तिगरी मेला रामायण तो दीपदान महाभारत काल की दिलाता है याद
गजरौला तिगरीधाम में पतित पावनी मां गंगे के पावन घाट पर गंगा मेला और कार्तिक पूर्णिमा का स्नान एतिहासिक है।
गजरौला : तिगरीधाम में पतित पावनी मां गंगे के पावन घाट पर गंगा मेला आयोजित होने और कार्तिक पूर्णिमा के मुख्य स्नान की पूर्व संध्या पर होने वाले दीपदान की परंपरा कब से चली? इसकी सटीक जानकारी किसी के पास नहीं है। तमाम बुजुर्ग व अन्य लोग यह परपंरा सदियों पुरानी और इन्हें राजा दशरथ व महाभारत काल से जुड़ा भी बताते हैं।
मां गंगे के दोनों तटों यानी अमरोहा जनपद के तिगरीधाम और हापुड़ जिले के गढ़मुक्तेश्वर क्षेत्र के लठीरा में लगने वाले इन मेलों को उत्तर भारत का एतिहासिक मेला भी कहा जाता है। तिगरी के पुरोहित पंडित गंगा सरन शर्मा अपने बुजुर्गों का हवाला देते हुए बताते हैं कि जब छोटे थे तो उनके पिता व दादा गंगा मेला राजा दशरथ के दौर से लगना बताते थे। वह कहते थे कि राजा दशरथ के दौर में श्रवण कुमार जब अपने माता-पिता को तीर्थ कराने निकले थे तब वह यहां भी पहुंचे थे। उस समय गंगा गढमुक्तेश्वर क्षेत्र स्थित प्राचीन गंगा मंदिर से सटकर बहा करती थीं। कार्तिक शुक्ल पक्ष में श्रवण कुमार के यहां ठहरने पर उस समय लोग उन्हें देखने पहुंचे थे और कार्तिक पूर्णिमा पर स्नान करके गए थे, तभी से यह रीत चली आना बताई जाती है।
इधर संतोष यादव अपने दादा खचेड़ू सिंह का हवाला देते हुए बताते हैं कि महाभारत काल में कौरवों की सेना अपने कुटुंब संबंधी पांडवों के हाथों ढेर होने पर भगवान श्रीकृष्ण ने उनकी मुक्ति को पांडवों से यहां दीपदान कराया था। उसके बाद से यहां कार्तिक पूर्णिमा की पूर्व संध्या पर दीपदान की परपंरा चली आ रही है। यह पहला मौका है, जब कोरोना संक्रमण की वजह से मेला आयोजन व दीपदान पर रोक लगाई गई है। हर साल बीस लाख से अधिक जुटती है भीड़
गजरौला : तकरीबन आठ-दस किलोमीटर की परिधि के दायरे में लगने वाले इस विशाल ऐतिहासिक मेले में 20-22 लाख की भीड़ जुटती है। इसकी तैयारी सरकारी मशीनरी दो माह पूर्व से शुरू करा देती थी। वहीं दीपावली के बाद मेले में दुकान इत्यादि लगाने को व्यापारी चालू हो जाते थे। उसके बाद देवोत्थान एकादशी से दो दिन पूर्व से श्रद्धालु पहुंचना चालू हो जाते थे। चूंकि इस बार मेला स्थगित है, इसलिए तिगरी के रास्ते और गंगा तट सूने पड़े हैं, जहां श्रद्धालुओं के टैंट लगते थे, मेला कोतवाली व अन्य अधिकारियों के शिविर कार्यालय बनते थे, वहां अब फसल उग रही हैं।