तब नहीं थी कार या वैन, तांगे से आते थे नेताजी और मांगकर गुड़ के साथ पीते थे पानी
UP Chunav News तब जमीनी स्तर के कार्यकर्ता ही टिकट पाते थे और लग्जरी कारें या वैन उनके पास नहीं थीं वह पैदल घूमा करते थे। उस वक्त ज्यादातर गांवों में रास्ता अब की तरह नहीं हाेता था। तांगे से भी वोटर की चौखट तक पहुंचना आसान न था।
राज नारायण शुक्ल राजन, प्रतापगढ़। विधानसभा चुनाव के नजारे पहले के दौर में कुछ और ही हुआ करते थे। अजब-गजब चुनाव होता था। जमीनी स्तर के कार्यकर्ता ही टिकट पाते थे और उनको कई तरह की अग्निपरीक्षाओं से गुजरना पड़ता था। लग्जरी कारें या वैन उनके पास नहीं थीं, वह पैदल घूमा करते थे। उस वक्त ज्यादातर गांवों में रास्ता अब की तरह नहीं हाेता था। तांगे से भी वोटर की चौखट तक पहुंचना आसान न था।
देश को आजादी मिलने के बाद जब चुनाव शुरू हुए तो मतदाता इसके बारे में नहीं जानते थे। ऐसे में नेताओं को उनको चुनाव का मतलब तक समझाना पड़ता था। यही नहीं रास्ता सही सलामत न होने से वह तांगा बाहर ही छोड़ देते थे। फिर पैदल घर-घर जाकर प्रचार करते थे। अब के नेताओं की तरह दिखावे से दूर रहते थे। कभी बिहार के नाम से सामान्य सीट रही बाबागंज क्षेत्र के निवासी पूर्व प्रधानाचार्य शीतला प्रसाद त्रिपाठी से चर्चा की गई तो वह कहने लगे कि किसी मतदाता के यहां तब के नेता असमय दखल नहीं देते थे। न तो बहुत भाेर में जाते थे और न देर रात उनको परेशान करते थे।
बहुत सरल नेता थे राम स्वरूप भारती
मिसाल के तौर पर यहां से कांग्रेस से लड़े व जीते राम स्वरूप भारती बहुत सरल नेता थे। कार्यकर्ताओं को भी अपने बराबर सम्मान दिया करते थे। खुद को उन्होंने कभी विधायक नहीं माना, हमेशा कार्यकर्ताओं की तरह रहे। जीतने के बाद उसी तरह गांव में आया करते थे।किसी के यहां गुड मांग कर पानी खुद पी लेते थे। किसी के यहां चना-चबेना लेकर खाते और दोपहर में आराम कर लेते थे। इसी क्षेत्र के वरिष्ठ किसान गया प्रसाद तिवारी बताते हैं कि तब न बड़े-बड़े वादे होते थे और नारे। अब तो चुनाव में बहुत बदलाव आ गया। राजनीतिक मर्यादा की सब सीमाएं अब टूट रही हैं।
तब बाबागंज को कहते थे बिहार
शायद नई पीढ़ी को यह न पता हो कि पहले कई सीटों से पार्टियां दो-दो प्रत्याशी उतारती थीं। बाबागंज सीट की कहानी कुछ ऐसी ही थी। कुंडा तहसील क्षेत्र की यह विधानसभा सीट पहले बिहार के नाम से जानी जाती थी। यहां पर कांग्रेस उस समय एक सामान्य वर्ग और एक अनुसूचित वर्ग से प्रत्याशी उतारती थी। खास बात यह थी कि दोनों के लिए प्रचार करने एक ही नेता आते थे। इस सीट से शुरुआती चुनाव में कांग्रेस ने अपने कार्यकर्ता रामस्वरूप भारती को उतारा तो राम नरेश शुक्ला को भी टिकट दिया। समाजसेवी डा. असलम रहीमी बताते हैं कि तब के उम्मीदवार गरिमा के साथ चुनाव लड़ते थे। एक दूसरे की कमियां नहीं, अपनी प्राथमिकताएं बताते थे।