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प्राचीन सभ्‍यता और तमाम रहस्‍यों को समेटे है प्रयागराज में बारा की गींज पहाड़ी

इलाहाबाद विश्वविद्यालय के प्राचीन इतिहास विभाग के अध्यक्ष रहे प्रो.जेएन पाल बताते हैं कि गींज पहाड़ी बारा से चार मील दक्षिण में है। प्रयागराज मुख्यालय से यह 28 मील दक्षिण ओर कुछ पश्चिम की ओर है। इसकी ऊंचाई जमीन से 800 फुट है। घेरा छह मील के लगभग है।

By Rajneesh MishraEdited By: Published: Sat, 20 Feb 2021 04:55 PM (IST)Updated: Sun, 21 Feb 2021 11:55 AM (IST)
प्राचीन सभ्‍यता और तमाम रहस्‍यों को समेटे है प्रयागराज में बारा की गींज पहाड़ी
गांव वासियों को इन पहाड़ी पर अक्सर पुरातत्व अवशेष मिलते हैं।

प्रयागराज, जेएनएन। प्रयागराज के यमुनापार के इलाके में कई गांव प्राचीन सभ्यता को अपने में समेटे हुए हैं। इन गांवों में पुरातन संस्कृति दबी है। पुरातत्ववेत्ताओंं की नजर अभी इन गांवों की पहाड़ी पर नहीं पड़ी है। गांववासियों को इन पहाड़ी पर अक्सर पुरातत्व अवशेष मिलते हैं। इनको देखकर सबमें उत्सुकता रहती है पर यह कब और किस सभ्यता के हैं यह नहीं पता चल पाता है। इन्हीं में एक स्थान बारा इलाके का गींज गांव है। यहां की पहाड़ी रहस्यों से भरी है। 

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छह मील के घेरे में है पहाड़ी

इलाहाबाद विश्वविद्यालय के प्राचीन इतिहास विभाग के अध्यक्ष रहे प्रो.जेएन पाल बताते हैं कि गींज पहाड़ी बारा से चार मील दक्षिण में है। प्रयागराज मुख्यालय से यह 28 मील दक्षिण ओर कुछ पश्चिम की ओर है। इसकी ऊंचाई जमीन से 800 फुट है। घेरा छह मील केलगभग है। इसका शिखर एक लंबाकार छिले हुए शिला के सदृश है। यह 200 फुट की ऊंचाई तक सीधा खड़ा है। नीचे की भूमि चारों ओर ढलवान जंगल से घिरी हुई है। नीचे से लगभग आधी दूरी की ऊंचाई पर एक नैसर्गिक जलाशय है। जलाशय का घेरा 200 फुट है। यहां तक की चढ़ाई कुछ सरल है। आगे बहुत ही दुर्गम है। 

पहाड़ी में बनी है प्राकृतिक गुफा

प्रो.जेएन पाल बताते हैं कि दक्षिण कीओर पहाड़ी में शिलाओं के प्राकृतिक स्थिति को लेकर एक गुफा सी बन गई है। यह गुफा 100 फुट लंबी 40 से 50 फुट चौड़ी तथा 20 से 25 फुट ऊंची है। आगे का भाग दलान के समान खुला है। उसके पीछे एक अभिलेख तीन पंक्तियों में खुदा हुआ है। अभिलेख के अक्षरों में लाल रंग भरा है। कुछ मनुष्य और पशुओं के चित्र भी अंकित हैं। 

मिला है महाराजा भीमसेन का लिखा अभिलेख

हिन्दुस्तानी एकेडेमी से प्रकाशित सालिग्राम श्रीवास्तव की पुस्तक प्रयाग प्रदीप में भी इस पहाड़ी का जिक्र है। पहाड़ी पर मिले अभिलेख में लिखा है कि यह लेख महाराजा श्री भीमसेन का संवत 52 ग्रीष्म ऋतु के चौथे पक्ष की द्वादशी का है। प्रो.पाल बताते हैं कि महाराज भीमसेन कौन थे और 52 कौन संवत है इसका ठीक पता नहीं लग पाया। पहाड़ी पर जाने के लिए प्रयाग मुख्यालय से 16 मील तक कार से पहुंचा जा सकता है। उसके बाद कच्ची सड़क है। इस पहाड़ी में कई रहस्य हैं। इसकी खुदाई करने पर जमीन के अंदर दबी सभ्यता का पता चल सकता है।


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