योग गुरू आनंद गिरि बोले, बड़ी साजिश का हुआ मैं शिकार और मेरी जान को भी खतरा
21 अगस्त 2000 में उन्होंने महंत नरेंद्र गिरि से संन्यास लिया था। तब वो मठ के पीठाधीश्वर व मंदिर के महंत नहीं थे। संन्यास लेने के बाद तमाम दिक्कतों का सामना करना पड़ा। लेकिन हमेशा गुरु के साथ खड़े रहे। आज भी उन्हें मठ का कोई लालच नहीं है।
प्रयागराज, जेएनएन। श्रीनिरंजनी अखाड़ा, मठ बाघम्बरी गद्दी व बड़े हनुमान मंदिर प्रबंधन से बाहर निकाले जाने के बाद योगगुरु स्वामी आनंद गिरि ने खुलकर अपना पक्ष रखा। उन्होंने समस्त आरोपों का निराधार बताते हुए अपनी जान को खतरा बताया है । कहा कि वे बड़ी साजिश का शिकार हो गए हैं, उनके खिलाफ समस्त आरोप मनगढ़ंत हैं। न कोई जांच बैठी, न ही पक्ष सुना गया। सिर्फ मनमाना फैसला सुना दिया गया। हरिद्वार स्थित निर्माणाधीन आश्रम को सीज करके उनकी सुरक्षा भी हटा ली गई है। इससे उनके साथ कभी भी अनहोनी हो सकती है, क्योंकि मठों में संपत्ति के लिए पहले भी महात्माओं को मारा जाता रहा है।
गुरु के प्रति पहले की तरह है मन में सम्मान का भाव
क्हा कि उन्होंने उत्तराखंड के वरिष्ठ अधिकारियों को समस्त स्थिति से अवगत करा दिया है। जल्द उचित कदम न उठाया गया तो उन्हें जान से भी मारा जा सकता है। स्वामी आनंद गिरि का कहना है कि उनका कद देश-विदेश में तेजी से बढ़ रहा था। वे निरंजनी अखाड़ा को लीड करने लगे थे। हरिद्वार कुंभ के हर विज्ञापन में उनकी उपस्थिति रहती थी। गंगा की रक्षा के लिए काफी काम किया है। कुछ लोगों को यह रास नहीं आया। कहा कि आस्ट्रेलिया में साजिश के तहत उन्हें फंसाया गया था तो उनके शिष्यों से उन्हें बचाने के नाम पर करोड़ों रुपये वसूले गए। वहां से बेदाग बरी होने के बाद वो निरंजनी अखाड़ा व मठ बाघंबरी गद्दी के विकास के लिए काम करने लगे। दोनों की बिकने वाली जमीनों को बचाने का प्रयास किया। जो गलत कर रहा था उसका विरोध किया। इस पर उनके उपर नवंबर 2020 से दबाव बनाया जाने लगा। इसके साथ अपने गुरु के प्रति सम्मान जाहिर करते हुए कहा कि महंत नरेंद्र गिरि उनके गुरु थे हैं और हमेशा रहेंगे। गुरु के प्रति मन में कोई बैर नहीं है। कहा कि उनका अस्तित्व गुरु की वजह से है। वो उनके उपर कोई आरोप नहीं लगा रहे हैं। लेकिन, कुछ लोगों ने उनके गुरु को भ्रमित कर दिया है। वे हम दोनों के बीच में विवाद कराकर अपना हित साधने में लगे हैं। मौका आने पर वो अपने गुरु को सत्यता बताएंगे। अभी उनका हर निर्णय का सिर झुकाकर पालन करने को तैयार हैं।
घर वालों से नहीं है नाता
स्वामी आनंद गिरि का कहना है कि उनका घर वालों से कोई नाता नहीं है। कहा कि संन्यास लेने के बाद वो कभी अकेले अपने घर नहीं गए। न ही किसी घर वालों को अपने पास बुलाया है। आर्थिक मदद भी कभी किसी की नहीं की। मैंने गुरु को ही अपना माता-पिता व देश को परिवार माना है। सिर्फ एक बार गुरु के साथ घर गया था उसके बाद कोई संपर्क नहीं रखा।
मठ से नहीं है लालच
स्वामी आनंद गिरि का कहना है कि 21 अगस्त 2000 में उन्होंने महंत नरेंद्र गिरि से संन्यास लिया था। तब वो मठ के पीठाधीश्वर व मंदिर के महंत नहीं थे। संन्यास लेने के बाद तमाम दिक्कतों का सामना करना पड़ा। लेकिन, हमेशा गुरु के साथ खड़े रहे। आज भी उन्हें मठ का कोई लालच नहीं है। उन्हें विश्वास है कि गुरु उन्हें पहले की तरह आत्मीयता से पुनः अपनाएंगे।