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UP Chunav 2022: प्रयागराज में कभी थम गए पहिए तो कभी सरपट दौड़ी सपा की साइकिल

मुलायम सिंह यादव ने तीन बार सूबे की कमान संभाली। पुत्र अखिलेश को मुख्यमंत्री बनाया। पिछले 30 साल में पार्टी कई उतार-चढ़ाव से गुजर चुकी है। बात प्रयागराज प्रतापगढ़ कौशांबी की करें तो यहां पर कभी पार्टी का डंका बजा तो कभी एक-एक सीट बचाना मुश्किल हो गया है।

By Ankur TripathiEdited By: Published: Sat, 22 Jan 2022 12:28 PM (IST)Updated: Sat, 22 Jan 2022 12:28 PM (IST)
UP Chunav 2022: प्रयागराज में कभी थम गए पहिए तो कभी सरपट दौड़ी सपा की साइकिल
2007 और 2017 के विधानसभा चुनाव में मिली करारी शिकस्त, 2012 में एकतरफा जीत

प्रयागराज, जेएनएन। राम मनोहर लोहिया के आदर्शों पर चलने वाले मुलायम सिंह यादव ने चार अक्टूबर 1992 को समाजवादी पार्टी का गठन किया। समाजवादी और धर्म निरपेक्ष विचारधारा वाली इस पार्टी में जनेश्वर मिश्र उपाध्यक्ष, कपिलदेव सिंह और मो. आजम खान महामंत्री बने। अगड़ी, पिछड़ी जातियों के साथ ही अल्पसंख्यकों के बीच इसका तगड़ा संदेश गया। पार्टी की किस्मत चमकने में देर नहीं लगी। मुलायम सिंह यादव ने तीन बार सूबे की कमान संभाली। 2012 में पूर्ण बहुमत मिलने पर अखिलेश यादव को मुख्यमंत्री बनाया। पिछले 30 साल में पार्टी कई उतार-चढ़ाव से गुजर चुकी है। बात प्रयागराज, प्रतापगढ़ और कौशांबी जिले की करें तो यहां पर कभी पार्टी का डंका बजा है तो कभी एक-एक सीट बचाना मुश्किल हो गया है। प्रस्तुत है राजेंद्र यादव की रिपोर्ट...

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दो की संख्या पार्टी के लिए हमेशा रही लाभदायक

इसे संयोग कहें या कुछ और, लेकिन दो की संख्या समाजवादी पार्टी के लिए हमेशा लाभदायक रही है। 1992 में पार्टी का गठन हुआ और फिर सरकार बन गई। 2002 में भी यहीं हुआ। 2012 में भी समाजवादी पार्टी ने प्रदेश में सरकार बनाई। अब 2022 का चुनाव है। इसमें भी दो की संख्या है। ऐसे में सपा के नेता, पदाधिकारी और कार्यकर्ता इसे शुभसंकेत मानते हैं।

जवाहर पंडित ने जिले में पहली बार दौड़ाई थी साइकिल

समाजवादी पार्टी के गठन के बाद सबसे पहले 1993 में झूंसी विधानसभा सीट से जवाहर यादव उर्फ पंडित को टिकट मिला। 11 विधानसभा सीट में सिर्फ एक सीट पर पार्टी ने प्रत्याशी को अपने सिंबल पर उतारा था। जवाहर पंडित ने भी ऐसी साइकिल दौड़ाई कि पहली ही बार में खाता खोल दिया। इसके बाद सपा ने पीछे मुड़कर नहीं देखा। 1996 में करछना, झूंसी, प्रतापपुर, शहर पश्चिमी पर झंडा लहराया। 2002 में करछना, झूंसी और हंडिया की सीट जीती। 2007 में बसपा की आंधी में उसे सिर्फ प्रतापपुर सीट पर ही जीत हासिल हुई। जोखूलाल यादव ने जीत दर्ज कर पार्टी की साख बचाई थी। 2012 में सपा की लहर में बड़े-बड़े दिग्गज प्रतिद्वंद्वी धरासायी हो गए। 12 विधानसभा सीटों में आठ पर जीत दर्ज कर सूबे में पूर्ण बहुमत की सरकार बनाई। 2017 के चुनाव में मुंह की खानी पड़ी। एक मात्र करछना सीट पर सपा काबिज हो सकी।

इलाहाबाद उत्तरी में कभी नहीं खुला खाता

प्रयागराज की 12 विधानसभा सीट में से एक इलाहाबाद उत्तरी पर समाजवादी पार्टी का कभी खाता नहीं खुला है। अन्य सीटों पर सपा जीत दर्ज कर चुकी है। इतना ही नहीं 2017 के चुनाव में कांग्रेस को समर्थन देने पर भी इस सीट पर सपा का झंडा नहीं लहरा पाया।

कौशांबी में सबसे खराब रही स्थिति

कौशांबी में समाजवादी पार्टी का प्रदर्शन हमेशा खराब रहा है। पार्टी के गठन के बाद मात्र एक बार ही जीत हासिल हुई है। वह भी उप चुनाव में। 2014 में उप चुनाव में सिराथू विधानसभा से वाचस्पति जीते थे। पिछले चुनाव में सपा का जनाधार यहां बढ़ा है। पार्टी का संघर्ष दूसरे नंबर तक ही पहुंच पाया है।

प्रतापगढ़ में छह चुनावों में सिर्फ आठ सीट पर कब्जा

छह विधानसभा चुनाव में सपा को प्रतापगढ़ में अब तक आठ बार ही सफलता मिली है। 1993 में हुए चुनाव में बिहार से सुरेश पासी, सदर से लाल बहादुर सिंह और पट्टी से रामलखन यादव निर्वाचित हुए थे। 1996 में सपा के खाते में सिर्फ सदर (प्रतापगढ़) सीट आई थी। यहां से सीएन सिंह चुने गए थे। वर्ष 2002 और 2007 के चुनाव में सपा की बड़ी दुर्गति हुई, एक भी सीट नहीं मिली। 2012 में पार्टी के चार विधायक निर्वाचित हुए। सदर से नागेंद्र यादव सिंह मुन्ना, रानीगंज से शिवाकांत ओझा, विश्वनाथ गंज से राजाराम, पट्टी से दस्यु सरगना रहे ददुआ के भतीजे राम सिंह पटेल विजयी हुए थे। 2017 में फिर पार्टी की किरकिरी हुई।

इनका यह है कहना

सपा को सभी वर्गों का समर्थन मिल रहा है। आज जनता सपा शासनकाल को याद कर रही है। जितना विकास कार्य अखिलेश यादव की सरकार में हुआ कभी नहीं हुआ। 2022 में सपा फिर सरकार बनाएंगी।

योगेश यादव, जिलाध्यक्ष, सपा।


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