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यूपी चुनाव 2022: अबकी केशव प्रसाद मौर्य के सहारे काशी क्षेत्र, भाजपा ने बनाया चुनावी रथ का सारथी

सिराथू से केशव दूसरी बार मैदान में उतरे हैं। इससे पहले वह 2012 में जीत हासिल कर चुके हैं जब कि इलाहाबाद शहर पश्चिमी सीट से 2004 व 2007 में हार का सामना भी किया। शायद उन्हीं नतीजों से सीख लेते हुए पार्टी ने घर वालों पर ज्यादा भरोसा दिखाया।

By Ankur TripathiEdited By: Published: Mon, 17 Jan 2022 07:30 AM (IST)Updated: Mon, 17 Jan 2022 07:30 AM (IST)
यूपी चुनाव 2022: अबकी केशव प्रसाद मौर्य के सहारे काशी क्षेत्र, भाजपा ने बनाया चुनावी रथ का सारथी
कौशांबी की सिराथू विधानसभा सीट से केशव प्रसाद मौर्य दूसरी बार मैदान में उतरे हैं।

यह है लेखा जोखा

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71 विधानसभा सीट में से पिछले चुनाव में 55 भाजपा व सहयोगी दलों के पास थीं

इस बार इन्हें बचाने और अन्य सीटों को अपनी झोली में डालने की चुनौती रहेगी

दूसरे चरण की तीन सीट, बनारस की एक सीट, गाजीपुर की दो सीट सुहेलदेव पार्टी के प्रभाव में

पांचवें चरण की तीन सीट सुहेलदेव पार्टी के प्रभाव में पिछली बार रही थी

अमलेन्दु त्रिपाठी, प्रयागराज। 18वीं विधानसभा के गठन के लिए बिसात बिछ चुकी है। महारथी अपनी गोटें सधे अंदाज में बढ़ा रहे हैं। विपक्ष किस घोड़े पर दांव लगाएगा यह देखना है। भाजपा ने वजीर की चाल चली है। शुरुआती रुझान के अनुसार द्वाबा क्षेत्र रणनीति का केंद्र रहेगा। यहां से फतेहपुर, बांदा व चित्रकूट के बीहड़ों के साथ काशी क्षेत्र व अवध के कुछ इलाकों पर निशाना साधा जाएगा। भाजपा ने यहां का सारथी केशव को बनाया है। कह सकते हैं कि अब काशी क्षेत्र केशव के सहारे होगा।

दूसरी बार अपने गृह जनपद की सीट से चुनाव मैदान में केशव

कौशांबी की सिराथू विधानसभा सीट से केशव प्रसाद मौर्य दूसरी बार मैदान में उतरे हैं। इससे पहले वह 2012 में जीत हासिल कर चुके हैं, जब कि इलाहाबाद की शहर पश्चिमी सीट से 2004 व 2007 में हार का सामना भी उन्होंने किया है। शायद उन्हीं नतीजों से सीख लेते हुए पार्टी ने घर वालों पर ज्यादा भरोसा दिखाया। फिलहाल अब केशव का कद काफी बड़ा हो चुका है। वह क्षेत्र विशेष के नहीं प्रदेश के नेता बन चुके हैं। जाति के आधार पर देखें तो पिछड़े वर्ग के भी मुखिया कहे जा सकते हैं।

काशी क्षेत्र में कुल 71 विधानसभा सीटें हैं। पिछले चुनाव नतीजों के अनुसार इनमें से 55 भाजपा व सहयोगी दलों के खाते में थीं। इन्हें बचाते हुए और सीटें अपनी झाेली में डालने की चुनौती केशव के पास है। वह भी तब जब जातीय आधार पर विपक्ष घेराबंदी करने में जुटा है। इस क्षेत्र में 2022 की विधानसभा के गठन के लिए पांचवें और सातवें चरण में मतदान होना है। पांचवें चरण में प्रतापगढ़, कौशांबी, प्रयागराज, अमेठी व सुल्तानपुर में वोट डाले जाएंगे। इन सभी जिलों की विधानसभा सीट के पिछले आंकड़े पर गौर करें तो 31 सीट में से 20 भाजपा के पास हैं। तीन सीट समाजवादी पार्टी, दो बहुजन समाज पार्टी, एक कांग्रेस, दो निर्दल और तीन अपना दल के पास हैं। इसी क्रम में सातवें चरण की चर्चा करें तो गाजीपुर, बनारस, मिर्जापुर, भदोही, चंदौली, सोनभद्र और जौनपुर में मतदान होंगे। यहां कुल 40 विधानसभा सीटें हैं। पिछली बार इनमें से भाजपा के पास 25 सीटें थीं। सपा के पास छह, अपना दल के पास चार, बीएसपी के पास एक, सुहेलदेव पार्टी के पास तीन, निषाद पार्टी के पास एक सीट थी।

