Move to Jagran APP

फीस भरें या कोरोना संकट में करें परिवार का गुजारा, स्कूली बच्चों के अभिभावक चाहते हैं कि आधा किया जाए शुल्क

तमाम बच्चों के अभिभावकों की नौकरी छिन गई या वेतन घट गया। कारोबारी हैं तो आमदनी आधी भी नहीं रह गई। ऐसे में पूरी फीस भरना उनके लिए संभव नहीं रह गया है। ऊपर से नई कक्षा के लिए महंगी किताब-कापियां खरीदना और भी भारी साबित हो रहा है।

By Ankur TripathiEdited By: Published: Mon, 19 Apr 2021 05:39 PM (IST)Updated: Mon, 19 Apr 2021 05:39 PM (IST)
फीस भरें या कोरोना संकट में करें परिवार का गुजारा, स्कूली बच्चों के अभिभावक चाहते हैं कि आधा किया जाए शुल्क
अभिभावक चाहते हैं कि फीस आधी कर दी जाए या पहली तिमाही की फीस माफ कर दी जाए।

प्रयागराज, जेएनएन। सवा साल हो रहा है कोरोना महामारी को फैले हुए और तब से बच्चे स्कूल नहीं गए हैं। निजी स्कूल तो खासतौर पर कोरोना काल में लगातार बंद चल रहे हैं और वहां ऑनलाइन पढ़ाई कराई जा रही है। अभिभावक कहते हैं कि ऑनलाइन पढ़ाई केवल दिखावा है। 30 फीसद भी कोर्स नहीं पूरा किया गया मगर फीस पूरी ली जा रही है। तमाम बच्चों के अभिभावकों की नौकरी छिन गई या वेतन घट गया। कारोबारी हैं तो आमदनी आधी भी नहीं रह गई। ऐसे में पूरी फीस भरना उनके लिए संभव नहीं रह गया है। ऊपर से नई कक्षा के लिए महंगी किताब-कापियां खरीदना और भी भारी साबित हो रहा है। ऐसे में अभिभावक चाहते हैं कि फीस आधी कर दी जाए या पहली तिमाही की फीस माफ कर दी जाए। साथ ही किताबों का दाम घटाया जाए।

loksabha election banner

सभी स्कूलों में दोबारा शुरू हुईं ऑनलाइन कक्षाएं

पिछले सत्र में एक भी दिन विद्यार्थी स्कूल नहीं गए। बच्चों ने ऑनलाइन पढ़ाई की। नए सत्र पर भी कोरोना की काली छाया पड़ रही है। तमाम स्कूलों में प्रवेश प्रक्रिया पूरी हो चुकी है। कुछ में चल रही है। कई स्कूलों ने ऑनलाइन पढ़ाई दोबारा शुरू करा दी है। इन सबके बीच दो तरह की बात सामने आ रही है। स्कूलो के प्रिंसिपल कहते हैं कि कोर्स नहीं बदला गया है, ऐसे में अभिभावक चाहें तो किसी परिचित से उनके बच्चे की पिछले साल की पुस्तक मांग सकते हैं। मगर हकीकत यह भी है कि  ऑनलाइन क्लास के दौरान बच्चे इस बारे में सवाल करते हैं तो टीचर का जवाब मिलता है कि 80 फीसद तक कोर्स  बदल गया है इसलिए नई किताबें ही लेनी होंगी। सोमवार को सिविल लाइंस के एक स्कूल की टीचर ने ऑनलाइन क्लास के दौरान यही जवाब दिया।

हकीकत कुछ और दावे कुछ और  

मगर जब इस बाबत स्कूलों के प्रधानाचार्य से बात करिए तो कुछ और ही बताया जाता है। कुछ स्कूलों से तो यह भी बताया गया कि अपने यहां पुस्तक बैंक बनाया है जिसमें वह पुरानी किताबें एकत्र कर जरूरतमंद बच्चों को दे रहे हैं। इसके लिए वह किसी भी तरह का शुल्क नहीं ले रहे। यह कदम कोरोना काल में अभिभावकों पर पडऩे वाले आर्थिक बोझ को कम करने के लिए उठाया जा रहा है। हालांकि तमाम अभिभावकों की शिकायत है कि स्कूलों की तरफ से नई किताबों को खरीदने के लिए दबाव बनाया जा रहा है। कुछ स्कूल विद्यार्थियों को ऑनलाइन पढ़ाई के दौरान यूनिफार्म पहनकर बैठने के लिए भी निर्देशित कर रहे हैं। अभिभावकों का कहना है कि जब बच्चे घर में हैं तो यूनिफार्म की क्या जरूरत है। कोरोना काल में अनावश्यक रूप से ड्रेस खरीदने का दबाव ठीक नहीं हैं।

