यूपी में लेबर अधिकारों को निलंबित करने की अधिसूचना को हाई कोर्ट में चुनौती, 18 मई को सुनवाई
इलाहाबाद हाई कोर्ट में याचिका दाखिल करके उत्तर प्रदेश के श्रम विभाग की श्रमिक अधिकारों को निलंबित करने की अधिसूचना व संशोधन कानून की वैधता की चुनौती दी गई है।
प्रयागराज, जेएनएन। इलाहाबाद हाई कोर्ट में याचिका दाखिल करके उत्तर प्रदेश के श्रम विभाग की श्रमिक अधिकारों को निलंबित करने की अधिसूचना व संशोधन कानून की वैधता की चुनौती दी गई है। कोर्ट ने याचिका पर केंद्र व राज्य सरकार को नोटिस जारी किया है। याचिका पर सुनवाई 18 मई को होगी।
यह आदेश मुख्य न्यायाधीश गोविंद माथुर व न्यायमूर्ति सिद्धार्थ वर्मा की खंडपीठ ने यूपी वर्कर्स फ्रंट की जनहित याचिका पर दिया है। याचिका अधिवक्ता प्रांजल शुक्ल व विनायक मित्तल ने दाखिल की है। कोर्ट ने कहा कि 18 मई को याचिका पर वीडियो कांफ्रेंसिंग से सुनवाई होगी।
बता दें कि राज्य सरकार ने फैक्ट्री कानून में श्रमिक अधिकारों को अध्यादेश से संशोधन कर अनुमोदन के लिए राष्ट्रपति को भेजा है। साथ ही श्रम विभाग ने श्रमिक अधिकारों को निलंबित करने की अधिसूचना जारी की है। इस कानून से फैक्ट्री मालिकों को 12 घंटे काम लेने की अनुमति मिल गई है। अभी तक आठ घंटे व अधिकतम 10 घंटे काम लेने की छूट थी। याची का कहना है कि यह श्रमिकों के जीवन के मूल अधिकारों एवं श्रम कानूनों का उल्लंघन है। इससे अधिक मुनाफे के लिए श्रमिकों का शोषण किया जाएगा। साथ ही उनकी नौकरी की गारंटी नहीं होगी।
सरकार ने किया अध्यादेश के प्रारूप में बदलाव
बता दें कि राज्य सरकार ने कारखानों और मैन्युफैक्चरिंग से जुड़ी औद्योगिक इकाइयों को प्रदेश में लागू श्रम कानूनों से सशर्त छूट देने के लिए प्रस्तावित उत्तर प्रदेश कतिपय श्रम विधियों से अस्थायी छूट अध्यादेश, 2020 के प्रारूप में बदलाव किया है। इस अध्यादेश के तहत पहले सरकार ने सभी कारखानों और मैन्युफैक्चरिंग इकाइयों को प्रदेश में लागू श्रम अधिनियमों से तीन साल के लिए छूट देने का फैसला किया था, लेकिन अब सिर्फ नये कारखानों और मैन्युफैक्चरिंग इकाइयों को तथा पुरानी इकाइयों में नियोजित होने वाले नये कामगारों को ही श्रम अधिनियमों से छूट देने का निर्णय किया गया है। अध्यादेश के संशोधित प्रारूप में दी गई अस्थायी छूट भी तीन साल के लिए होगी। सरकार की ओर से अध्यादेश के संशोधित प्रारूप को कैबिनेट बाई सर्कुलेशन मंजूरी दिए जाने के बाद राज्यपाल ने भी इस पर मुहर लगा दी है। अध्यादेश को राष्ट्रपति की मंजूरी के लिए केंद्र सरकार को भेजा गया है।