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अखाड़ा परिषद अध्यक्ष के लिए दो रवींद्र पुरी दावेदार

संतों की सबसे बड़ी संस्था अखिल भारतीय अखाड़ा परिषद के अध्यक्ष पद के लिए दो-दो रविंद्रपुरी आमने सामने हैं।

By JagranEdited By: Published: Fri, 08 Oct 2021 01:38 AM (IST)Updated: Fri, 08 Oct 2021 03:10 PM (IST)
अखाड़ा परिषद अध्यक्ष के लिए दो रवींद्र पुरी दावेदार
अखाड़ा परिषद अध्यक्ष के लिए दो रवींद्र पुरी दावेदार

जागरण संवाददाता, प्रयागराज : संतों की सबसे बड़ी संस्था अखिल भारतीय अखाड़ा परिषद के अध्यक्ष पद को लेकर उत्सुकता बढ़ चली है। यहां दारागंज स्थित श्रीनिरंजनी अखाड़ा परिसर में इसके लिए 25 अक्टूबर को बैठक प्रस्तावित है। वैष्णव अखाड़ों की नाराजगी के बीच इसमें क्या फैसला होता है, यह देखने लायक होगा। दावा तो जूना अखाड़े की तरफ से भी है, लेकिन अब तक श्रीमहानिर्वाणी व श्रीनिरंजनी अखाड़ा के सचिव ही प्रबल दावेदार माने जा रहे हैं। अहम बात यह है कि दोनों ही सचिवों का नाम रवींद्र पुरी है।

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श्रीनिरंजनी अखाड़ा के सचिव के रूप में महंत नरेंद्र गिरि 2014 में अखाड़ा परिषद अध्यक्ष बने थे। वर्ष 2019 में उनका कार्यकाल पांच साल के लिए बढ़ा दिया गया। बीती 20 सितंबर को उनकी संदिग्ध परिस्थितियों में मृत्यु हो गई। कहा जा रहा है कि कार्यकाल के मध्य किसी अध्यक्ष की मृत्यु पर उसी अखाड़े से दूसरे महात्मा को अध्यक्ष पद दिया जाना चाहिए। यदि इस पर सहमति बनी तो श्रीनिरंजनी अखाड़ा के सचिव श्रीमहंत रवींद्र पुरी अध्यक्ष बन सकते हैं। वह अपने अखाड़े के कर्ताधर्ता हैं, दूसरे अखाड़ों से उनका अच्छा सामंजस्य है। नरेंद्र गिरि की मृत्यु के बाद उन्होंने ही श्री मठ बाघम्बरी गद्दी में समस्त आयोजन को सकुशल पूरा कराया है। चुनाव की स्थिति आती है तो श्री महानिर्वाणी अखाड़ा के सचिव श्रीमहंत रवींद्र पुरी मजबूत दावेदार होंगे। इस अखाड़ा से भी इस पद के लिए कई साल से दावेदारी रही है। रवींद्र पुरी का अपने अखाड़े में मान सम्मान है। वैसे वैष्णव संप्रदाय के श्रीनिर्वाणी अनी, श्रीदिगंबर अनी व श्रीनिर्मोही अनी अखाड़े के महात्मा भी अध्यक्ष पद के लिए दावेदारी कर रहे हैं, लेकिन संख्या बल के हिसाब से उनकी स्थिति कमजोर बताई जा रही है। जूना अखाड़ा के सभापति श्रीमहंत प्रेम गिरि ने भी अध्यक्ष पद के लिए दावेदारी की है। फिलहाल अखाड़ा परिषद महामंत्री महंत हरि गिरि इतना ही कहते हैं कि 25 अक्टूबर को इस संबंध में चर्चा प्रस्तावित है। अगर महात्माओं की संख्या कम रही और फैसला नहीं हुआ तो हम दोबारा बैठेंगे।


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