प्रधानाचार्यो का है यह कहना

किसी भी कक्षा में कोई पाठ्यक्रम नहीं बदला गया है। कोरोना संक्रमण को देखते हुए पिछले वर्ष की तरह इस बार भी कक्षाएं ऑनलाइन शुरू हो गई हैं। विद्यार्थियों को यदि कहीं से पुरानी किताबें मिलें तो वह उसे लेकर पढ़ाई कर सकते हैं। नई किताबों को खरीदने का कोई दबाव नहीं है।

- फादर थामस कुमार, प्रधानाचार्य सेंट जोसफ इंटर कॉलेज

नए सत्र में ऑनलाइन पढ़ाई शुरू हो चुकी है। विद्यार्थियों पर नई किताब खरीदने का दबाव नहीं है। यदि पुरानी किताबें मिल जाएं तो उसे लेकर पढ़ाई की जा सकती है। हां कॉपियों को जरूर लेना होगा। इस बार कॉपियां अनिवार्य रूप से जांची जाएंगी जिससे जरूरी सुझाव भी बच्चों को दिए जाएं

-डॉ. विनीता इसूवियस, प्रधानाचार्य जीएचएस

 

कोरोना को देखते हुए नए सत्र में न तो पाठ्यक्रम बदला है न किताबें। ऑनलाइन पढ़ाई भी शुरू करा दी गई है। पुरानी किताबों यदि बच्चों को मिल जाएं तो वह उसे लेकर पढ़ाई कर सकते हैं। शिक्षक भी अध्ययन सामग्री बच्चों के वाट्स्एप पर भेज रहे हैं, वेबसाइट पर भी मैटर है।

-डेविड ल्यूक, प्रधानाचार्य, बीएचएस

नई किताबों को खरीदने का कोई दबाव नहीं है। पुरानी किताबें कहीं से मिलें तो जरूर ले लें। स्कूल में करीब 150 बच्चों ने पुरानी किताबें जमा कराई हैं। उसे जरूरतमंद विद्यार्थियों को दिया जा रहा है। अन्य विद्यार्थी भी स्कूल को या अपने आसपास के बच्चों को किताबें दे सकते हैं।

- अर्चना तिवारी, प्रधानाचार्य, टैगोर पब्लिक


माफ हो तिमाही शुल्क

जनहित संघर्ष समिति के अध्यक्ष कारोबारी प्रमिल केसरवानी बताते हैं कि उनका पुत्र सिविल लाइंस के एक निजी स्कूल में कक्षा आठ में पढ़ता है। पिछले साल भर से ऑनलाइन के नाम पर सही से पढ़ाई नहीं हो रही है। फिर भी फीस पूरी ली जा रही है। उनकी जिला प्रशासन और स्कूल प्रबंधन से मांग है कि कोरोनावायरस के संकट काल में पहली तिमाही की फीस माफ कर दी जानी चाहिए क्योंकि कारोबार ठप है और आमदनी घटती चली गई है।

15 फीसद बढ़ा दी गई फीस

राजरूपपुर निवासी संजय द्विवेदी का पुत्र सिविल लाइंस स्थित एक नामचीन कॉन्वेंट स्कूल में कक्षा सातवीं में पढ़ता है। संजय कहते हैं कि पिछले साल कोरोनावायरस का कहर शुरू होने के बाद से ऑनलाइन पढ़ाई की जा रही है, जिसमें कोर्स आधा भी नहीं पूरा किया गया लेकिन इस बार फीस 15 फीसद बढ़ा दी गई है। कोरोना की मुसीबत को देखते हुए स्कूल प्रबंधन को पूरे साल भर की फीस आधी कर देनी चाहिए क्योंकि वह खुद रोजगार और आमदनी का संकट झेल रहे हैं और यह समस्या बहुत से अभिभावकों की है।


Jagran.com अब whatsapp चैनल पर भी उपलब्ध है। आज ही फॉलो करें और पाएं महत्वपूर्ण खबरेंWhatsApp चैनल से जुड़ें
This website uses cookies or similar technologies to enhance your browsing experience and provide personalized recommendations. By continuing to use our website, you agree to our Privacy Policy and Cookie Policy.