तिगरी तीरे भव्यता ने डाला डेरा
कस्बे से नौ किमी दूरी पर बसा गांव तिगरी का भी अपना अलग वजूद है। भले ही यहां पर पूरे एक साल विरानगी छाई रहती हो, लेकिन ऐतिहासिक गंगा मेले के दौरान यह गांव हर किसी जुबां पर रहता है।
तिगरीधाम(सौरव प्रजापति):
कस्बे से नौ किमी दूरी पर बसा गांव तिगरी का भी अपना अलग वजूद है। ऐतिहासिक गंगा मेले के दौरान यह गांव हर किसी जुबां पर रहता है। गांव के मुख्य द्वार पर बनी देवी-देवाओं की प्रतिमाएं जहां गांव का श्रंगार करती हैं। गांव के छोर पर बह रही पतित पावनी मां गंगा ने भी एक अलग पहचान दे रखी है। गांव में बनी धर्मशालाओं व मंदिरों में होने वाली सुबह-शाम आरतियों से पूरा गांव भक्तिमय में रहता है। इतना ही नहीं यहां पर ज्यादातर ग्रामीण भी संस्कृति व सभ्यता का परिचय देते हैं।
जानकार बताते हैं कि तेत्रायुग के दौरान श्रवण कुमार अपने अंधे मां-बाप को लेकर यहां पर कुछ देर के लिए रूके थे। उन्हें देखने के लिए भीड़ उमड़ी थी। उसके बाद से उत्तरी-भारत के ऐतिहासिक मेले की शक्ल में मेला लगने लगा। दशकों से यहां पर हर वर्ष विभिन्न जनपदों के लाखों श्रद्धालु एक सप्ताह तक बसेरा करते हैं। मानों गंगा की रेती पर ऐसे बस जाते हैं। जैसे वह यहां के स्थानीय लोग हैं। घर की तरह मिट्टी व गैस चूल्हों पर खाना पकाना और गंगा में स्नान कर पुण्य कमाते हैं। पूरे साल इस गांव में विरानगी छाई रहती है, लेकिन मेले की तैयारियों शुरू होते ही गांव का माहौल बदल जाता है। गांव में रहने वाले पंडित गंगा सरन शर्मा की मानें तो तिगरी गांव के लोग आज भी संस्कृति व सभ्यता का परिचय देते हैं। वो न सिर्फ गंगा में आने वाले श्रद्धालुओं को अपना मेहमान मानते हैं बल्कि जरुरत पड़ने पर उनकी हरसंभव मदद भी करते हैं। इस बार तो वाकई गांव की सूरत बदल सी गई। सड़कें नई हो गईं। देवी-देवाओं की प्रतिमाएं भी चमचमा गईं। मुख्य द्वार भी दूल्हे की तरह सज गया। इन कार्यों में जिला पंचायत से लगभग अस्सी लाख रूपए खर्च भी हुए हैं।
------------------------------ तिगरी में रहता रिश्तेदारों का रेला
तिगरीधाम : तिगरी गांव में अब बेशुमार भीड़ है। यहां मेला है और रिश्तेदारों का रेला है। हर घर रिश्तेदारों से भरे हैं। दूर-दराज से पहुंचे रिश्तेदारों की आवभगत में ग्रामीणों का पूरा समय गुजर रहा है। गंगा तट पर बसे इस गांव की आबादी में सिर्फ बांध की दूरी है। लाखों की भीड़ में हजारों श्रद्धालु तिगरी गांव के घरों में बतौर मेहमान ठहरते हैं। गांव के लोग इन लोगों को देखकर जरा भी अलकसाते नहीं है बल्कि खुद से ज्यादा देखभाल करते हैं।