काशी क्षेत्र में 14 एससी सीट

सीटों के आरक्षण को देखें तो काशी क्षेत्र की 70 में से 14 सीट एससी और दो सीट एसटी के लिए आरक्षित हैं। दोनों एसटी सीट सोनभद्र जिले की दुद्दी और ओबरा है। पिछली बार दुद्दी पर अपना दल तो ओबरा में भाजपा ने परचम लहराया था। एससी सीटों में से आठ भाजपा, दो सुहेलदेव, दो सपा, एक निर्दल, एक अपना दल के खाते में आई थीं। निर्दल के खाते में जाने वाली सीट प्रतापगढ़ की बाबागंज विधानसभा है। यहां से विनोद कुमार ने जीत दर्ज की थी।

किस जिले की कितनी सीट किसके खाते में

प्रयागराज में 12 सीट है। यहां बीजीपी के पास आठ, अपना दल के पास एक, सपा के पास एक, बीएसपी के पास दो सीट।

भदोही में तीन सीट, बीजेपी के पास दो, निषाद पार्टी के पास एक सीट।

चंदौली में चार सीट, इसमें से बीजेपी के पास तीन, सपा के पास एक सीट।

गाजीपुर में सात सीट, बीजेपी के पास तीन, सुहेलदेव पार्टी के पास दो, सपा के पास दो सीट।

जौनपुर में नौ सीट, बीजेपी के पास चार, सपा के पास तीन, अपना दल के पास एक, बीएसपी एक सीट।

कौशांबी में तीन सीट तीनों पर बीजेपी का कब्जा।

मिर्जापुर में पांच सीट, बीजेपी के पास चार, अपना दल के पास एक सीट।

प्रतापगढ़ में सात सीट, बीजेपी के पास दो, अपना दल दो, निर्दल दो, कांग्रेस एक (रामपुर खास)।

सोनभद्र में चार सीट, बीजेपी के पास तीन, अपना दल एक सीट।

सुल्तानपुर में पांच सीट, बीजेपी चार, सपा एक सीट।

वाराणसी में आठ सीट, बीजेपी छह, अपना दल एक, सुहेलदेव पार्टी एक सीट।

अमेठी में चार सीट, बीजेपी तीन, सपा एक सीट।

काशी के क्षेत्रीय संयोजक रहे केशव

केशव प्रसाद मौर्य को 2014 में भाजपा ने संगठन का दायित्व दिया था। उन्हें काशी का क्षेत्रीय संयोजक बनाया गया था। इस दौरान उन्होंने संगठन के लिए खूब दौड़ लगाई थी। उस दृष्टि से देखें तो अनुभव का लाभ जरूर मिलेगा। इस क्षेत्र में मौर्य, शाक्य, कुर्मी, पटेल के साथ ओबीसी मतदाता काफी हैं। भाजपा के प्रदेश सह संयोजक राष्ट्रीय प्रशिक्षण अभियान डा. शैलेष पांडेय कहते हैं कि सुहेल देव पार्टी इस बार सपा के साथ है। राजभर वोटर भी भाजपा के साथ नहीं है। अपना दल और निषाद पार्टी भाजपा के साथ है। इस दृष्टि से देखें तो सुहेल देव पार्टी का कुछ प्रभाव पांचवें चरण के मतदान में तीन सीटों पर पड़ सकता है जब कि राजभर वोटर का खास असर नहीं पड़ेगा। इसकी वजह यह कि केशव प्रसाद मौर्य स्वयं दलितों और पिछड़े वर्ग का बड़ा चेहरा हैं।

मंदिर आंदोलन से जुड़ाव का मिलेगा लाभ

केशव प्रसाद मौर्य ने श्रीराम मंदिर आंदोलन के दौरान विहिप, आरएसएस के साथ मिलकर सक्रिय भूमिका निभाई थी। तमाम इलाकों में उन्होंने स्वयं कारसेवकों के साथ बैठक आदि में हिस्सा लिया था। वह हिंदूवादी नेता का भी चेहरा रखते हैं। इसका पूरा लाभ मिलेगा।

बांदा, चित्रकूट व फतेहपुर में भाजपा का वर्चस्व

बांदा में चार विधानसभा सीट है इसमें से सभी भाजपा के खाते में है। चित्रकूट में दो सीट, यहां भी भगवा लहरा रहा। फतेहपुर में छह सीट है। पांच भाजपा तो एक अपना दल के खाते में हैं। खास यह कि बांदा और फतेहपुर की एक एक सीट एससी है। दोनों पर भाजपा काबिज है। इन सीटों को भी बचाने का दायित्व केशव पर रहेगा।


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