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कालाकांकर के राजकुमार की प्रेम कहानी ने पैदा कर दी थी भारत, रूस व अमेरिका के रिश्तों में खटास

एक रोचक प्रसंग है कालाकांकर (प्रतापगढ़) राज परिवार के बृजेश सिंह और सोवियत संघ (रूस) के तानाशाह एवं कम्युनिस्ट पार्टी के मुखिया रहे स्टालिन की बेटी स्वेतलाना के प्रेम संबंधों की। साठ के दशक की इस प्रेम कहानी ने देश के सामने बड़ा संकट खड़ा कर दिया था।

By Ankur TripathiEdited By: Published: Mon, 11 Jan 2021 03:30 PM (IST)Updated: Mon, 11 Jan 2021 03:30 PM (IST)
कालाकांकर के राजकुमार की प्रेम कहानी ने पैदा कर दी थी भारत, रूस व अमेरिका के रिश्तों में खटास
साठ के दशक की इस प्रेम कहानी ने देश के सामने बड़ा संकट खड़ा कर दिया था।

प्रयागराज, जेएनएन। प्रतापगढ़ का नाम आते ही अमृत फल आंवला और यहां के राज घरानों की चमक-दमक बरबस ही सामने आ जाती है। यहां के आंवले ने देश-विदेश में धूम मचा रखी है तो राजघरानों के किस्से व कहानियों की चर्चा भी देश और उसकी सीमाओं के बाहर होती रहती है। इन्हीं कहानियों में एक रोचक प्रसंग है कालाकांकर (प्रतापगढ़) राज परिवार के बृजेश सिंह और सोवियत संघ (रूस) के तानाशाह एवं कम्युनिस्ट पार्टी के मुखिया रहे स्टालिन की बेटी स्वेतलाना के प्रेम संबंधों की। साठ के दशक की इस प्रेम कहानी ने देश के सामने बड़ा संकट खड़ा कर दिया था। भारत, अमेरिका व रूस के रिश्तों में भी खटास डाल दी थी। संकट के समाधान के लिए देश की संसद तक में चर्चा करनी पड़ी थी।

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बृजेश सिंह को स्टालिन की बेटी स्वेतलाना से हो गया था प्रेम
प्रतापगढ़ के वरिष्ठ अधिवक्ता और साहित्यकार भानुप्रताप त्रिपाठी 'मराल के अनुसार प्रतापगढ़ के कालाकांकर राजपरिवार के बृजेश सिंह पढ़े-लिखे और सौम्य थे। गोरे-चिट्टे और फर्राटे से अंग्रेजी बोलते थे और भारत के बड़े कम्युनिस्ट नेताओं में से एक थे। इंदिरा गांधी सरकार में विदेश मंत्री और अन्य ओहदों पर रहे राजा दिनेश सिंह उनके भतीजे थे। तबीयत खराब होने पर वर्ष 1963 में बृजेश सिंह सोवियत संघ की राजधानी मास्को गए थे जहां उनकी मुलाकात रूस की कम्युनिस्ट पाटी के मुखिया स्टालिन की बेटी स्वेतलाना से हुई। दोनों को प्यार हो गया। बात शादी तक पहुंची लेकिन सोवियत संघ की तत्कालीन सरकार ने अनुमति नहीं दी।

बृजेश की मौत के बाद अस्थियां लेकर भारत आई थी स्वेतलाना
प्रतापगढ़ के पूर्व जिला विद्यालय निरीक्षक डा. दयाराम का कहना है कि बृजेश सिंह की 31 अक्टूबर 1966 में मास्को में मौत हो गई तो स्वेतलाना उनकी अस्थियां लेकर भारत आई थीं। इस दौरान उनका कालाकांकर आना भी हुआ था। वह कालाकांकर में गंगा के किनारे रहना चाहती थीं। कुछ दिन यहां बिताया भी था। भारत में रहने के लिए केंद्र सरकार से अनुमति भी मांगी किंतु मिली नहीं। तत्कालीन विदेश मंत्री और कालाकांकर राजपरिवार के राजा दिनेश सिंह का जवाब था कि यदि सोवियत संघ अनुमति दे दे तो भारत भी दे देगा।

राममनोहर लोहिया ने संसद में उठाई थी स्वेतलाना की मांग
भारत में रहने की अनुमति नहीं मिलने से निराश स्वेतलाना उस समय विपक्ष के कद्दावर नेता राम मनोहर लोहिया से मिली तो उन्होंने संसद में पुरजोर ढंग से स्वेतलाना के पक्ष में भाषण दिया। स्वेतलाना को भारत की बहू बताते हुए देश में रहने देने की वकालत की किंतु सरकार ने उनकी बात नहीं मानी। भानु प्रताप त्रिपाठी के अनुसार भारत में शरण देने की मांग पूरी न होने पर स्वेतलाना ने अमेरिका में शरण लेने का प्रयास किया जिस पर सोवियत संघ ने भारत से कड़ी आपत्ति जताई थी हालांकि बाद में स्वेतलाना अमेरिका पहुंच गईं।

कालाकांकर में खुलवाया था बृजेश सिंह स्मारक अस्पताल
कालाकांकर राजपरिवार से संबद्ध मनीष सिंह का कहना है कि अमेरिका जाने के बाद भी स्वेतलाना भारत और कालाकांकर से भावनात्मक रूप से जुड़ी रहीं। उन्होंने कालाकांकर में बृजेश सिंह स्मारक अस्पताल बनवाया। उसके संचालन के लिए पैसे भेजती रहती थीं। करीब 40 बेड का यह अस्पताल उस दौर में काफी आधुनिक था। विदेशों से मशीनें मंगाई गई थीं। सुमित्रा नंदन पंत और महादेवी वर्मा जैसे साहित्यकारों ने अस्पताल का शिलान्यास और उद्घाटन किया था। अस्पताल के संचालन के लिए बृजेश सिंह स्मारक ट्रस्ट बनाया गया था। करीब 15 साल पहले तक अस्पताल चल रहा था। अब केवल अस्पताल का बोर्ड ही वहां पर दिखाई देता है। अस्पताल में भवन में प्राइवेट स्कूल संचालित किया जा रहा है।


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