थ्रीडी बायो प्रिंटर से कृत्रिम अंग बनाने की ओर ट्रिपल आइटी प्रयागराज का बड़ा कदम
थ्रीडी बायो प्रिंटर से कृत्रिम अंग बनाने की दिशा में ट्रिपल आइटी प्रयागराज ने बड़ा कदम बढ़ाया है। वह दिन दूर नहीं जब थ्रीडी बायो प्रिंटर से बना दिल लीवर किडनी जैसे अंग या उसके खराब हो चुके हिस्से आपके शरीर में प्रत्यारोपित हो सकेंगे।
मृत्युंजय मिश्रा, प्रयागराज। थ्रीडी बायो प्रिंटर से कृत्रिम अंग बनाने की दिशा में ट्रिपल आइटी प्रयागराज ने बड़ा कदम बढ़ाया है। वह दिन दूर नहीं जब थ्रीडी बायो प्रिंटर से बना दिल, लीवर, किडनी जैसे अंग या उसके खराब हो चुके हिस्से आपके शरीर में प्रत्यारोपित हो सकेंगे। आपकी कोशिकाओं से ही बनें इन अंगों को शरीर भी खारिज नहीं करेगा। यह संभव होगा थ्रीडी बायो प्रिंटर से। इसका पेटेंट भी प्राप्त हो चुका है।
इस थ्रीडी बायो प्रिंटर को भारतीय सूचना प्रौद्योगिकी संस्थान (ट्रिपलआइटी), प्रयागराज के बायो मेडिकल इंजीनियरिंग शोध छात्र ने बनाया है। इसके बाद सोडियम एल्जीनेट यानी हाइड्रोजेल (मानव के अंदरूनी अंगों की तरह लचीला समुद्री शैवाल) में जटिल रक्त वाहिकाएं बनाईं और इसमें रक्त प्रवाहित करने में सफलता हासिल की है। अब अगले चरण में पशुओं के थ्रीडी अंग और उनकी रक्तवाहिकाओं के साथ प्रिंट कर शोध को आगे बढ़ाया जाएगा। थ्रीडी बायो प्रिंटर का पेटेंट भी हासिल किया जा चुका है।
रक्त आपूर्ति है सबसे बड़ी चुनौती
थ्रीडी बायो प्रिंटर तैयार करने वाले अमर ध्वज ने ट्रिपलआइटी से वर्ष 2017 में बायो मेडिकल इंजीनियरिंग में इंटीग्रेटेड एमटेक किया। इसके बाद अप्लाइड साइंस के एसोसिएट प्रोफेसर डा. अमित प्रभाकर के निर्देशन में थ्रीडी प्रिंटिंग एंड टिश्यू इंजीनियरिंग पर शोध शुरू किया। अमर कहते हैं कि मानव अंगों को प्रिंट करने में सबसे बड़ी चुनौती इसमें रक्त आपूर्ति की है, जो थ्रीडी प्रिंटेड अंगों को जीवित रखने के लिए बेहद जरूरी है। इसमें रक्त वाहिकाओं की अहम भूमिका होती है। अंग में रक्तवाहिकाएं बनाने के लिए समुद्री शैवाल से निकलने वाले हाइड्रोजेल का प्रयोग किया गया। हाइड्रोजेल में रक्तवाहिकाओं को बनाकर उसमें रक्त संचरण भी करा लिया गया है। प्रयोगशाला में सफल परीक्षा बाद अब जानवरों के थ्रीडी प्रिंटेंड अंग तैयार करने उसे जानवरों में प्रत्यारोपित कर परीक्षण की तैयारी की जा रही है।
तीन चरणों से गुजरकर बनता है मानव अंग
अमरध्वज का कहना है कि अंग प्रत्यारोपण में सबसे बड़ी समस्या दानदाता का न मिलना है। मान लीजिए किसी व्यक्ति का हार्ट, हार्ट वाल्व या धमनियां खराब हो गई हैं तो उस अंग या उसके विशेष भाग को भी बना सकते हैं। वे बताते हैं कि पहला चरण थ्रीडी इमेजिंग का है। इसके लिए उस अंग का एमआरआइ स्कैन किया जाता है। इसके बाद थ्रीडी माडलिंग होती है। इसमें एमआरआइ स्कैन के डाटा को साफ्टवेयर में डालकर थ्रीडी ब्लूप्रिंट तैयार करते हैं। इसमें एआइ और डाटा माइनिंग तकनीक का प्रयोग होता है। फिर जीवित कोशिकाएं और उसके आधार के रूप में कोलेजन, हाइड्रोजेल, प्रोटीन से बायो इंक बनाकर अंग को प्रिंट किया जाता है।
ऐसे काम करेंगे अंग
थ्रीडी प्रिंटेड रक्त वाहिकाएं मरीज के ऊतक के साथ दोबारा जुड़कर हृदय में रक्त प्रवाह करेंगी। ऊतक की बायोइंजीनियरिंग के दूसरे तरीके भी तलाशे जा रहे हैं, ताकि और रक्तवाहिकाएं बन सकें। हृदय बनाने के लिए थ्रीडी प्रिंटर बनाया जा चुका है। अभी ये प्रिंटर मांसपेशियों, रक्त वाहिकाओं, वाल्व जैसे हिस्सों को प्रिंट करेंगे। इसके बाद पूरा हृदय प्रिंट होगा।
ट्रिपलआइटी के अप्लाइड साइंस विभाग के एसोसिएट प्रोफेसर ने कहा कि अंग आपकी कोशिकाओं से बनेगा तो शरीर इसको खारिज भी नहीं करेगा। प्रयोगशाला में मानव अंग के अंदर रक्त वाहिकाएं बनाने और इंसान के रक्त को सफलतापूर्वक प्रवाहित करने का परीक्षण सफल रहा है। अब इस माडल को जानवरों में प्रयोग किया जाएगा। इसके बाद अंगों पर काम शुरू होगा।