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UP Chunav 2022: राजनीत‍ि की प‍िच पर नौकरशाही का रंग कभी चटक तो कभी फीका

अजब विरोधों से भरी राजनीति की राह...। बावजूद इसके राजनीति का गलियारा सभी को लुभाता है। छात्र हो नौकरशाह हो या फिर आम। सभी की शुरुआत मजलूमों को हक दिलाने व्यवस्था को बदलने की चाहत से होती है। परिणति दिल्ली और लखनऊ में स्थापित होने के रूप में होती है।

By Ankur TripathiEdited By: Published: Thu, 13 Jan 2022 03:35 PM (IST)Updated: Thu, 13 Jan 2022 08:54 PM (IST)
UP Chunav 2022:  राजनीत‍ि की प‍िच पर नौकरशाही का रंग कभी चटक तो कभी फीका
किसी के हाथ आई सफलता तो कोई हुआ मायूस, कुछ अब भी कुर्सी के लिए आजमा रहे जोर

प्रयागराज, जागरण संवाददाता। इस पार्टी में चोर जो, उस पार्टी में शाह। अजब विरोधों से भरी, राजनीति की राह...। बावजूद इसके राजनीति का गलियारा सभी को लुभाता है। छात्र हो नौकरशाह हो या फिर आम। सभी की शुरुआत मजलूमों को हक दिलाने। व्यवस्था को बदल देने के साथ कुछ कर गुजरने की चाहत से होती है। परिणति दिल्ली और लखनऊ पहुंचकर स्थापित होने के रूप में होती है। इनमें कुछ नाम शिलालेख बन जाते हैं तो कुछ दौड़ लगाते और धूल उड़ाते हुए अपने होने का एहसास कराते रहते हैं। आज ऐसे ही कुछ नामों की चर्चा करते हैं जो कभी नौकरशाही के पर्याय होते थे। अब राजशाही की डगर पर हैं।

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बात शुरू करते हैं 2017 के विधानसभा चुनाव से। संगमनगरी के कमिश्नर रहे बादल चटर्जी ने सियासी बिसात पर कदम रखा। उन्होंने शहर उत्तरी से निर्दल प्रत्याशी के रूप में भाग्य आजमाया। यह अलग बात है कि वह 967 वोट पाकर चाैथे स्थान पर रहे। हार का सामना करने के बाद उन्होंने वकालत की तरफ रुख किया। कहते हैं कि कोशिश थी कि जो काम सरकारी नौकरी में नहीं कर पाए उसे विधायिका के माध्यम से दुरुस्त करते। जून 2015 में सेवानिवृत्त हुए 1995 बैच के आइपीएस अफसर लाल जी शुक्ल भी चुनावी समर में कूद पड़े हैं। वह प्रयागराज में पुलिस उप महानिरीक्षक रह चुके हैं। पूर्व आइएएस सूर्य प्रताप शाही भी नौकरशाही में अच्छी दखल रखते थे। सेवानिवृत्ति के बाद राजनीति की तरफ घूमे। इलाहाबाद विश्वविद्यालय के छात्रसंघ से जुड़े आंदोलनों को भी कई बार समर्थन देने आए। अब लखनऊ में राजनीति के गलियारे में कई बार दिख जाते हैं। इसी सिलसिले को आगे बढ़ाएं तो बारा तहसील के निवासी हरदेव सिंह जो कभी एडीएम सिविल सप्लाई होते थे, उन्होंने भी राजनीति में भाग्य आजमाया। सपा प्रत्याशी के रूप में मैदान में उतरे लेकिन सफलता नहीं मिली। पीसीएस एसोसिएशन के अध्यक्ष रहे हरदेव सिंह जो कई बार प्रयागराज में माघ मेला के दौरान तैनात रहे। उन्होंने भी आम आदमी पार्टी के टिकट पर चुनाव लड़ा लेकिन हार का सामना करना पड़ा। वर्तमान में राष्ट्रीय लोकदल से जुड़ चुके हैं।

