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आस्था को मिला परवाज, नहाय-खाय संग डाला छठ पर्व का आगाज

आजमगढ़ बिहार के प्रमुख पर्व डाला छठ को लेकर जिले में भी उत्साह का माहौल है। गुरुवार को भोजन में लौकी मिश्रित चने की दाल चावल और रोटी का सेवन करने के साथ तीन दिवसीय महापर्व सूर्यषष्ठी व्रत (डाला छठ) की तैयारी तेज हो गई। बिहार में पहले दिन के व्रत को नहाय-खाय कहा जाता है और भोजन में दूसरी सब्जी का प्रयोग नहीं होता।

By JagranEdited By: Published: Thu, 31 Oct 2019 06:03 PM (IST)Updated: Thu, 31 Oct 2019 06:03 PM (IST)
आस्था को मिला परवाज, नहाय-खाय संग डाला छठ पर्व का आगाज
आस्था को मिला परवाज, नहाय-खाय संग डाला छठ पर्व का आगाज

जागरण संवाददाता, आजमगढ़ : प्रमुख पर्व डाला छठ को लेकर जिले में भी उत्साह का माहौल है। गुरुवार को भोजन में लौकी मिश्रित चने की दाल, चावल और रोटी का सेवन करने के साथ तीन दिवसीय महापर्व सूर्यषष्ठी व्रत (डाला छठ) की तैयारी तेज हो गई। बिहार में पहले दिन के व्रत को नहाय-खाय कहा जाता है और भोजन में दूसरी सब्जी का प्रयोग नहीं होता। हालांकि यहां ज्यादातर महिलाएं केवल छठ के दिन व्रत रखती हैं, लेकिन जहां तीन दिन का व्रत होता है वहां सुबह से ही घर की साफ-सफाई के बाद भोजन तैयार करने में महिलाएं जुट गई थीं तो साथ में स्नान कर परिवार के सदस्य उनका सहयोग कर रहे थे। व्रती के भोजन के बाद परिवार के अन्य सदस्यों ने भोजन किया और उसी के साथ पूजा की तैयारी तेज हो गई।

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तीन दिवसीय व्रत के दूसरे दिन यानी पंचमी को दिन भर महिलाएं निराजल व्रत रहेंगी और शाम को एक बार भोजन ग्रहण करेंगी। इस दिन को कहीं-कहीं ज्ञान पंचमी तथा बिहार में बोलचाल की भाषा में खरना कहा जाता है। दूसरे दिन शाम को गाय के दूध में गुण व साठी के चावल का खीर और शुद्ध आटे की पूड़ी बनाई जाएगी तथा उसे व्रती महिलाएं एक बार ग्रहण करेंगी। उसमें भी पुरानी परंपरा यह है कि भोजन के दौरान अगर किसी ने पुकार दिया अथवा उसमें कंकड़ आदि निकल गया तो उसके साथ ही भोजन छोड़ दिया जाता है। भले ही हलक के नीचे पहला निवाला ही क्यों न गया हो। पूजा के लिए दलालघाट तैयार, प्रतिमा स्थापना बाकी

छठ पूजा के लिए गुरुवार को सबसे बेहतर व्यवस्था दलालघाट पर दिखी। यहां पूजा के लिए घाट लगभग तैयार हो चुका है। बगल में गिरने वाले नाले को मोड़कर दूर कर दिया गया है। सीढि़यों की धुलाई के बाद रंगाई-पोताई भी लगभग पूरी हो चुकी है। एक हिस्से में गेरुआ तो दूसरे हिस्से में सफेद रंग का प्रयोग किया गया है। यहां नवयुवक प्राचीन धर्म रक्षक दल के अध्यक्ष मिथुन निषाद के अलावा सोनू, रवि, क्षवि, आकाश, अभी आदि सदस्यों की देखरेख में पक्के घाट के अलावा अगल-बगल के हिस्से में सीढ़ीनुमा बनाकर पूजा की व्यवस्था की जा रही है। गेट और लाइटिग का कार्य भी शुरू हो गया था। सूर्य भगवान की प्रतिमा की स्थापना शुक्रवार तक कर दी जाएगी। भीड़ को देखते हुए कंट्रोल रूम भी बनाया जाएगा। वहीं छठ के दिन अ‌र्घ्य के लिए मुफ्त में श्रद्धालुओं को दूध भी उपलब्ध कराया जाएगा। लाल-पीली साड़ी की मांग ज्यादा

छठ पूजा को लेकर कपड़ा बाजार भी गुलजार हो गया है। ज्यादातर महिलाएं लाल और पीला बेस साड़ी पसंद कर रही हैं तो वहीं नई दुल्हनों की पसंद लाल चुनरी है। बड़ादेव स्थिति कपड़ा व्यवसायी आशुतोष रुंगटा ने बताया कि शुभ कार्य में लाल-पीले रंग का वैसे भी हमारे यहां महत्व रहा है। दूसरी बात यह है कि पूजा के लिए ज्यादातर महिलाएं ऐसे कपड़े की डिमांड कर रही हैं जो घर पर धुला जा सके। कारण कि व्रती महिलाएं पानी में खड़ी होकर तपस्या करती हैं। उधर कपड़े के बाद श्रृंगार के सामानों में भी लाल चूड़ियां और लाल बिदी के अलावा लाल रंग की अन्य सामग्री की मांग ज्यादा रही।


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