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महामना मदनमोहन मालवीय ने सहपाठी प्रयागराज के माधव शुक्‍ल को ऐसा क्‍या बोला कि छोड़ दी पुलिस की नौकरी, प‍ढि़ए पूरी खबर

महामना एवं माधव सहपाठी थे। महामना ने माधव को पुलिस वर्दी में देखकर अचरज व्यक्त किया। उन्होंने माधव से कहा कि पढ़ लिख कर अंग्रेजों के मातहत काम कर रहे हैं। माधव को यह बात इतनी अखरी कि उन्होंने तुरंत वर्दी उतार दी और घर पर बैठ गए।

By Rajneesh MishraEdited By: Published: Tue, 23 Feb 2021 07:44 AM (IST)Updated: Tue, 23 Feb 2021 11:59 AM (IST)
महामना मदनमोहन मालवीय ने सहपाठी प्रयागराज के माधव शुक्‍ल को ऐसा क्‍या बोला कि छोड़ दी पुलिस की नौकरी, प‍ढि़ए पूरी खबर
महामना मदन मोहन मालवीय ने माधव को पुलिस वर्दी में देखकर अचरज व्यक्त किया।

प्रयागराज, जेएनएन। प्रयागराज की धरती वीरों से कभी से खाली नहीं रही। आजादी के पहले ऐसे क्रांतिवीरों की कमी नहीं रही जिन्होंने सरकारी नौकरी की परवाह कभी नहीं की। अभाव के बावजूद इन विभूतियों ने देश के लिए नौकरी को तिलांजलि दे दी। इन्हीं में एक थे स्वतंत्रता संग्राम सेनानी माधव शुक्ल। वे विद्रोही प्रकृति के थे। आजादी के आंदोलन मेंं भाग लेने के कारण माधव पुलिस तथा खुफिया विभाग की नजरों में चढ़ चुके थे। हालांकि उन्हें पहली नौकरी पुलिस की मिली थी। पर महामना मदन मोहन मालवीय से मुलाकात के बाद उन्होंने पुलिस की वर्दी उतार दी थी।

मदन मोहन मालवीय के साथ की थी पढ़ाई
इतिहासकार जय प्रकाश यादव बताते हैं कि माधव शुक्ल का जन्म इलाहाबाद (अब प्रयागराज) में चौक इलाके में दस जुलाई 1881 को हुआ था। उनके पिता रामचंद शुक्ल अपने आवास में ही दवाखाना चलाते थे। वे बहुत अच्छे वैद्य थे। माधव की आरंभिक शिक्षा स्थानीय ब्रह्मचारी हरदेव गुरु की पाठशाला मेें हुई थी। इसका नाम धर्मोपदेशिक पाठशाला था। यह पाठशाला आज भी विद्यमान है। इसी पाठशाला में महामना मदनमोहन मालवीय भी पढ़े थे। इस पाठशाला में राजर्षि पुरुषोत्तम दास टंडन तथा कृष्णकांत मालवीय उनके सहपाठी रहे थे।

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वर्दी में माधव को देखकर अचरज में रह गए महामना

जय प्रकाश बताते हैं कि माधव शुक्ल को संयोगवश पहली नौकरी पुलिस में मिली थी। एक दिन वे वर्दी में महामना मदन मोहन मालवीय को मिल गए। महामना एवं माधव सहपाठी थे। महामना ने माधव को पुलिस वर्दी में देखकर अचरज व्यक्त किया। वे दूरदृष्टि वाले थे। उन्होंने माधव से कहा कि पढ़ लिख कर अंग्रेजों के मातहत काम कर रहे हैं। माधव को यह बात इतनी अखरी कि उन्होंने तुरंत वर्दी उतार दी और घर पर बैठ गए।

पुलिस की वर्दी उतारी तो कर ली बैंक की नौकरी
जय प्रकाश बताते हैं कि माधव ने पुलिस की नौकरी छोडऩे के बाद एटा जिले के पटियाली कस्बे में एक पाठशाला में नौकरी कर ली। यहां पर उन्होंने बिना पैसे के छात्रों को पढ़ाना शुरू किया। इस बीच उनकी गतिविधियों को देखकर पुलिस और खुफिया विभाग उनपर नजर रखने लगा। तीन वर्ष तक एटा में अध्यापन करने के बाद उन्होंने इलाहाबाद बैंक में लिपिक की नौकरी ज्वाइन किया। माधव ने आजीवन मोटी खादी की धोती और कुर्ता पहना। वे समय मिलने पर चरखा भी चलाते थे। वे चरखा को चतुर्भुज तथा सूत को गंगा की उपमा देते थे।


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