युवा पीढ़ी का धर्म और अध्यात्म की ओर बढ़ रहा रुझान, धार्मिक पुस्तकों के प्रति भी है आकर्षण
किताबों के साथ ही माघ मेला क्षेत्र में कंठी मालाओं की भी दुकानें सजी हैं। तुलसी रूद्राक्ष व अन्य तरह की मालाओं को लेकर भी युवाओं में काफी उत्साह है। इस तरह की दुकानों पर भी युवाओं की भीड़ देखी जा सकती है।
प्रयागराज, जागरण संवाददाता। युवाओं में अध्यात्म के प्रति आकर्षण बढ़ रहा है। धार्मिक पुस्तकों के प्रति भी उनका रुझान है। प्रयागराज के माघ मेला क्षेत्र में सजी धार्मिक पुस्तकों की दुकानें युवाओं को आकर्षित कर रहीं हैं। इन दुकानों पर युवा न सिर्फ धर्म-कर्म की किताबों के पन्ने उलटते देखे जा सकते हैं। बल्कि उनमें किताबों के प्रति प्रेम भी बढ़ा है। गीता प्रेस, ठाकुर प्रसाद के अलावा मेला क्षेत्र में सैकड़ों छोटी-बड़ी धार्मिक किताबों की दुकानें सजी हैं। इन दुकानों पर नजर दौड़ाइए तो तमाम युवा कर्मकांड, ज्योतिष, वेद-पुराण समेत धार्मिक पुस्तकों की खरीदारी करने में जुटे दिखेंगे।
पुस्तकें तो धरोहर हैं
हालांकि इंटरनेट मीडिया पर भले ही सब कुछ उपलब्ध है लेकिन पुस्तकें तो धरोहर हैं। इन किताबों को पढ़कर इनकी गूढ़ता को महसूस किया जा सकता है। किताबों के ज्ञान को इंटरनेट से नहीं पाया जा सकता है। वहीं हमारे धर्म शास्त्रों की काफी चीजें इंटरनेट पर उपलब्ध भी नहीं है।
कंठी माला का भी बढ़ा है क्रेज
किताबों के साथ ही माघ मेला क्षेत्र में कंठी मालाओं की भी दुकानें सजी हैं। तुलसी, रूद्राक्ष व अन्य तरह की मालाओं को लेकर भी युवाओं में काफी उत्साह है। इस तरह की दुकानों पर भी युवाओं की भीड़ देखी जा सकती है। अध्योया, हरिद्वार, मथुरा, उत्तराखंड समेत देश के कई हिस्सों से आए दुकानदार मेला क्षेत्र में खासी कमाई कर रहे हैं। अयोध्या से आए दुकानदार अभय बताते हैं कि वह पिछले सात सालों से मेला क्षेत्र में तुलसी की कंठी माला का दुकान लगा रहें हैं। दिनभर में कई सारे युवा इनकी खरीदारी करते है। इन मालाओं का सनातन धर्म में बड़ा ही महत्व है। 20 रुपये से शुरू होकर इन मालाओं की कीमत 5000 रुपये तक जाती है।
जानें, युवाओं की क्या है सोच
धर्म की पुस्तकों को पढऩे से हमें हमारी सनातन संस्कृति का ज्ञान होता है। जीवन में सब कुछ जरूरी है। इंटरनेट से इन किताबों का ज्ञान नहीं मिल सकता है।
- आंचल त्रिपाठी, बीरपुर, सैदपुर।
रामायण या महाभारत को पढऩे के बाद पता चलता है कि हमारी संस्कृति कीतनी विशाल है। इन पुस्तकों से हमें समाज में किस तरह से रहना है, इसकी भी सीख मिलती है।
- तृषा मिश्रा, सैरपुर।