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..बापू की सुरक्षा को दिल्ली पहुंच गए थे संतराम

आसिफ अली, अमरोहा: मेरी उम्र उस समय 19 साल थी। अन्य युवाओं की तरह मेरे मन में भी अंग्रेजों के प्रति नफरत थी। सारे देश बापू के पीछे चल रहा था। उनके बारे में बुरा-भरा सुनने का मतलब ही नहीं था।

By JagranEdited By: Published: Mon, 01 Oct 2018 10:44 PM (IST)Updated: Mon, 01 Oct 2018 10:44 PM (IST)
..बापू की सुरक्षा को दिल्ली पहुंच गए थे संतराम
..बापू की सुरक्षा को दिल्ली पहुंच गए थे संतराम

अमरोहा : मेरी उम्र उस समय 19 साल थी। अन्य युवाओं की तरह मेरे मन में भी अंग्रेजों के प्रति नफरत थी। सारा देश बापू के पीछे चल रहा था। उनके बारे में बुरा-भरा सुनने का मतलब ही नहीं था। वर्ष 1937 में किसी फिरंगी द्वारा बापू के साथ अभद्रता किए जाने की जानकारी मिली तो लोग आक्रोशित हो गए। मैं भी अमरोहा व मुरादाबाद के युवाओं के साथ ट्रेन में बैठकर दिल्ली चला गया। घर वालों को भी नहीं बताया। बस बापू की सुरक्षा में लगना चाहता था। वहां लगभग 15 मिनट तक बापू का सानिध्य मिला। उन्होंने सभी आंदोलनकारियों को समझा कर वापस भेज दिया। कहा जब तक देश आजाद नही होगा, मुझे कुछ नहीं हो सकता।

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यह कहना है ब्लाक क्षेत्र के गांव शाहपुर निवासी सौ वर्षीय संतराम ¨सह का। युवावस्था से पहलवानी का शौक रखने वाले संतराम ¨सह का जन्म सन 1917 में हुआ था। उन्होंने युवावस्था में कदम रखा तो देश के हालात की समझ आनी शुरू हो गई। पारिवारिक स्थित ठीक थी तो अन्य युवाओं के साथ आजादी के लिए होने वाले आंदोलन में भागीदारी करने लगे। मुरादाबाद व अमरोहा के कई साथी थे। सोमवार को दैनिक जागरण से वार्ता करते हुए संतराम ¨सह ने उस समय के हालात बयां किए।

बोले- ग्रामीण क्षेत्र में बहुत कम लोग आंदोलन से जुड़े हुए होते थे। क्योंकि उन्हें अंग्रेजों की सजा का डर रहता था। मैंने कई बैठकों में भाग लिया। गांधी जी के लिए कुछ भी करने का जज्बा मन में था। उन्होंने बताया कि जैसे-जैसे आंदोलन से जुड़े लोगों से आदेश मिलता था, उसी तरह से काम किया जाता था। कभी बापू को सामने से नहीं देखा था। वर्ष 1937 में किसी अंग्रेज द्वारा बापू के साथ अभद्रता किए जाने की सूचना मिली थी। उसे लेकर आंदोलनकारियों में आक्रोश फैल गया था। मेरे भीतर भी गुस्सा था। लिहाजा परिजनों से बगैर बताए मित्रों के साथ दिल्ली चला गया। मन में इच्छा थी कि बापू की सुरक्षा में रहूंगा।

बताया दिल्ली में बापू से भेंट हुई। लगभग 15 मिनट तक वह हमारे साथ रहे थे। उन्होंने अ¨हसा की ही शिक्षा दी। याद करते हुए संतराम ¨सह बताते हैं कि वह दिन मेरे के लिए कभी न भूलने वाला दिन था। आज भी जहन में याद ताजा है। बापू ने कहा लड़ाई-झगड़े के बजाए अ¨हसा के मार्ग पर चलकर मेरा साथ देते रहो। जब तक देश आजाद नहीं होगा, मुझे कुछ नही हो सकता। बताते हैं कि बापू के समझाने के बाद हमें वापस लौटना पड़ा था। उस समय व आज के दौर में जमीन-आसमान का अंतर है। कहते हैं कि उस समय लोगों में प्रेम था। आज वह बात नहीं रही।


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