गैराज व रसोईघर में रात बिता रहे पुलिसकर्मी
2009 में बने महरुआ थाने में जरूरी सुविधाएं नहीं हैं। महिला कांस्टेबल तक को आवास नहीं नसीब है।
अंबेडकरनगर : महरुआ पुलिस से सुरक्षा की उम्मीद करें भी तो कैसे, इन्हें तो खुद ही सुरक्षा की दरकार है। थाने की चारदीवारी तथा पुलिसकर्मियों के रहने के लिए आवास तक अभी नहीं बन पाया है। माल बरामदगी का सामान जैसे-तैसे खुले परिसर में ही रखा है। आरक्षी बाहर कमरा लेकर रहने को मजबूर हैं।
वर्ष 2009 में महरुआ थाना की स्थापना इस उद्देश्य से की गई थी कि सुल्तानपुर बॉर्डर से सटे होने के कारण अपराधों पर अंकुश लगेगा। महरुआ-भीटी मार्ग पर थाने का निर्माण कराया गया। क्षेत्र में कुल 66 गांव हैं। इनकी सुरक्षा के लिए वर्तमान में यहां सात दारोगा तैनात हैं। इनके रहने के लिए मात्र दो क्वार्टर ही बने हैं। शेष जैसे-तैसे समय काट रहे हैं। पुलिस के कार्य की मंद रफ्तार भी व्यवस्था को कुंद कर रही है। थाने में कुल 60 आरक्षी तैनात हैं। इसमें 10 महिला कांस्टेबलों की थाने पर रहने की व्यवस्था न होने से चार महिला कांस्टेबल पांच किलोमीटर दूर आनंदनगर बाजार तथा महरुआ कस्बा में किराए के कमरे में रहती हैं। थाने में आरक्षियों के लिए छह कमरे बनाए गए हैं। इसमें छह कांस्टेबल गैरेज में रहते हैं और आठ रसोईघर में रहते हैं। 15 सिपाही महरुआ कस्बे में कमरा लेकर रहने को मजबूर हैं। थाने में तैनात सात में पांच दारोगा महरुआ कस्बे में कमरा लेकर रहते हैं।
पुलिस कर्मियों का कहना है कि कभी-कभी तो स्थिति यह हो जाती है कि एक-एक चारपाई पर दो-तीन लोग सोते हैं। सबसे खराब स्थिति बरसात में होती है। बैरक में पानी की बौछार आती है। बारिश के चलते सिपाहियों का सामान भीग जाता है। रात जागकर बितानी पड़ती है। पुलिसकर्मियों ने बताया कि थाने की चारदीवारी व आवास की व्यवस्था न होने से कठिनाइयों का सामना करना पड़ता है। रात्रि में जंगली जानवर पीछे से घुस जाते हैं, जो पेड़ पौधों को नष्ट करते हैं। थाने पर नेटवर्क की समस्या भी रहती है। रात में घटना होने पर आरक्षी तथा दारोगा को दूरभाष पर सूचना दी जाती है।
थानाध्यक्ष महरुआ शंभूनाथ ने बताया कि थाने में बेहतर सुविधाएं व चारदीवारी निर्माण के लिए शासन को पत्राचार किया गया है। बजट के अभाव में आरक्षियों को समस्या झेलनी पड़ रही है।