जो ना जाय धर्मे, का है दुनिया के भरमे
कोरोना संक्रमण की वजह से बाबा दुलनदास की धर्मे धाम स्थित समाधि स्थल पर कार्तिक पूर्णिमा पर मेला नहीं लग सकेगा।
जय प्रकाश पांडेय, तिलोई, (अमेठी)
चौदह चार अठारह छत्तीस, और भक्त भये है तैतीस। प्रभु के चेले भये सतासी, सतनाम केवल विश्वासी।।
सतनाम पंथ के संस्थापक जगजीवन साहब के चार पावा में शामिल बाबा दुलनदास की धर्मे धाम स्थित समाधि स्थल सतनाम पंथियों की आस्था का प्रतीक है। सतनाम पंथ के हजारो अनुयायी यहां कार्तिक पूर्णिमा पर लगने वाले मेले में समाधि स्थल पर मत्था टेकने पहुंचते हैं, मगर इस बार कोरोना संक्रमण के कारण एडवाइजरी के तहत अनुयायियों का काफिला थम सा गया है। कहते है जो ना जाय धर्मे का है दुनिया के भरमे।
कबीर पंथ व सिक्ख संप्रदाय के बाद 1700 ई. में बाबा जगजीवन दास साहब ने सतनाम पंथ की स्थापना की, जिन्होंने अनुयायियों की सुगमता के मद्देनजर चार पावा चौदह गद्दी, छत्तीस महंत व तैतीस सुमिरनहा की तैनाती कर अलग-अलग स्थान मुकर्रर किए। इनके माध्यम से पंथ का विस्तार हुआ। उसी एक पावा में धर्मे धाम स्थित दूलनदास का प्रसिद्ध स्थान है। दूलनदास का जन्म स्थान रायबरेली जिले के मुरैनी गांव में बताया जाता है।
बलरामपुर रियासत की रानियों को बिना संसाधन पार कराई पांच नदियां :
जनश्रुति के मुताबिक सोमवंशी कुल में जन्मे बाबा दूलनदास बचपन में ही बलरामपुर रियासत के राजघराने में काम की तलाश में जा पहुंचे। राजघराने में उन्हें महारानी के रनिवास में तैनाती मिली। बताते हैं कि राजघराने पर जब आक्रमण हुआ। इस दौरान वहां की रानी व राजकुमारी खिड़की के सहारे भागने में सफल रहीं। दूलनदास रानी व राजकुमारी को महल से सुरक्षित निकालकर राप्ती नदी के किनारे पहुंचे। नदी पार करने का संकट देख दूलनदास को कुछ ना सूझा और ईश्वर का ध्यान कर हाथ जोड़ कर खड़े हो गए। ऐसी मान्यता है कि तभी उन्हें अलौकिक शक्ति प्राप्ति हुई। कुछ ही पल में दूलनदास ने सभी को अपने पीछे चलने को कहा उनके साथ वे सभी पैदल ही नदी पार कर गए। इसी प्रकार सरयू नदी, घाघरा नदी, कल्याणी फिर गोमती नदी पार कराते हुए वे अपने जन्म स्थान पहुंचे। इसके पश्चात वे सैम्बसी स्थित ननिहाल आ पहुंचे और इसे तपोभूमि मान तपस्या की और पड़ोस के धर्मे गांव में उनकी समाधि स्थल है, जो कि आज धर्मे धाम के नाम से विख्यात हुआ। यहां प्रत्येक साल कार्तिक पूर्णिमा पर हजारों अनुयायी मत्था टेकते है। मान्यता है कि सगरा में स्नान करने से सारे रोग दूर हो जाते हैं।