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यूपी विधानसभा चुनाव 2022: मतदान के बाद तर्जनी पर लगने वाली नीली स्याही अबकी हो जाएगी 60 साल की

नीली स्याही 2022 के विधानसभा चुनाव में 60 साल की आयु पूरी करने वाली है। तर्जनी पर इसे लगवाने का जो मजा है उसकी कल्पना एक मतदाता ही कर सकता है। मतदाता की तर्जनी पर लगने वाली स्याही को निर्वाचन आयोग अब तक नहीं बदल सका है

By Ankur TripathiEdited By: Published: Sun, 23 Jan 2022 05:22 PM (IST)Updated: Sun, 23 Jan 2022 05:22 PM (IST)
यूपी विधानसभा चुनाव 2022: मतदान के बाद तर्जनी पर लगने वाली नीली स्याही अबकी हो जाएगी 60 साल की
2022 के विधानसभा चुनाव में यह स्याही 60 साल की आयु पूरी करने वाली है।

प्रयागराज, जेएनएन। जमाना अब बड़ी तेजी से बदल रहा है। रहन-सहन, जीवनशैली, तौर तरीके यहां तक कि आबोहवा तक बदल रही है। इस बदलाव की छाया चुनावों पर भी पड़ी है। ऊपर से कोविड-19 का प्रभाव जिसने चुनाव प्रचार के तरीके बदलने पर भी मजबूर कर दिया। बैलेट पेपर से लेकर ईवीएम (इलेक्ट्रानिक वोटिंग मशीन) तक का सफर सभी ने देखा। लेकिन चुनाव में मतदाता की तर्जनी पर लगने वाली 'स्याही' को निर्वाचन आयोग अब तक नहीं बदल सका है। इसका रंग जैसे 1962 के लोकसभा चुनाव में पहली बार इस्तेमाल होने पर चटख था वैसा ही अब भी है। क्या आप जानते हैं कि 2022 के विधानसभा चुनाव में यह स्याही 60 साल की आयु पूरी करने वाली है। तर्जनी पर इसे लगवाने का जो मजा है उसकी कल्पना एक मतदाता ही कर सकता है।

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मतदान की पहचान है स्याही

मतदाता की तर्जनी पर त्वचा से लेकर नाखून तक स्याही इसलिए लगाई जाती है ताकि यह पहचान दी जा सके कि उसने प्रत्याशी को अपना वोट दे दिया है। इसका प्रयोग दरअसल फर्जी मतदान रोकने के लिए किया जाता है। मतदान केंद्र में जो स्याही तर्जनी पर लगाई जाती है उसका रंग करीब 20 दिनों बाद ही पूरी तरह से मिट पाता है। तर्जनी पर लगते ही सयाही 60 सेकेंड में सूख जाती है। इसमें सिल्वर नाइट्रेट (एजीएनओ-3) नामक तत्व मिला होता है यह पानी में घुलनशील नहीं होता। पानी की बजाए धूप और हवा लगने पर स्याही का रंग धीरे-धीरे मिटता है।

कर्नाटक में निर्माण, कई देशों में निर्यात

चुनावों में इस्तेमाल होने वाली स्याही कर्नाटक राज्य में स्थित मैसूर पेंट्स एंड वार्निश लिमिटेड बनाती है। भारत में होने वाले सभी चुनावों के लिए इसी कंपनी से स्याही भेजी जाती है। भारत के अलावा कंपनी इस स्याही का निर्यात दक्षिण अफ्रीका, नाइजीरिया, मलेशिया, सिंगापुर सहित अन्य देशों में भी करती है। इस स्याही को बनाने का फार्मूला गोपनीय रखा जाता है।

पहली बार स्याही लगना याद है

कीडगंज निवासी 85 वर्षीय कृष्णानंद शर्मा कहते हैं कि 1962 का चुनाव उन्हें कुछ-कुछ याद है। तब उनकी उम्र 25 साल थी। कहा कि उस चुनाव में जब मतदाताओं की अंगुली पर स्याही लगाई गई थी तो किसी ने विरोध किया था और कुछ लोगों ने पहली बार इसके इस्तेमाल पर ऐसी खुशी जताई थी कि मतदान केंद्र से लौटकर पूरा दिन मोहल्ले में घूम-घूम कर बस उसी स्याही की चर्चा करते थे। रानीमंडी निवासी 67 वर्षीय रामजी केसरवानी भी कहते हैं कि लोग मतदान केंद्र से तर्जनी पर स्याही लगवाकर लौटते हैं तो मन में काफी कौतूहल रहता है। कई दिनों तक उसी अंगुली को दिखाकर एक दूसरे से अपने मन की खुशी साझा करते हैं।

स्याही देख घूंघट की ओट से मुस्कुराते चेहरे

खुशी चुनावों में उन्हें होती है जो अपने जीवन में पहली बार वोट डालते हैं। 18 साल के युवा हों या फिर ग्रामीण महिलाएं। घूंघट की ओट में आकर महिलाएं वोट देने के बाद उसी तर्जनी को दिखाते हुए फोटोग्राफी कराने में रुचि लेती हैं।


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