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UP Chunav 2022: ​​​​​जानिए प्रयागराज के इन घरानों के बारे में जिनकी शुरूआत से यूपी की सियासत में है धाक

यूपी सरकार में कुछ खास चेहरे और घराने हमेशा नजर आते हैं। 18वीं विधानसभा में कितने नए और आम चेहरे पहुंचेगे यह अभी सामने आना है। अतीत पर गौर करें तो सियासत का बड़ा भाग विरासत का शिकार दिखता है। इनमें से बहुत से नाम इस बार भी ताल ठोकेंगे।

By Ankur TripathiEdited By: Published: Sun, 23 Jan 2022 10:15 AM (IST)Updated: Sun, 23 Jan 2022 10:15 AM (IST)
UP Chunav 2022: ​​​​​जानिए प्रयागराज के इन घरानों के बारे में जिनकी शुरूआत से यूपी की सियासत में है धाक
प्रयागराज और आसपास के जनपदों में कई राजनीतिक घरानों की रही है धाक

प्रयागराज, जागरण संवाददाता। स्वतंत्रता के बाद राजघराने और रियासतें खत्म हो गईं। लोकतंत्र का पौधा रोपा गया। इसकी जड़ें दिल्ली से होते हुए सभी प्रदेशों में पहुंची। 73वें संविधान संशोधन के तहत सभी ग्राम पंचायतों में भी इसकी नर्सरी लगाई गई। कहने को आम जनमानस ने इसमें खूब रुचि दिखाई। हर जगह डुगडुगी पिटी कि लोकतंत्र का पर्व आया, अपनी सरकार बनाओ...। विडंबना है कि आज भी कोई ऐसा क्षेत्र नहीं है, जहां 100 प्रतिशत मतदान का दावा किया जा सके। रही बात सरकार की तो उसमें भी कुछ खास चेहरे और घराने ही नजर आते हैं। 18वीं विधानसभा में कितने नए और आम चेहरे पहुंचेगे यह काल के गाल में है। अतीत पर गौर करें तो सियासत का बड़ा भाग विरासत का शिकार दिखता है। इन्हीं में से बहुत से नाम इस बार के चुनाव में भी ताल ठोकेंगे। प्रस्तुत है ऐसे ही नामों के साथ बार बार विधानसभा पहुंचने वालों का उल्लेख करती अमलेन्दु त्रिपाठी की रिपोर्ट।

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घराने जो सक्रिय हैं और ठोक रहे ताल

पूर्व मुख्यमंत्री हेमवती नंदन बहुगुणा के बड़े बेटे विजय बहुगुणा उत्तराखंड के मुख्यमंत्री बने। उनकी पुत्री डॉ. रीता बहुगुणा जोशी इलाहाबाद सांसद हैं। अब वह अपने बेटे मयंक जोशी को राजनीति में लाने की कोशिश कर रही हैं। उनके लिए पार्टी से टिकट भी मांगा है। विधायक रहे चौधरी नौनिहाल सिंह के पुत्र चौ. जितेंद्रनाथ सिंह मेयर रह चुके हैं। वर्तमान राजनीति में भी टिकट की तलाश है। चौ. नौनिहाल सिंह के भतीजे और लाल बहादुर शास्त्री के पोते सिद्धार्थनाथ सिंह 2017 में शहर पश्चिम से विधायक बने। इस बार भी जोर आजमाइश कर रहे हैं।

मंत्री रहे समाजवादी नेता सालिग्राम जायसवाल के पुत्र सतीश जायसवाल शहर दक्षिण से दो बार विधायक बने। इसी क्रम में पूर्व केंद्रीय मंत्री राजेंद्र कुमारी बाजपेयी के पौत्र हर्षवर्धन वाजपेयी भी विरासत को सींचने में जुटे हैं। टिकट के लिए पूरा जोर लगाए हुए हैं। पूर्व मंत्री कुंवर रेवती रमन सिंह के पुत्र उज्ज्वल रमन सिंह भी निरंतर बढ़ रहे हैं। मैदान में इस बार भी उपस्थिति दर्ज कराएंगे। दीपक पटेल भी राजनीति की फसल काट रहे हैं।

