नेत्र बैंक सुविधा का अभाव, नेत्रहीनों को नहीं मिल रही रोशनी
आजमगढ़ आंखों का महत्व तो हम सब समझते हैं और इसीलिए इसकी सुरक्षा भी हम बड़े पैमाने पर करते हैं। हममें से बहुत कम होते हैं जो अपने साथ दूसरों के बारे में भी सोचते हैं। दुनिया में हर चीज को देखने के लिए हमारे पास आंखों का ही सहारा होता है। बिन आंखों के यह दुनियां कैसी होगी? क्या कभी किसी ने सोचा है। चारो तरफ अंधेरा ही अंधेरा मालूम होगा।
जागरण संवाददाता आजमगढ़ : आंखों का महत्व तो हम सब समझते हैं और इसीलिए इसकी सुरक्षा भी हम बड़े पैमाने पर करते हैं। हममें से बहुत कम होते हैं जो अपने साथ दूसरों के बारे में भी सोचते हैं। दुनिया में हर चीज को देखने के लिए हमारे पास आंखों का ही सहारा होता है। बिन आंखों के यह दुनियां कैसी होगी? क्या कभी किसी ने सोचा है। चारो तरफ अंधेरा ही अंधेरा मालूम होगा। आंखें ना सिर्फ हमें रोशनी दे सकती हैं बल्कि हमारे मरने के बाद वह किसी और की जिदगी से भी अंधेरा हटा सकती हैं। इसके लिए नेत्रदान की जरूरत होती है। ऐसे में महत्वपूर्ण नेत्रदान करने के लिए जनपद में नेत्र बैंक की सुविधा नहीं है। इसकी वजह से इसका लाभ नेत्रहीनों की फौज को नहीं मिल पा रहा है। इसके लिए लोगों को वाराणसी, लखनऊ, गोरखपुर सहित आदि बड़े शहरों का सहारा लेना पड़ता है। हर साल स्वास्थ्य विभाग की तरफ से नेत्र पखवारा मनाया जाता है लेकिन इस तरफ किसी का ध्यान नहीं जा रहा है।
वरिष्ठ नेत्र रोग विशेषज्ञ डा. आरबी सिंह की मानें तो हमारे नेत्र का काला गोल हिस्सा 'कार्निया' कहलाता है। यह आंख का पर्दा है जो बाहरी वस्तुओं का चित्र बनाकर हमें ²ष्टि देता है। यदि कार्निया पर चोट लग जाए इस पर झिल्ली पड़ जाए या इस पर धब्बे पड़ जाएं तो दिखाई देना बंद हो जाता है। हमारे देश में करीब ढ़ाई लाख लोग हैं जो कि कर्निया की समस्या से पीड़ित हैं। इन लोगों के जीवन का आंधेरा दूर हो सकता है यदि उन्हें किसी मृत व्यक्ति का कार्निया प्राप्त हो जाए। लेकिन डाक्टर किसी मृत व्यक्ति का कार्निया तब तक नहीं निकाल सकते जब तक कि वह व्यक्ति अपने जीवनकाल में ही नेत्रदान की घोषणा लिखित रूप में ना कर दे। व्यक्ति के देहांत के छह घंटे के अन्दर उसका कार्निया निकाला जा सकता है।
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मरने के आठ घंटे के अंदर होगा नेत्रदान
नेत्रदान करने वाले व्यक्ति की मृत्यु के छह से आठ घंटे के अंदर ही नेत्रदान कर देना चाहिए। जिस व्यक्ति को नेत्रदान के कार्निया का उपयोग करना है। उसे 24 घंटे के भीतर ही कार्निया प्रत्यारोपित कराना जरूरी होता है। नेत्रदान का मतलब शरीर से पूरी आंख निकालना नहीं होता। इसमें मृत व्यक्ति की आखों के कार्निया का उपयोग किया जाता है। नेत्रदान की प्रकिया मृत्यु के कुछ घंटों के अंतराल में की जाती है और इससे किसी भी तरह की कोई परेशानी नहीं होती। एक मृत व्यक्ति के नेत्र को एक नेत्रहीन को दे दी जाती है जिससे उस नेत्रहीन के जीवन में उजाला हो जाता है।
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नेत्रदान एक राष्ट्रीय आवश्यकता
भारत मे करीब 1.25 करोड लोग दृष्टिहीन है। इसमें से करीब 30 लाख व्यक्ति नेत्ररोपण द्वारा दृष्टि पा सकते हैं। सारे दृष्टिहीन नेत्ररोपण द्वारा दृष्टि नहीं पा सकते क्योंकि इसके लिए पुतलियों के अलावा नेत्र संबंधित तंतुओं का स्वस्थ होना जरूरी है। पुतलियां तभी किसी दृष्टिहीन को लगाई जा सकती है जबकि कोई इन्हें दान में दे। नेत्रदान केवल मृत्यु के बाद ही किया जा सकता है।
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आई बैंक के लिए शासन को कई बार लिखा जा चुका है। इसके बावजूद अभी तक पहल नहीं की गई है। केवल शासन की तरफ से एक प्राइवेट अस्पताल को कार्नियां ट्रांसप्लांट की सुविधा अभी जल्द ही दी गई है।
-एके मिश्रा, सीएमओ