उम्मीद की राह में आश्वासन बना बाधा
संवादसूत्र अछल्दा सरकारी सिस्टम की चाल का अपना ही पैमाना होता है। ऊपर वाले का इशारा ह
संवादसूत्र, अछल्दा : सरकारी सिस्टम की चाल का अपना ही पैमाना होता है। 'ऊपर वाले' का इशारा हो जाए तो असंभव काम भी संभव हो जाता है। और 'जमीन वाला' संभव काम के लिए भी गिड़गिड़ाते दिखता है। उसकी न कहीं सुनवाई होती है न ही कहीं कोई सहायता। भीख मांगकर अपने तीन बच्चों को पालने वाली महिला की आवास पाने की पीड़ा को हम ऊपर वालों की कारस्तानी की एक बानगी भी मान सकते हैं।
आशा के मजरा नगला दरिआई निवासी पूजा यादव पत्नी कमलेश कुमार भीख मांगकर अपना व तीन बच्चों का पेट पालती है। उसका शराबी पति उसे छोड़कर किसी और महिला के साथ रहने लगा है। गुजर बसर करती है। गांव में कच्चे मकान में प्लास्टिक की पन्नी डालकर किसी तरह रहती है। सरकारी आवास पाने के लिए वह गांव से लेकर ब्लाक तक। और कभी कभी जिला मुख्यालय तक का चक्कर लगाती रहती है। आवास पाने का यह सिलसिला विगत पांच वर्ष से चल तो रहा है, लेकिन वह अभी भी उसकी ख्वाबों में ही है। अर्थात मिला ही नहीं है। पीड़ित महिला ने विगत वर्ष रेलवे स्टेशन के प्लेटफार्म से पटरी पर कूदकर खुदकुशी का प्रयास किया था, उसे लोगों ने बचा लिया था। सोमवार को आवास पाने के लिए किसी तरह वह डीएम कार्यालय पहुंची। उसका सौभाग्य था की उसे डीएम साहब मिल गए। पीड़ित महिला से डीएम सुनील कुमार वर्मा ने काफी पूछताछ की। समस्या के बारे में पूछा। पीड़ित पूजा कहा कि आवास के लिए दौड़ते-दौड़ते करीब पांच वर्ष हो गए हैं। लेकिन, वह अभी तक मिला ही नहीं। मेरी कोई भी नहीं सुनता है। सूची में नाम होने के बाद भी आवास नहीं मिल सका है। जब में पंचायत मंत्री से कहती हूं, तो उसका जबाब होता है कि अभी बजट शासन से नहीं आया है। दो जून की रोटी के लिए दो दिन तक भूखे भी रहना पड़ता है। उसने डीएम से गुहार लगाई कि उसका अंत्योदय कार्ड बनवा दिया जाए। पीड़ित पूजा को पूरी तरह सुनने व उसकी समस्याओं को जानने के बाद डीएम ने पहले उसे फल की डलियां दिया। बाद में उसे आश्वस्त किया कि उसकी आवास की समस्या जल्द ही दूर कर दी जाएगी। इस बावत उन्होंने अधिकारियों को आवश्यक निर्देश भी दिए।