सांसद केसरी देवी पटेल के पुत्र हैं। टिकट की जोड़ तोड़ में जुटे हैं। पूर्व विधायक उदयभान करवरिया की पत्नी नीलम करवरिया भी परिवारवाद का हिस्सा हैं। पूर्व विधायक महेश नारायण सिंह के पुत्र प्रशांत सिंह भी सक्रिय हैं। पूर्व विधायक जवाहर यादव उर्फ जवाहर पंडित की पत्नी विजमा यादव भी राजनीति में चटख रंग जमाए हैं।

प्रतापगढ़ की तीन सीट पर परिवारवाद का साया

प्रतापगढ़ के राजा दिनेश सिंह की विरासत को उनकी पुत्री रत्ना सिंह ने संभाला है। हालांकि उनका दावा सांसद के लिए होता है। रामपुर खास सीट से प्रमोद तिवारी 1980 से 2012 तक लगातार नौ बार विधायक चुने गए। 2014 के उपचुनाव में अपनी सीट से उन्होंने बेटी आराधना मिश्र को मैदान में उतारा और जीत भी दिलाई। 2017 में भी यह क्रम जारी रहा। इस बार भी उनकी दावेदारी रहेगी। बिहार विधानसभा सीट 2012 से बाबागंज सीट बन गई है। यहां से रामनाथ सरोज 1996 और 2002 में विधायक चुने गए। उसके बाद उनके पुत्र विनोद सरोज ने विरासत को संभाला। वह 2007 से 20017 तक विधायक रहे। इस बार भी मैदान में उतरने के लिए तैयार हैं।

बीरापुर सीट पर भी परिवारवाद का साया रहा है। 1967 और 1969 के चुनाव में रामदेव दुबे विधायक बने। उसके बाद उनकी पत्नी शिव कुमारी दुबे 1974 में विधायक बनीं। अब पुत्र महेंद्र दुबे टिकट की फिराक में हैं। उधर, कुंडा सीट से राजा भैया 1993 से लगातार विधायक बन रहे हैं। हालांकि परिवार का कोई अन्य सदस्य राजनीति में नहीं है। इससे पहले इस सीट पर नियाज हसन 1962, 1967, 1974, 1980, 1985 और 1989 में विधायक रहे। इस परिवार से भी कोई नया नाम नहीं उभर पाया।

कौशांबी में धर्मवीर के परिवार की जड़े फैलीं

कौशांबी में भी परिवारवाद प्रभावी है। यहां से विधायक रहे धर्मवीर 1967 में प्रयागराज की मेजा सीट से विधायक चुने गए। 1969 में मध्यावधि चुनाव हुआ मंझनपुर से विधायक बने और परिवहन मंत्री बने। हालांकि उस समय यह सीट पूर्ववर्ती इलाहाबाद का हिस्सा हुआ करती थी। 1974 में फिर जीत दर्ज की। 1980 में राज्यसभा के सदस्य बने। 1984 में केंद्र सरकार में श्रम मंत्री भी रहे। परंपरा को बढ़ाते हुए उनके पुत्र शैलेंद्र कुमार व सत्यवीर मुन्ना भी राजनीति में उतरे। शैलेंद्र 1985 से 91 तक दो बार विधायक रहे।

1998, 2004,2009 में चायल सांसद बने। अब भी राजनीति में सक्रिय हैं। उधर इनके भाई सत्यवीर मुन्ना सोरांव विधानसभा सीट से 2012 में मैदान में उतरे और जीत दर्ज की। इस बार भी टिकट के लिए दावेदारी कर रहे हैं। इन सब के अतिरिक्त कौशांबी में चायल सीट से कन्हैयालाल सोनकर 1969, 1974, 1977 में विधायक रहे। हालांकि उनके बाद परिवार से कोई नया नाम नहीं उभरा।


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