भुगतान की आस लगाए टीएसएल कर्मचारियों की टूट रही सांस Prayagraj News
तालाबंदी के बाद नैनी स्थित त्रिवेणी स्ट्रक्चरल्स लिमिटेड (टीएसएल) के अब तक 14 कर्मचारियों की मौत हो चुकी है। भुगतान न मिलने से कई आर्थिक रूप से परेशान हैं।
प्रयागराज, जेएनएन। त्रिवेणी स्ट्रक्चरल्स लिमिटेड (टीएसएल) ने आजादी के बाद सैकड़ों परिवारों को रोजी-रोटी देने का काम किया। अब उसके गेट पर ताला बंद हैै। इसमें कार्यरत कर्मचारी बकाये के भुगतान की बाट जोहते हुए असमय काल कवलित हो रहे हैं। अब तक 14 कर्मचारियों की मौत हो चुकी है। उनका परिवार खानाबदोश जीवन जीने को विवश है। कर्मचारियों की लड़ाई कानूनी दांव पेंच में फंसी है। कर्मचारी जनप्रतिनिधियों की चौखट पर माथा पटकते पटकते थक चुके हैैं।
पंडित नेहरू और बहुगुणा के प्रयास से टीएसएल की 1969 में हुई थी स्थापना
आजादी के बाद तत्कालीन प्रधानमंत्री पं. जवाहर लाल नेहरू और प्रदेश के पूर्व मुख्यमंत्री हेमवती नंदन बहुगुणा के प्रयास से नैनी में टीएसएल की स्थापना वर्ष 1969 में हुई थी। लगभग ढाई हजार कर्मचारियों को इसमें रोजगार मिला था। देश ही नहीं विदेशों में भी अपनी गुणवत्ता का लोहा मनवाने वाली इस कंपनी के कर्मचारी 21 अक्टूबर 2013 की शाम को ड्यूटी कर घर गए थे। 22 अक्टूबर 2013 की सुबह जब वे ड्यूटी करने पहुंचे तो कंपनी के गेट पर ताला लगा था। तालाबंदी के बाद बाकी बचे 135 कर्मचारियों के बकाये का भुगतान अभी तक नहीं हो सका। अचानक रोजी-रोटी का संकट खड़ा हो जाने से कई कर्मचारियों का परिवार बिखर चुका है।
अब तक 14 कर्मचारियों की हो चुकी है मौत
कंपनी के प्रदूषण नियंत्रण विभाग में काम करने वाले एसडब्लू हसन और वर्कशाप में काम करने वाले ओपी यादव इस घटना से डिप्रेशन में चले गए थे। एक बार बिस्तर पकड़े तो दोबारा उठ नहीं सके। असमय काल के गाल में समा गए। डिप्टी मैनेजर के पद पर तैनात जटाशंकर शुक्ला बकाए की बाट जोहते हुए स्वर्गवासी हो गए। पर्सनल विभाग के बड़े बाबू सुशील कुमार और रिकार्ड रूम में कार्यरत डीसी पांडेय परिवार का लालन-पालन न कर पाने की वजह से बीमार पड़ गए। परिवार पैसे के अभाव में इलाज नहीं करा सका था। उनका निधन हो गया।
फीस न देने से रामसजीवन के बेटे को बीटेक से निकाल दिया गया
वर्कशाप में काम करने वाले रामजियावन के बेटे को बीटेक की कक्षा से इसलिए निकाल दिया गया कि उसकी फीस नहीं जमा हो सकी थी। यह सदमा राम जीयावन नहीं बर्दास्त कर सके। वर्कशाप में ही काम करने वाले धर्मराज निषाद और पर्सनल में काम करने वाले तेज बहादुर भी बकाये के भुगतान के लिए संघर्ष करते-करते चल बसे। इस तरह से अभी तक 14 कर्मचारियों का निधन हो चुका है।
भुगतान के प्रति गंभीर नहीं सरकार
नैनी कर्मचारी यूनियन के उपाध्यक्ष अजय प्रताप सिंह का कहना है कि 2016 से कंपनी के बाबत परिसमापक (लिक्विडेटर) बैठा दिया गया है। उनके कार्यालय का चक्कर लगाते-लगाते कर्मचारी थक गए हैं। कर्मचारी भुगतान के अभाव में भुखमरी की कगार पर पहुंच गए हैं, लेकिन सरकार है कि भुगतान के प्रति गंभीर नहीं है।