अंबेडकरनगर : कार्तिक मास के शुक्ल पक्ष की द्वितीया पर भैयादूज का पर्व बहनों ने अपने भाई के लंबी उम्र की कामना के लिए सोमवार को पूजा-अर्चना कर मनाया। वहीं पुरानी तहसील स्थित गायत्री मंदिर पर कायस्थ समाज द्वारा हर साल की जाने वाली कलम-दवात की पूजा स्थगित रही। कोरोना के चलते लोग एकत्र नहीं हुए बल्कि अपने घरों पर भगवान चित्रगुप्त की पूजा कर कलम-दवात की आराधना की। इसके साथ ही रविवार को विभिन्न स्थानों पर गोवर्धन पूजा का भी आयोजन किया गया। जगह-जगह कीर्तन-पूजा के साथ लोगों ने गायों को फल खिलाकर गोवर्धन पूजा की।
भाई-बहन के प्रेम और स्नेह का पवित्र त्योहार भैयादूज सोमवार को आस्था और श्रद्धा के साथ मनाया गया। हालांकि सुबह से हो रही बारिश से इस त्योहार को मनाने में खलल पड़ा। ज्यादातर बहनें भाइयों के घर नहीं पहुंच सकीं। बहनों ने भाइयों की लंबी उम्र के लिए व्रत रख विधि-विधान से पूजन-अर्चन कर उन्हें तिलक लगाया। वहीं भाइयों ने बहनों को उपहार भेंट किया। बहनों ने व्रत रख पौराणिक कथाओं के अनुरूप मृत्यु के देवता यमराज की विधि-विधान से पूजन-अर्चन की। बहनों ने रोली और अक्षत से भाइयों को तिलक लगाकर उनकी आरती उतारी। उज्जवल भविष्य की कामना करने के साथ ही लंबी उम्र के लिए ईश्वर से प्रार्थना की। जिला मुख्यालय के साथ टांडा, बसखारी, इल्तिफातगंज, भीटी, कटेहरी, बेवाना, आलापुर, रामनगर आदि स्थानों पर भी भैयादूज का त्योहार आस्था और श्रद्धा के साथ मनाया गया।
विद्युतनगर : टांडा नगर के हयातगंज, छज्जापुर, अलीगंज, मीरानपुरा, नेहरूनगर, सकरावल, काश्मिरिया, मुबारकपुर सहित विद्युतनगर, मखदूमनगर, आसोपुर आदि स्थानों पर भैयादूज का त्योहार आस्था और श्रद्धा के साथ मनाने की धूम रही। घर-घर धार्मिक अनुष्ठान के बीच पूजन-अर्चन किया गया।
जलालपुर : ब्रह्माजी के लेखनीकार भगवान चित्रगुप्त की कायस्थ परिवार के जाफरपुर निवासी भाजपा नेता केशव प्रसाद श्रीवास्तव ने परिवार संग पूजापाठ की। उन्होंने बताया कि भगवान चित्रगुप्त की कथा वेद-पुराण व उपनिषद में भी मिलती है। किवदंती है कि कायस्थ जाति की उत्पत्ति भगवान चित्रगुप्त से ही हुई है।
नहीं लग सके मेले : भाईदूज के पर्व पर जगह-जगह मेले लगते हैं। लेकिन इस साल जहां कोरोना के चलते तमाम बंदिशें होने से आयोजक पहले से बहुत उत्साहित नहीं थे वहीं सोमवार भोर से शुरू हुई बारिश ने स्थिति को और बिगाड़ दिया। कई जगह तो मेले लगे ही नहीं और जहां लगे भी वहां खराब मौसम के कारण काफी कम लोग पहुंचे। मेले में हर साल दुकान लगाने वाले व्यापारी भी इससे दूर रहे। गिने-चुने कुछ लोग पहुंचे भी तो मेले में सन्नाटा देख उल्टे पांव घर आ गए।
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