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Tuhin Kanti Ghosh ने राजीव गांधी सरकार को 'परास्‍त' किया था, वापस लेना पड़ा था प्रेस विरोधी बिल

वरिष्ठ पत्रकार एवं साहित्यकार डा. रामनरेश त्रिपाठी का कहना है कि स्व. तुहिन कांति घोष इलाहाबाद (अब प्रयागराज) में ही पले-बढ़े थे। वे अखबार की दुनिया के साथ ही अपने संगीत कौशल और खेल प्रेम के लिए भी जाने जाते थे। वे पर्यावरण प्रेमी भी थे।

By Brijesh SrivastavaEdited By: Published: Sun, 21 Feb 2021 02:52 PM (IST)Updated: Sun, 21 Feb 2021 02:52 PM (IST)
Tuhin Kanti Ghosh ने राजीव गांधी सरकार को 'परास्‍त' किया था, वापस लेना पड़ा था प्रेस विरोधी बिल
प्रेस की स्वतंत्रता के लिए संघर्ष करने वाले योद्धा थे स्व. तुहिन कांति घोष।

प्रयागराज, जेएनएन। अमृत बाजार पत्रिका और युगांतर के पूर्व संपादक स्व. तुहिन कांति घोष को प्रेस की स्वतंत्रता के लिए संघर्ष करने वाले योद्धा के रूप में सदैव याद किया जाएगा। प्रिंट मीडिया में अपनी जबर्दस्त उपस्थिति के साथ उन्होंने तत्कालीन प्रधानमंत्री राजीव गांधी की सरकार द्वारा प्रेस के विरूद्ध बनाए गए कठोर कानूनों का विरोध किया था। इस कानून के माध्यम से प्रेस की स्वतंत्रता पर अंकुश लगाने का प्रयास किया गया था।

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आइएनएस के पूर्वी क्षेत्रीय समिति के कई साल तक रहे अध्यक्ष

आइईएनएस के पूर्वी क्षेत्र की क्षेत्रीय समिति के अध्यक्ष के रूप में स्वर्गीय घोष ने राजीव गांधी सरकार को प्रेस की स्वतंत्रता को सीमित करने संबंधी बिल वापस लेने के लिए मजबूर कर दिया था। उल्लेखनीय है कि स्वर्गीय घोष का निधन गत बुधवार को दक्षिण कोलकाता स्थित उनके आवास पर हो गया था। वह 73 वर्ष के थे। स्वर्गीय घोष पिछले कुछ समय से बीमार चल रहे थे। वह अपने पीछे पत्नी सुवर्णा, बेटियां लवोनिता और आनंदिता, बहनें रीता और रोनिता तथा भाई तमाल कांति घोष सहित भरा पूरा परिवार छोड़ गए हैं।

प्रयागराज से था गहरा संबंध, इसी शहर में थे पले-बढ़े

वरिष्ठ पत्रकार एवं साहित्यकार डा. रामनरेश त्रिपाठी का कहना है कि स्व. घोष इलाहाबाद (अब प्रयागराज) में ही पले-बढ़े थे। वे अखबार की दुनिया के साथ ही अपने संगीत कौशल और खेल प्रेम के लिए भी जाने जाते थे। वे पर्यावरण प्रेमी भी थे। उनको जब भी मौका या समय मिलता हरे-भरे जंगल में जाना पसंद करते थे। इसी वजह से वह बाद में संरक्षणवादी हो गए थे।

इलाहाबाद विश्वविद्यालय से ली थी वकालत की डिग्री

इलाहाबाद विश्वविद्यालय से उन्होंने प्रथम श्रेणी के साथ वकालत की परीक्षा उत्तीर्ण की थी परंतु पूर्णकालिक रूप से अधिवक्ता का व्यवसाय अपनाने के बजाय उन्होंने मीडिया से जुड़े अपने पारंपरिक व्यवसाय को ही चुना और बतौर संपादक कार्य प्रारंभ किया। स्व. घोष सन् 1987-88 में आईईएनएस के तथा 1984 से 1986 तक यूएनआई के अध्यक्ष रहे थे। अपने दादा तुषार कांति घोष के पदचिन्हों पर चलते हुए उन्होंने समाचार पत्रों अमृत बाजार पत्रिका तथा युगांतर को बुलंदियों तक पहुंचाया।


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