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सवर्णों पर डोरे डाल जीत की राह आसान बनाने की जुगत में बसपा

विधानसभा चुनाव में जीत हासिल करने के लिए बसपा एक बार फिर सोशल इंजीनियरिग शुरू की है।

By JagranEdited By: Published: Thu, 20 Jan 2022 10:26 PM (IST)Updated: Thu, 20 Jan 2022 10:26 PM (IST)
सवर्णों पर डोरे डाल जीत की राह आसान बनाने की जुगत में बसपा
सवर्णों पर डोरे डाल जीत की राह आसान बनाने की जुगत में बसपा

अंबेडकरनगर: विधानसभा चुनाव में जीत हासिल करने के लिए बसपा एक बार फिर सोशल इंजीनियरिग के सहारे है। खासकर, उसकी नजर सवर्ण मतदाताओं पर है। समय के साथ राजनीतिक हाशिए पर पहुंचे इस तबके को साधने के लिए पार्टी ने जिले की कुल पांच विधानसभा क्षेत्र में दो सीट से सवर्ण उम्मीदवारों को मैदान में उतारा है। कटेहरी विधानसभा सीट से पूर्व विधायक पवन पांडेय के पुत्र प्रतीक पांडेय तो जलालपुर से कई बार के विधायक रहे शेरबहादुर सिंह के बेटे राजेश सिंह अपने राजनीतिक विरोधियों को चुनौती दे रहे हैं।

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बसपा के लिए इस बार करो या मरो की स्थिति है, क्योंकि पार्टी सन 2012 से लगातार दो चुनावों से सत्ता से बाहर है। इस बीच हुए दो संसदीय चुनावों में भी कोई कमाल नहीं दिखा सकी। ऐसे में कभी बसपा का गढ़ रहे इस जिले में उसे अपनी साख बचाना बड़ी चुनौती है। हालांकि, पूरब से पश्चिम तक भगवा की राजनीतिक आंधी में 2017 में हुए विधानसभा चुनाव में भी बसपा यहां पांच में तीन सीटों पर अपनी बादशाहत कायम रखने में सफल रही थी। कटेहरी से पूर्व मंत्री लालजी वर्मा तो अकबरपुर से राम अचल राजभर और जलालपुर से रितेश पांडेय को जीत मिली थी, वहीं टांडा और आलापुर सीट पर पार्टी को तीसरे स्थान से संतोष करना पड़ा था। इस बीच 2019 के आम चुनाव में जलालपुर से विधायक रितेश पांडेय के अंबेडकरनगर लोकसभा सीट से सांसद चुने जाने के बाद इसी साल वहां हुए मध्यावधि चुनाव में बसपा को अपने धुर विरोधी सपा के सुभाष राय के हाथों पराजित होना पड़ा। पार्टी इससे उबर पाती कि उसे एक के बाद एक झटका लगना शुरू हो गया। यहां लंबे समय तक आंबेडकरवादी राजनीति का चेहरा रहे पूर्व सांसद त्रिभुवन दत्त अपनी उपेक्षा से नाराज होकर हाथी छोड़ सपा की गोद में बैठ गए। इससे पहले कटेहरी से कई बार के विधायक और मंत्री रहे धर्मराज निषाद भी बसपा को बाय-बाय कह भाजपा की शरण में चले गए। वहीं, 2021 में हुए पंचायत चुनाव में पार्टी को अपनी ताकत दिखाने की बारी आई तो अपनों ने दगाबाजी कर दी। इसके चलते बसपा को अपने दो पूर्व मंत्रियों लालजी वर्मा और रामअचल राजभर को एक साथ बाहर का रास्ता दिखाना पड़ा। अरसे से बसपा की धुरी रहे इन दोनों नेताओं के भी हाल में सपा में जाने से बहुजन की राजनीति को झटका लगा, लेकिन सोशल इंजीनियरिग के सहारे इसे थामने में पार्टी कामयाब होती नजर आ रही है। बसपा ने अकबरपुर विधानसभा सीट से जहां 2017 में भाजपा प्रत्याशी रहे कुर्मी नेता चंद्रप्रकाश वर्मा को मैदान में उतारा है, वहीं टांडा से मनोज पटेल को दोबारा उम्मीदवार बनाया है, जबकि अनुसूचित जाति के लिए आरक्षित आलापुर विधानसभा क्षेत्र से केडी गौतम को चुनाव की कमान सौंपी है।

कटेहरी में अच्छी संख्या में हैं सवर्ण: अनाधिकारिक आंकड़ों के मुताबिक कटेहरी विधानसभा क्षेत्र में सवर्ण निर्णायक संख्या में हैं। वे किसी भी चुनाव का परि²श्य बदलने की ताकत रखते हैं। खासकर, ब्राह्मण मतदाताओं को रिझाने के लिए सभी पार्टियां एड़ी-चोटी का जोर लगा रही हैं। बसपा इसमें सबसे आगे दिख रही है। उसने यहां से पूरे जिले के ब्राह्मणों के अगुवा माने जाने वाले पवन पांडेय के बेटे प्रतीक पांडेय को टिकट देकर चुनावी बाजी अपने पक्ष में करने की चाल चली है।

प्रबुद्ध वर्ग सम्मेलन कर सतीश चंद्र मिश्र ने टटोली थी नब्ज: चुनाव की आहट सुनाई देने से महीनों पहले बसपा में नंबर दो के नेता और राष्ट्रीय महासचिव सतीश चंद्र मिश्र ने कटेहरी विधानसभा क्षेत्र में प्रबुद्ध वर्ग सम्मेलन कर इसके बहाने ब्राह्मणों के साथ सवर्णों की नब्ज टटोली थी। स्थिति अपने अनुकूल देख यहां से ब्राह्मण उम्मीदवार को मैदान में उतार दिया, जबकि अन्य दल अभी तक अपने प्रत्याशी का नाम तक नहीं तय कर सके हैं।


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