासत को संजोए हुए है। यह एशिया के पुस्तकालयों में शुमार है और आज शोध एवं ज्ञान का केंद्र बन चुका है। इस एकेडमी में तकरीबन 750 पांडुलिपियां मौजूद हैं। हस्तलिखित पांडुलिपियों में अबुल फजल द्वारा लिखित फारसी पुस्तक अकबरनामा 830 पृष्ठों की है। शाहजहां की पुत्री जहांआरा की 'अल-अरवाह' और 'सिर्रे अकबर' ¨हदू धर्म के प्रसिद्ध उपनिषदों का अनुवाद भी यहां पुस्तकालय में मौजूद है।

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इसी तरह दर्शन तथा मनोविज्ञान पर आधारित पुस्तक दानिशनामा जहां को 606 हिजरी में हकीम गयासुद्दीन अली बिन अली ने लिखा। यह पुस्तक भी लाइब्रेरी में रखी हुई है। इस पुस्तक के बारे में कहा जाता है कि यह तैमूर लंग के समय लिखी गई होगी। उपनिषद और महाभारत की फारसी पांडुलिपि भी यहां मौजूद है। खुलासत-उल-तवारिक नामक प्रसिद्ध रचना की हस्तलिपि को 1118 हिजरी में सुजान राय ने तैयार किया था जो एकेडमी में रखी है। प्रसिद्ध प्राचीन पुस्तकें लाइब्रेरी की विविधता को दर्शाती हैं। इसके अलावा तमाम दुर्लभ पुस्तकें इस एकेडमी मे देखने को मिल जाएगी। 15 एकड़ में स्थापित इस संस्थान में उर्दू, अरबी, फारसी, अंग्रेजी व हिन्दी में लिखी हुई एक लाख से अधिक पुस्तकें मौजूद हैं। यहां विभिन्न जनपदों से पाठक अभी भी अध्ययन करने आते हैं। शिब्ली एकेडमी में है पुस्तकों का भंडार

एकेडमी के लिए निरंतर प्रयासरत सीनियर रिसर्च फेलो एवं मआरिफ के संपादक उमैर नदवी का कहना है कि शिब्ली एकेडमी पुस्तकों का भंडार है। यहां आने वाला हर पाठक कुछ न कुछ लेकर जाता है। यहां की किताबें लोगों को अध्ययन कराती हैं और एक-एक बारीकियों के बारे में बताती हैं। यहां की पुस्तक पढ़ने के लिए गैर जनपद से लोग सुबह ही आ जाते हैं। पुस्तकालय में अध्ययन करने के बाद चले जाते हैं। खासकर पीएचडी करने वाले छात्रों के लिए यह पुस्तकालय पूरी तरह से सहायक साबित हो रहा है। इसके अलावा शिब्ली कालेज में पढ़ने वाले छात्र भी पुस्तकालय में आकर दिनभर ज्ञानार्जन करते हैं। सोशल मीडिया की वजह से पाठकों की संख्या थोड़ा कम जरूर हुई है, लेकिन किताबों की दुनिया अब भी शुमार है।


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