प्रतियोगी परीक्षा की तैयारी छोड़ अपनाई किसानी, पीछे मुड़कर न देखने की ठानी
अमेठी संग्रामपुर के सरैया बड़गांव निवासी सुरेश सिंह ने प्रतियोगी परीक्षा की तैयारी छोड़ द
अमेठी : संग्रामपुर के सरैया बड़गांव निवासी सुरेश सिंह ने प्रतियोगी परीक्षा की तैयारी छोड़ दी। उन्होंने खेती किसानी में अपनी सफलता की कहानी लिखने का संकल्प ले लिया। अचानक घरवालों को जब अपना निर्णय सुनाया तो वह सब अचरज में पड़ गए। पर, सुरेश अपने फैसले पर अडिग रहे।
उन्होंने पीछे मुड़कर न देखने की जिद ठान ली थी। इसलिए उन पर किसी के समझाने का कोई असर न पड़ा। वह खेती की बारीकियों को समझने में लग गए। यूट्यूब के साथ विशेषज्ञों से आय के लिए बेहतर फसलों की जानकारी करने लगे। विविध फसलों के अध्ययन के बाद उन्हें केले की फसल अपने अनुकूल मिली। इस ओर उनका कदम बढ़ने लगा। सुरेश ने जलगांव से केले का पौधा मंगवाया। पहले ढाई बीघे में उसकी रोपाई की। एक साल में ही उपज अच्छी होने से उनका उत्साह बढ़ गया। अगले वर्ष उन्होंने पांच बीघे में उत्पादन शुरू कर दिया। उनका परिश्रम सफलता में बदलने लगा। इसके बाद उत्पादन का क्षेत्रफल बढ़ाने में वह जुट गए।
:::किराए पर ले लिया 15 बीघा खेत:::
आसपास के गांव के किसानों का पंद्रह बीघा खेत उन्होंने किराए पर ले लिया। इसके माध्यम से दस से अधिक लोगों को वह रोजगार पर लगा लिए। उत्पादन बढ़ने के साथ उनकी आय में भी वृद्धि होने लगी। आज वह पंद्रह से बीस लाख रुपये का मुनाफा कमा रहे हैं। अब उनकी सफलता देखकर दूसरे किसान खेती की विधा उनसे सीखने के लिए आते हैं। वह उन सभी की केवल केले की खेती में ही नहीं, अन्य फसलों के उत्पादन के बारे में जानकारी देकर उन्हें प्रोत्साहित करते हैं। सुरेश कहते हैं कि यहां की मिट्टी में आम की खेती से किसानों को एक बीघे में अधिकतम दस से पंद्रह हजार रुपये का लाभ है। वहीं केला उत्पादन में इतने ही खेत में एक लाख से अधिक का फायदा हो जाता है। प्रतापगढ़, सुल्तानपुर, रायबरेली, जौनपुर, अमेठी सहित अन्य जनपद के खरीदार खेत मे पहुंच कर केला ले लेते हैं। एक बीघे में आठ सौ पौधे रोपित किये जाते हैं। फसल तैयार करने में पचास हजार रुपये की लागत आती है। एक बीघे की फसल दो लाख में बिकती है। एक बार पौधा खरीदने पर तीन साल तक खेती होती है।