प्रयागराज में अनोखा मामला, 52 वर्षों में 56 जजों ने की एक मुकदमे में सुनवाई, अब हुआ फैसला
मुकदमे के दाखिला से लेकर कब्जा दिलाने तक कुल 56 जज ने मामले की सुनवाई किया। प्रकरण को लेकर जिला अदालत में 1996 में इजरावाद दाखिल हुआ। अपर मुख्य न्यायिक मजिस्ट्रेट श्रेया भार्गव ने अशोक कुमार शुक्ल अधिवक्ता के तर्कों को सुनकर याची के पक्ष में फैसला किया है।
प्रयागराज, जागरण संवाददाता। अपर मुख्य न्यायिक मजिस्ट्रेट की कोर्ट ने 52 वर्ष पुराने मामले में फैसला दिया है। इस प्रकरण में फरियादी को न्याय मिला है, लेकिन अपने साथ हुए न्याय को सुनने व देखने के लिए सात परियादियों में से छह जिंदा नहीं है। इस अंतराल में एक-एक कर सभी की मौत हो गई, फरियादियों में एक मात्र जीवित बचे हैं। हालांकि उन्होंने मुकदमे के दौरान ही सुरेंद्र जायसवाल को जमीन बेच दी। अब कोर्ट के निर्णय के बाद कब्जा मिलेगा।
सात बिस्वा जमीन पर कब्जे को लेकर 1996 में दर्ज था मुकदमा
प्रकरण के मुताबिक, नैनी के चक रघुनाथ में सात बिस्वा जमीन पर कब्जे को लेकर 1969 में जनपद न्यायालय में मुकदमा दाखिल किया। जमीन के मालिक माधव स्वरूप के पिता निहाल ने नरेंद्र को जमीन टाल चलाने के लिए किराये पर दिया था। नरेंद्र ने कुछ समय बाद किराये की इस जमीन को आबिद को किराए पर दे दिया। निहाल ने इसका विरोध किया जमीन वापस करने को कहा। लेकिन, नरेंद्र और आबिद की नीयत ठीक नहीं थी, दोनों ने जमीन खाली करने से इंकार कर दिया। इसी दौरान नरेंद्र ने विधि विरुद्ध तरीके से आबिद को शिकमी किराएदार बनाकर जमीन का कब्जा दे दिया। इस पर निहाल ने नरेंद्र और आबिद के कब्जे से जमीन खाली कराने किराए की धनराशि दिलाए जाने के लिए मुकदमा किया।
1980 में फैसले के विरोध में फिर अपील हुई
11 साल सुनवाई के बाद जिला अदालत ने वर्ष 1980 में अपना फैसला दिया। हालांकि इस फैसले के विरोध में फिर अपील में चले गए, अपील को 1982 में जिला जज ने निस्तारित किया। विपक्षी फैसले को हाई कोर्ट में चुनौती दी। दो साल वहां सुनवाई के बाद 1984 में हाई कोर्ट ने सेकंड अपील निस्तारित कर दी। निस्तारित करते हुए हाई कोर्ट ने अपील को पुन: उसी कोर्ट में भेज दिया।
56 जजों ने मामले की सुनवाई की
मुकदमे के दाखिला से लेकर कब्जा दिलाने तक कुल 56 जज ने मामले की सुनवाई किया। दौरान मुकदमा वादी मालिक ने सुरेंद्र जायसवाल को विवादित जमीन बेच दी बाद में यह मुकदमे के पक्षकार हो गए अदालत ने इन्हें कब्जा दिलाया। निहाल चंद्र की मृत्यु हो गई इसके पश्चात पांच और कानूनी वारिसों की भी मृत्यु हो गई। प्रकरण को लेकर जिला अदालत में 1996 में इजरावाद दाखिल हुआ। अपर मुख्य न्यायिक मजिस्ट्रेट श्रेया भार्गव ने अशोक कुमार शुक्ल अधिवक्ता के तर्कों को सुनकर याची के पक्ष में फैसला किया है।