Krishna Janmashtami 2020 : एक हजार एकादशी का फल देने वाला है जन्माष्टमी का व्रत, ऐसे करें कान्हा की स्तुति
Krishna Janmashtami 2020 गृहस्थ भगवान श्रीकृष्ण का प्राकट्य उत्सव आज मना रहे हैं। आधी रात में कन्हाई जन्मेंगे और घर-घर बधाई दी जाएगी। बाजार में भी रौनक है।
प्रयागराज, जेएनएन। भाद्रपद कृष्णपक्ष अष्टमी तिथि पर आज यानी मंगलवार की मध्य रात्रि भगवान श्रीकृष्ण का प्राकट्य उत्सव मनाया जाएगा। भक्तों का उत्साह चरम पर होगा। कान्हा के जन्म लेने पर घर-घर बधाई बजेगी। मुरली मनोहर का नयनाभिराम श्रृंगार कर भक्त भजन-पूजन के जरिए उनकी महिमा का बखान करेंगे। इसे लेकर बाजार में जमकर खरीदारी भी हो रही है। भक्तों में उत्साह और उल्लास का माहौल है। वह घर में श्रीकृष्ण जन्माष्टमी का पर्व मनाएंगे।
आज गृहस्थ मना रहे तो कल वैष्णव मनाएंगे जन्माष्टमी पर्व
इस बार जन्माष्टमी पर्व पर अष्टमी तिथि व रोहिणी नक्षत्र का संयोग नहीं मिल रहा है इसलिए प्रतिष्ठित पंचागकारों ने भी इस बार गृहस्थों के लिए 11 अगस्त को व्रत करने को तथा वैष्णवों को 12 अगस्त को जन्माष्टमी मनाने को स्पष्ट कहा है। श्रीकृष्ण जन्माष्टमी का पर्व एक हजार एकादशी का फल देने वाला व्रत है। पूरी रात जप व ध्यान का विशेष महत्व है। आचार्य देवेंद्र प्रसाद त्रिपाठी बताते हैं कि भविष्य पुराण के अनुसार श्रीकृष्ण जन्माष्टमी का व्रत अकाल मृत्यु से बचाता है। इस दिन उपवास कर आत्मिक अमृत पान करें। अहं को समाप्त करें।
रात आठ बजे से पूजन आरंभ करें : आचार्य विद्याकांत
पराशर ज्योतिष संस्थान के निदेशक आचार्य विद्याकांत पांडेय बताते हैं कि सुबह स्नान करके पूर्व या उत्तर की ओर मुख कर व्रत का संकल्प (फलाहार या एक समय भोजन लेंगे) लें। रात आठ बजे से पूजन आरंभ करें। दक्षिणावर्ती शंख से दूध, दही, घी, शहद, सर्करा, पंचामृत से भगवान का अभिषेक करें। षोडशोपचार पूजन के बाद माखन, मिश्री का भोग लगाएं। भगवान श्रीकृष्ण की पूजा में मोर पंख, बांसुरी, माखन, परिजात का फूल अर्पित करें। ताजा पान के पत्ते पर 'ओम वासुदेवाय नम:' लिखकर श्रीकृष्ण को अर्पित करें। इस दिन तुलसी पूजा का भी महत्व है। तुलसी श्रीकृष्ण को प्रिय हैं। तुलसी की पूजा करके देशी घी का दीपक जलाएं। 11 बार परिक्रमा करने से माता लक्ष्मी प्रसन्न होती हैं।
दो सम्प्रदाय में बंटे हैं भक्त : आचार्य नागेशदत्त
श्रीशारदा ज्योतिष कार्यालय के आचार्य नागेशदत्त द्विवेदी बताते हैं कि जन्माष्टमी को मनाने वाले स्मार्त और वैष्णव सम्प्रदाय में बंटे हैं। इससे यह पर्व दो दिन मनाया जाता है। वैदिक शास्त्रों में कहा गया है कि पंचदेव अर्थात ब्रह्मा, विष्णु, महेश, गणेश, उमा को मानने वाले स्मार्त (गृहस्थ) होते हैं। आदिशंकराचार्य ने प्रतिपादित किया कि सभी देवता ब्रह्मस्वरूप हैं। उनके बताए मार्ग को अंगीकार किया वह स्मार्त कहलाए। वैष्णव सम्प्रदाय (संत-महात्मा) विधिवत दीक्षा लेता है। वह गुरु से कंठी या तुलसी माला गले में ग्रहण करता है या तप्त मुद्रा से शंख चक्र का निशान गुदवाता है। ऐसे व्यक्ति ही वैष्णव कहे जा जाते हैं। वैष्णव को सीधे शब्दों में कहें तो गृहस्थ से दूर रहने वाले लोग हैं।