संत शक्ति से शिखर परपहुंचा श्रीराम मंदिर आंदोलन
सन 1947 में देश की आजादी के बाद अयोध्या स्थित श्रीराम जन्मभूमि में मंदिर आंदालन में संतों की भूमिका महत्चपूर्ण रही है। श्रीराम के नाम पर हिंदू एकजुट हुए हैं।
जागरण संवाददाता, प्रयागराज : सन 1947 में देश की आजादी के बाद अयोध्या स्थित श्रीराम जन्मभूमि में मंदिर निर्माण के लिए छेड़ा गया आंदोलन ही ऐसा था जिससे बड़ा वर्ग जुड़ा। श्रीराम के नाम पर देशभर में सामाजिक समरसता की अद्भुत अलख जगी थी। यह संभव हुआ 'संत शक्ति' के जरिए। विश्व हिदू परिषद ने आंदोलन का नेतृत्व संतों को सौंप दिया था। आंदोलन से देशभर के करीब 60 संप्रदाय के धर्मगुरु जुड़े थे। इससे जाति व वर्गो में बंटे हिदुओं को एकजुट करने में सफलता मिली।
विहिप ने 1984 में श्रीराम मंदिर आंदोलन की रूपरेखा तय की थी। संगठन कौशल के धनी अशोक सिंहल के प्रयास से 1988 तक विहिप के साथ संतों का बड़ा वर्ग जुट गया। प्रयागराज में 1989 कुंभ के दौरान विहिप ने 'धर्म संसद' आयोजित की तो सिद्ध संत देवरहा बाबा भी शामिल हुए। शायद यह पहला मौका था जब देवरहा बाबा किसी के मंच पर पहुंचे थे। उन्होंने श्रीराम मंदिर बनने की भविष्यवाणी की थी। इसके बाद अयोध्या में 1990 व 1992 में हुई कारसेवा में कश्मीर से कन्याकुमारी तक के लोग शामिल हुए। भाषा, वेशभूषा, भोजन व संस्कृति अलग थी लेकिन श्रीराम के नाम पर सभी एक साथ थे। शिलापूजन, शिलादान व कारसेवा में सबने बढ़चढ़ कर हिस्सा लिया।
संतों से व्यक्तिगत रूप से मिलते थे सिंघल
विहिप के संरक्षक स्व. अशोक सिंहल ने 1984 के बाद प्रयागराज में संगम तट पर लगने वाले माघ, अर्द्धकुंभ व कुंभ मेले को संतों से संपर्क का माध्यम बनाया। वह सभी व्यक्तिगत रूप से मिलते थे। उनकी कोशिश ऐसी थी कि वैष्णव, रामानुज, रामानंदी, मद्धव, महाराष्ट्र के वारकरी व रामादासी, दक्षिण भारत के रामानुज व वैष्णव, दशनामी संप्रदाय, गौड़ीय, सिखों के नामधारी व अकाली खालसा, कबीर पंथी, असम के सत्राधिकार, राजस्थान के रामसनेही, वैरागी, वल्लभ, निम्बार्काचार्य, जैन व बौद्ध आदि संप्रदाय के धर्मगुरु आंदोलन से जुड़ गए।
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टूटी थी बेड़ियां : डॉ. चंद्रप्रकाश
सिंहल के निज सहायक व अरुंधति वरिष्ठ शोध पीठ के निदेशक डॉ. चंद्रप्रकाश सिंह बताते हैं कि श्रीराम के नाम पर जाति-धर्म की सारी बेड़ियां ध्वस्त हो गई थीं। सामाजिक समरसता कायम के लिए ही 1989 में मंदिर के लिए शिलान्यास कामेश्वर चौपाल से कराया गया था।
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श्रीराम मंदिर के लिए जन्मे थे सिंहल : प्रभाकर
परमहंस प्रभाकर जी महाराज कहते हैं कि संतों के प्रति स्व. सिंहल का समर्पण अद्भुत था। वह मेरी आयु से वह तीन गुना अधिक थे। लेकिन, जब मिले तो मेरा चरण स्पर्श किया। उनकी इसी विनम्रता से मैं और मेरे जैसे लाखों संत कारसेवा का हिस्सा बने।