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International Athlete रोजी-रेशमा पर फिट बैठती है 'दंगल' फिल्म की गीता-बबिता की कहानी, जानें कैसे

प्रयागराज के छोटे से गांव तिली का पूरा सोरांव की रहने वाली रोजी-रेशमा को हर कोई फ्लाइंग सिस्टर कहता है। लेकिन इनकी शुरूआत अचानक से हो गई थी। कई नेशनल रिकार्ड भी जीत चुकी हैं। दंगल फिल्‍म की कहानी काफी कुछ इनके जीवन से मिलती-जुलती है।

By Brijesh SrivastavaEdited By: Published: Fri, 17 Sep 2021 01:21 PM (IST)Updated: Fri, 17 Sep 2021 02:05 PM (IST)
International Athlete रोजी-रेशमा पर फिट बैठती है 'दंगल' फिल्म की गीता-बबिता की कहानी, जानें कैसे
एथलीट रोजी-रेशमा ने कई नेशनल रिकार्ड जीत चुकी हैं। उनका जीवन दंगल फिल्‍म की कहानी से काफी मिलता-जुलता है।

प्रयागराज, [अमरीष मनीश शुक्ल]। आपने दंगल फिल्म तो देखी ही होगी। इसमें यह कहानी है कि कैसे एक पिता अपनी बेटियों को कड़ी ट्रेनिंग देता है, समाज और हालातों से बेटिंया लड़ना सिखाता हैं, हास्टल में उनकी मदद करता है। फिल्‍म की यह कहानी वैसे तो हरियाणा की गीता व बबिता फोगाट की है, लेकिन बिल्कुल ऐसा ही एक सच्चा सफर प्रयागराज की दो सगी बहनों ने भी तय किया है। ये बहनें आज अंतरराष्ट्रीय स्तर पर वाक रेस में रिकार्डों की झड़ी लगा रही हैं।

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फ्लाइंग सिस्टर के नाम से प्रख्‍यात हैं सगी बहनें रोजी-रेशमा

प्रयागराज के छोटे से गांव तिली का पूरा सोरांव की रहने वाली रोजी-रेशमा को हर कोई फ्लाइंग सिस्टर कहता है। इनकी शुरूआत अचानक से हो गई थी। लखनऊ में लड़कियों को स्पोर्ट्स खेलता देख अंतरराष्ट्रीय एथलीट इंद्रजीत पटेल ने गांव में अपने बाबा मुरली पटेल को बेटियों की उपलब्धियां बताई तो उन्होंने उसी वक्त रोजी-रेशमा को स्कूल से बैग लेकर घर वापस बुला लिया। दोनों के बड़े बाल कैची से काटकर छोटा किए और गांव के एक बाग में दोनों को रनिंग कराने पहुंच गए। इस पर पिता विजय बहादुर पटेल ने इंद्रजीत को भी डांटा कि पहले वह कुछ कर ले। हालांकि बाबा की जिद के आगे किसी की न चली।

एथलीट रोजी व रेशमा का कठिन सफर

मां निर्मला ने कड़ी ट्रेनिंग से बचाने का प्रयास किया, लेकिन दोनों बहने भाई इंद्रजीत की तरह बनने के लिए जुनूनी हो गईं। रोजी उस समय छठीं व रेशमा चौथी क्लास में थी। पहले रोजी लखनऊ स्पोर्ट्स कालेज पहुंची, प्रदर्शन अच्छा नहीं रहा तो तीन वर्ष बाद हास्टल से बाहर हो गई। भाई ने बंगलौर में प्रैक्टिस शुरू कराई लेकिन रनिंग में खास उपलब्धि नहीं मिली तो रोजी ट्रेनिंग से कटने लगी। इंद्रजीत ने पहले समझाया और फिर डांट कर घर भेज दिया।

इसके बाद रोजी ने पीछे मुड़कर नहीं देखा

2017 में इंद्रजीत ने रोजी को उत्तराखंड बुलाया और वहां कोच अनूप बिस्ट ने उसे वाक रेस के लिए सात माह की कड़ी ट्रेनिंग दी। नतीजा 2018 में काेयंबटूर में अंडर 20 नेशनल चैंपियनशिप में रोजी ने गोल्ड जीता। इसके बाद रोजी हर प्रतियोगिता में छा गईं और फिर कभी पीछे मुड़कर नहीं देखा। दूसरी ओर 2012 में जब रोजी लखनऊ गई तो रेशमा अकेली गांव में बाबा के साथ तैयारी करती रहीं। 2018 में भाई से जिद करके रेशमा भी उत्तराखंड पहुंचीं और लांग रनिंग छोड़कर रेस वाक करने लगीं।

रेशमा ने 14 वर्ष में अंडर 16 के राष्‍ट्रीय रिकार्ड की बराबरी की

सात महीने बाद रेशमा ने 14 साल की उम्र में अंडर 16 के नेशनल रिकार्ड की बराबरी की और फिर इसके बाद अंडर 19, अंडर 20 का भी नेशनल रिकार्ड अपने नाम कर गोल्ड मेडल की झड़ी लगा दी। बीते 12 सितंबर को उत्तराखंड में एक ही प्रतियोगिता में रेशमा ने स्‍वर्ण पदक और रोजी ने कांस्‍य पदक जीता। अब दोनों बहनें ओलंपिक में भारत के लिए मेडल लाना चाहती हैं।


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