इन पर भी पड़ी सियासी छाया

प्रयागराज में डीएम रहे जौनपुर निवासी महावीर यादव ने भी सपा के साथ नाता जोड़ा। यह अलग बात है कि कोई खास पहचान नहीं बनी। यूपी बोर्ड के सचिव रहे वासुदेव यादव सपा के साथ जुड़कर एमएलसी बने। मेजा निवासी रामेंद्र सिंह पूर्व आइएएस सपा के खेमे में हैं। हाईकोर्ट के जज रहे सभाजीत यादव भी राजनीति से प्रभावित हुए। उन्होंने पहले बसपा की सदस्यता ली बाद में कांग्रेस से भी जुड़े। संगम नगरी से जुड़ाव रखने वाले पूर्व अपर आयुक्त आबकारी कृष्ण चंद्र ने सरकारी नौकरी पूरी करने के बाद बीएसपी के टिकट पर बाबागंज से चुनाव लड़े। स्टैनली रोड निवासी विजय शंकर पांडेय पूर्व आइएस जो भ्रष्टाचार पर हमला के लिए विशेष रूप से पहचाने जाते थे। वह भी स्वतंत्र उम्मीदवार के रूप में फैजाबाद से चुनाव लड़े, हालांकि हार का सामना करना पड़ा। इसी क्रम में श्याम सिंह यादव का नाम भी खास है। पीसीएस अफसर के रूप में कई जगह तैनाती मिली। बाद में बसपा के टिकट से जौनपुर में चुनाव लड़े।

काट दी थी बहुगुणा की पानी सप्लाई

प्रयागराज में एडमिनिस्ट्रेटर रहे तेज तर्रार अफसर महमूद बट ने अपने समय में खूब नाम कमाया। सुमित्रानंदन पंत उद्यान बनाने का श्रेय भी इन्हें जाता है। पानी का बिल बकाया होने पर उन्होंने हेमवती नंदन बहुगुणा के पानी का कनेक्शन कटवा दिया था। बाद में बहुगुणा मुख्यमंत्री बने तो उस दौर में चीफ सेक्रेटरी का भी ओहदा मिला। उनके तेजी का अनुमान इसी से लगा सकते हैं कि लोग कहते थे महमूद बट, दो फिट पीछे हट। आगे चलकर वह जनता दल से जुड़े।

इन अफसरों की चमकी किस्मत

यूपी की राजनीति में गुजरात कैडर के पूर्व आइएएस अधिकारी अरविंद शर्मा ने इलाहाबाद विश्वविद्यालय से पढ़ाई की। इन्होंने भी वीआरएस लेकर राजनीति में एंट्री की और भाजपा के टिकट से विधान परिषद के सदस्य बने। यूपी कैडर के आइएएस व फैजाबाद के डीएम रहे कृष्ण करुणाकरण नायर ने भी वीआरएस लेने के बाद जनसंघ ज्वाइन की और वर्ष 1967 में बहराइच से लोकसभा सदस्य बने। 1992 में अयोध्या के एसएसपी रहे आइपीएस देवेंद्र बहादुर राय ने भी किस्मत आजमाई। भाजपा से सांसद बने। पुलिस महानिदेशक बने श्रीचन्द्र ने भी राजनीति में दांव लगाया। भाजपा के टिकट से सांसद बने। विश्व हिन्दू परिषद के उपाध्यक्ष भी रहे। आइपीएस अधिकारी महेन्द्र सिंह यादव भी वीआरएस लेने के बाद भाजपा से टिकट से विधायक बने। पूर्व आइएएस देवी दयाल ने रिटायर होने के बाद कांग्रेस ज्वाइन की और कांग्रेस के टिकट से लोकसभा पहुंचे। यूपी के डीजीपी रहे पूर्व आइपीएस बृजलाल भी भाजपा के टिकट पर राज्यसभा पहुंचने में कामयाब हुए। आइएएस रहे राजबहादुर, ओमप्रकाश, आइएएस अनीस अंसारी ने भी राजनीति में अच्छी पारी खेली। आइपीएस अधिकारी रहे अहमद हसन ने सेवानिवृत्ति के बाद सपा की सदस्यता ली।

राजनीतिक विश्लेषक का है कहना

केंद्रीय प्रशासनिक सेवा और राज्य प्रशासनिक सेवा में सेवारत, स्वैच्छिक सेवानिवृत्त, सेवानिवृत्त लोगों को दो वर्ष के पश्चात ही किसी राजनीतिक दल में सक्रिय रूप से शामिल होने की अनुमति मिलनी चाहिए। इसके लिए सेवा नियमावली में संशोधन बहुत जरूरी है। ऐसा न होने पर कई बार शक्तियों का दुरुपयोग होने की संभावना बनी रहती है। आम जनमानस भी उनके प्रभाव क्षेत्र में आ जाता है जो कई बार अनुचित होता है।

- डा. संजय पांडेय, राजनीतिक विश्लेषक, इलाहाबाद केंद्रीय विश्वविद्याल


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