एसआरएन का सीटी स्कैन और एमआरआइ बंद, मरीज परेशान
एसआरएन अस्पताल में एमआरआइ व सिटी स्कैन बंद है। इसके चलते मरीजों को परेशान होना पड़ रहा है।
जागरण संवाददाता, प्रयागराज : यह तीन मामले सिर्फ बानगी है यह बताने के लिए कि सरकारी अस्पतालों में चिकित्सा व्यवस्था किस तरह से चरमरा गई है। मरीजों की न उचित ढंग से जाच हो पा रही है न दवाएं मिल रही हैं। एक्सरे, सीटी स्कैन और एमआरआइ कराने पर रिपोर्ट के लिए काली फिल्म ही महीनों से खत्म है। अस्पतालों में मूलभूत सुविधाएं न होने से लोग निजी संस्थान या लखनऊ, वाराणसी जाने को मजबूर हैं। स्वरूपरानी नेहरू चिकित्सालय (एसआरएन) और काल्विन अस्पताल में दिक्कतें सबसे ज्यादा हैं। चिकित्साधिकारियों की सेहत पर इससे कोई फर्क नहीं पड़ रहा है। नहीं मिल रही थी फिल्म, अब मशीन भी खराब
एसआरएन में सीटी स्कैन और एमआरआइ की फिल्म चार महीने से नहीं मिल रही है। रिपोर्ट सीडी में दी जा रही है जिसे लेकर तीमारदार डाक्टरों के आगे पीछे टहलते रहते हैं। बीते तीन दिनों से एमआरआइ मशीन ही खराब है। एसआरएन में एक सप्ताह से सीटी स्कैन भी नहीं किया जा रहा है। जरूरतमंद मरीजों को लौटा दिया जा रहा है। यह है सरकारी और प्राइवेट शुल्क
एसआरएन में एमआरआइ कराने का शुल्क 2500 और सीटी स्कैन का 2000 रुपये है। यही शुल्क निजी संस्थानों में क्त्रमश: 8000 और 5000 रुपये है। एमआरआइ और सीटी स्कैन की जाच प्रत्येक दिन औसत 30 लोगों की होती है। फिल्म न मिलने या मशीन खराब होने के चलते इन्हें निजी संस्थानों की ओर भागना पड़ता है। एक्सरे रिपोर्ट सफेद कागज पर
मोतीलाल नेहरू मंडलीय चिकित्सालय यानी काल्विन अस्पताल में तो एक्सरे रिपोर्ट काली फिल्म की बजाए सफेद कागज पर फोटो स्टेट के रूप में दी जा रही है। चेस्ट फिजीशियन डा. मायादेवी कहती हैं कि फिल्म में एक्सरे का व्यू अच्छा आता है, कागज पर मिल रही रिपोर्ट देखने में अक्सर बीमारी पकड़ में भी नहीं आती। बेली अस्पताल में व्यवस्था कुछ पटरी पर
टीबी सप्रू चिकित्सालय यानी बेली अस्पताल में एमआरआइ की फिल्म सिंगल प्लेट में दी जा रही है क्योंकि फिल्म का अभाव वहा भी है। जबकि निजी संस्थानों में रिपोर्ट तीन से चार फिल्म में मिलती है। पर्चा एक रुपये का, दवाएं हजारों की
स्वरूपरानी नेहरू चिकित्सालय में तो दवाओं के नाम पर टोटा है। यहा भर्ती करने या ओपीडी में दिखाने के लिए दिखावे के तौर पर महज एक रुपये का पर्चा बनता है। लोग इस आस में आते भी हैं कि मुफ्त इलाज होगा। लेकिन साधारण मामले हों, कोई छोटे-बड़े आपरेशन या फिर हृदय रोग विभाग में ही चिकित्सा की बात क्यों न हो। मरीज के तीमारदारों को दवाओं का पर्चा थमा दिया जाता है और दवाएं बाहर दुकानों से हजारों रुपये की मिलती हैं। तीमारदारों को बड़ी मजबूरी में इसे खरीदना पड़ता है।
बजट नहीं है
कोरोना काल में सामग्रिया खरीदने में अधिक बजट खर्च हो गया। अब काली फिल्म के लिए बजट स्वीकृत नहीं हो पा रहा है। जल्द ही इसका इंतजाम किया जाएगा।
डा. अजय सक्सेना, प्रमुख चिकित्सा अधीक्षक एसआरएन