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VAT के लंबित मामलों का निस्तारण 31 मार्च तक करना होगा, वाणिज्य कर कमिश्नर का है आदेश

वित्तीय वर्ष 2017-18 के अप्रैल मई और जून महीने में वैट लागू था। 1 जुलाई से वस्तु एवं सेवा कर लागू हुआ था। तीन महीनों के लंबित केसों के निस्तारण के लिए डेडलाइन तय की गई है। 2016- 17 के वैट के लंबित मामलों का निस्तारण अफसरों करते थे।

By Brijesh SrivastavaEdited By: Published: Tue, 24 Nov 2020 10:21 AM (IST)Updated: Tue, 24 Nov 2020 10:21 AM (IST)
VAT के लंबित मामलों का निस्तारण 31 मार्च तक करना होगा, वाणिज्य कर कमिश्नर का है आदेश
तीन महीने के लंबित मामलों का निस्तारण वाणिज्यकर विभाग के अधिकारी करेंगे।

प्रयागराज, जेएनएन। वित्तीय वर्ष 2017-18 के तीन महीने के लंबित मामलों का निस्तारण वाणिज्यकर विभाग के अधिकारियों को करना होगा। वह भी 31 मार्च 2021 तक ही निस्‍तारण करने का आदेश है। इस संबंध में वाणिज्य कर कमिश्नर ने सोमवार को आदेश जारी कर दिया है। वित्तीय वर्ष 2017-18 के अप्रैल मई और जून महीने में वैट लागू था। 1 जुलाई से वस्तु एवं सेवा कर लागू हो गया था। लिहाजा तीन महीनों के लंबित केसों के निस्तारण के लिए डेडलाइन तय की गई है। अभी तक 2016- 17 के वैट के लंबित मामलों का निस्तारण अफसरों द्वारा किया जा रहा था।

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असिस्टेंट कमिश्नर पर 15 लाख से 50 लाख कर योग्य निर्माण इकाइयों की जिम्‍मेदारी

वाणिज्य कर कमिश्नर अमृता सोनी द्वारा जारी आदेश में यह भी तय कर दिया गया है। इसके तहत स्‍पष्‍ट कर दिया गया है कि किस रैंक के अफसर कितने लाख से कितने करोड़ के कर योग्य निर्माण इकाइयों एवं बिक्री करने वाली ट्रेडिंग इकाइयों के मामलों का निस्तारण करेंगे। वाणिज्य कर अधिकारी 15 लाख तक कर योग्य निर्माण इकाइयां और 25 लाख तक बिक्री करने वाली ट्रेडिंग इकाइयों के मामले निस्तारित करेंगे। असिस्टेंट कमिश्नर 15 लाख से 50 लाख कर योग्य निर्माण इकाइयों, 25 लाख से एक करोड़ तक बिक्री करने वाली ट्रेडिंग एजेंसियों और डिप्टी कमिश्नर 50 लाख से अधिक कर योग्य निर्माण इकाइयों एवं एक करोड़ से अधिक बिक्री करने वाली ट्रेडिंग इकाइयों के मामलों का निस्तारण करेंगे।

बोले, कनफेडरेशन आफ ऑल इंडिया ट्रेडर्स के प्रदेश अध्यक्ष

कनफेडरेशन आफ ऑल इंडिया ट्रेडर्स के प्रदेश अध्यक्ष महेंद्र गोयल का कहना है कि सरकार चाहती तो छोटे व्यापारियों को राहत देते हुए लंबित मामलों को समरी में डालकर निस्तारित कर सकती थी, क्योंकि तीन महीने में छोटे व्यापारी कितना टर्नओवर किए होंगे। इससे व्यापारियों की भागदौड़ से बचत हो जाती और विभागीय अफसरों पर भी काम का बोझ नहीं बढ़ने पाता।


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